Computer
Computer Fundamental Notes
कंप्यूटर फंडामेंटल (Computer Fundamental) का मतलब है कंप्यूटर की बुनियादी बातों को समझना, जैसे कि उसके घटक, कार्यप्रणाली, और उपयोग की जानकारी। यह ज्ञान किसी को कंप्यूटर को संचालित करने और उपयोग करने, साथ ही सॉफ्टवेयर और नेटवर्क के साथ काम करने में सक्षम बनाता है।
- Computer Components : इसमें प्रोसेसर, मेमोरी, स्टोरेज डिवाइस, इनपुट डिवाइस (जैसे कीबोर्ड और माउस), आउटपुट डिवाइस (जैसे मॉनिटर और प्रिंटर), और नेटवर्क कार्ड जैसे विभिन्न हार्डवेयर घटकों को समझना शामिल है।
- History & Generations : इसमे कंप्यूटर का इतिहास और कंप्यूटर पीढ़ियों के बारे मे जानकारी मिलती है।
- Operating System : यह कंप्यूटर को संचालित करने के लिए आवश्यक सॉफ्टवेयर है, जैसे कि विंडोज, मैकओएस, या लिनक्स आदि।
- Hardware & Software : इसमें एप्लिकेशन सॉफ्टवेयर (जैसे वर्ड प्रोसेसर, वेब ब्राउज़र, इमेज एडिटिंग सॉफ्टवेयर) और सिस्टम सॉफ्टवेयर शामिल हैं जो कंप्यूटर के कार्यों को नियंत्रित करते हैं।
- Internet & Network : कंप्यूटर को एक दूसरे से कनेक्ट करने और डेटा साझा करने की बुनियादी बातें, जैसे कि वाई-फाई और इथरनेट आदि।
- Computer Applications : विभिन्न कार्यों के लिए कंप्यूटर का उपयोग करना, जैसे कि ईमेल भेजना, दस्तावेज़ बनाना, वेब ब्राउज़ करना, और गेम खेलना आदि।
What is Computer?
कंप्यूटर हार्डवेयर तथा सॉफ्टवेयर द्वारा निर्मित एक इलेक्ट्रॉनिक डाटा प्रोसेसिंग मशीन है जो अंकगणितीय गणनाओं को तेजी से प्रोसेस करने मे सक्षम है। यह यूजर से रॉ डेटा (Row Data) को इनपुट के रूप में लेता है और प्रोसेस करने के पश्चात आउटपुट प्रदान करता है। यह डिवाइस लाखों निर्देशों को एक माइक्रोसेकंड (10-6) से भी कम समय मे प्रोसेस कर सकता है। कंप्यूटर सभी कार्यों को करने के लिए विभिन्न डिवाइसों का उपयोग करता है; जैसे – कीबोर्ड, माउस, मॉनिटर, मेमोरी, प्रोसेसिंग यूनिट आदि।
Full Form of Computer
| Character | Meaning | Hindi Meaning |
| C | Common | सामान्य |
| O | Operating | परिचालन |
| M | Machine | यंत्र |
| P | Purposely | उद्देश्य |
| U | Used for | प्रयोग |
| T | Technological | तकनीकी |
| E | Educational | शिक्षा |
| R | Research | अनुसंधान |
Main Parts of Computer
कंप्यूटर मे उपयोग होने वाली मुख्य डिवाइसें निम्न प्रकार हैं –
- CPU – यह मुख्य प्रोसेसिंग मशीन है, इसके द्वारा ही कंप्युटर मे सभी कार्य प्रोसेस किए जाते है। इसमे ही कंप्यूटर का मुख्य सर्किट बोर्ड लगा होता है जिससे अन्य सभी डिवाइसे जुड़ी होती हैं।
- Monitor – यह एक टीवी के समान दिखने वाली डिवाइस है, इसमे एक स्क्रीन होती है जिसमे प्रोसेस हो रहे कार्य को देखा जा सकता है।
- Keyboard – यह एक टायपिंग डिवाइस है, इसमे कई बटने होती हैं, जैसे – A to Z, 0 to 9 इत्यादि। इनकी मदद से कंप्यूटर में कुछ भी टाइप किया जा सकता है।
- Mouse – यह एक पोइंटिंग डिवाइस है, इसका उपयोग कंप्यूटर को ऑपरैट करने तथा डिजाइन बनाने के लिए किया जाता है।
- Speaker – यह डिवाइस कंप्यूटर से ध्वनि सुनने के लिए इस्तेमाल की जाती है।
- Printer – प्रिंटर का इस्तेमाल कागज के पेपर पर डाटा प्रिंटिंग के लिए किया जाता है।
- Scanner – स्कैनर का इस्तेमाल डाटा स्कैनिंग के लिए किया जाता है, Ex – फोटोकॉपी
Characteristics of Computer
कंप्यूटर के कई गुण होते हैं जो इसे बेहद खास बनाते है, इसमे से कुछ के बारे मे नीचे बताया गया है।
- Speed (गति) – कंप्यूटर बहुत ही फास्ट डिजिटल डाटा प्रोसेसिंग मशीन है, यह माइक्रो (10-6) या नैनो (10-9) सेकेंड में लाखों निर्देश प्रोसेस कर सकता है।
- Accuracy (शुद्धता) – कंप्यूटर सभी सरल और जटिल गणनाएं 100% सटीकता के साथ कर प्रोसेस करता है।
- Diligence (लगन) – कंप्यूटर एक ही स्थिरता और सटीकता के साथ कई कार्य या गणना कर सकता है, यह थकान या एकाग्रता की कमी महसूस नहीं करता है।
- Intelligence (इंटेलिजेंस) – कंप्यूटर मैन्युअल हस्तक्षेप के बिना क्रियाओं को स्वचालित रूप से निष्पादित कर सकता है।
- Reliability (विश्वसनीयता) – कंप्यूटर बहुत विश्वसनीय होता है क्योंकि यह डेटा के समान सेट के लिए लगातार समान परिणाम देता है।
- Versatility (बहुमुखी प्रतिभा) – कंप्यूटर को लगभग हर क्षेत्र में इस्तेमाल किया जा सकता है, यह पूर्ण सटीकता के साथ एक से अधिक कार्यों को एक साथ कर सकता है।
- Storage Capacity (स्टोरेज क्षमता) – कंप्यूटर मेमोरी में बड़ी मात्रा में डेटा स्टोर किया जा सकता है, तथा उसे कभी भी पुनः प्राप्त भी किया जा सकता है।
History of Computer
कंप्यूटर का इतिहास कई सदियों पहले शुरू हुआ था जब मनुष्य ने गणना करने के लिए सबसे पहली डिवाइस का आविष्कार किया था, जिसका नाम अबैकस था। तभी से कंप्यूटर का विचार सरल कंप्यूटिंग मशीन जैसे- ABACUS, PASCALENE, NAPIOR BONE आदि से शुरू हुआ। कंप्यूटर के इतिहास में कुछ प्राचीन गणना उपकरणों के बारे मे बताया गया है, जो इस प्रकार हैं-
- ABACUS – माना जाता है चीनी लोगों द्वारा विकसित, एक लकड़ी के फ्रेम, धातु की छड़ों और लकड़ी के मोतियों से बना होता है, गोल मोतियों को खिसकाकर संख्याओं को गिनने, जोड़ने और घटाने के लिए किया जाता है।
- Napier Bones – जॉन नेपियर द्वारा 1617 में विकसित, उपकरण में हड्डी की छड़ों का उपयोग जहां इन छड़ों पर नंबर छपे होते थे गुणा और वर्गमूल कर सकता था।
- Pascaline – ब्लेज़ पास्कल (फ़्रांसीसी वैज्ञानिक) द्वारा 1642 मे विकसित, मूल्यों को जोड़ और घटा सकता था। ब्लेज़ पास्कल को मैकेनिकल कैलकुलेटर का जनक कहा जाता है।
- Leibniz Calculator – गॉट फ्रीड लिबनिज़ (जर्मन गणितज्ञ) ने 1673 में पास्कल कैलकुलेटर को संशोधित किया। उन्होंने लीबनिज़ कैलकुलेटर नामक एक मशीन विकसित की जो विभिन्न गणना आधारित गुणा और भाग भी कर सकती थी।
- Slide Ruler – विलियम ओउट्रेड द्वारा 17वीं शताब्दी मे विकसित, मुख्य रूप से गुणा और भाग करने के साथ वर्गमूल, जोड़ और घटाव जैसी गणनाएं भी की जा सकता था।
- Difference Engine – चार्ल्स बैबेज द्वारा 1820 में विकसित, यह एक स्वचालित यांत्रिक कैलकुलेटर था, जिसे बहुपद कार्यों (जोड़, घटाव, गुना, भाग) को सारणीबद्ध करने के लिए डिज़ाइन किया गया था। इस मशीन में दशमलव संख्या प्रणाली का भी उपयोग किया गया था।
- Analytical Engine – चार्ल्स बैबेज द्वारा 1837 में विकसित, सबसे आधुनिक यांत्रिक कंप्युटर था जो सभी प्रकार की सामान्य व जटिल गणनाओं को हल करने मे सक्षम था। इस मशीन को मुख्य चार घटकों से मिलकर बनाया गया था मिल, स्टोर, रीडर और प्रिंटर। ये सभी घटक आज आधुनिक कंप्यूटर के CPU, Memory, Input, Output आवश्यक घटक हैं। चार्ल्स बैबेज को आधुनिक कंप्यूटर का जनक कहते है।
- Mechanical Calculator – मैकेनिकल कंप्यूटर आकार मे छोटा, लीवर, गियर, और खाँचेदार पहियों से बना होता था। इसका उपयोग अंकगणित के बुनियादी कार्यों करने के लिए किया जाता था। 1960 के दशक तक मैकेनिकल कंप्यूटर का उपयोग जारी रखा गया बाद मे इलेक्ट्रॉनिक कैलक्यूलेटर आने से इस्तेमाल होना बंद हो गए।
- Electronic Calculator – पहला सॉलिड-स्टेट इलेक्ट्रॉनिक कैलकुलेटर 1960 के दशक की शुरुआत में बनाया गया, पॉकेट-आकार वाले कैलकुलेटर 1970 के दशक के आसपास विकसित हुए, जब इंटेल कंपनी ने 4004 नाम से पहला माइक्रोप्रोसेसर बनाया था। 4004 माइक्रोप्रोसेसर इंटेल कंपनी द्वारा जापानी कैलकुलेटर कंपनी Busicom के लिए विकसित किया गया था।
- Modern Computer – आधुनिक कंप्यूटर अड्वान्स के साथ स्मार्ट भी है, Laptop, Tablet, Smartphones सभी मॉडर्न कंप्यूटर के उदाहरण हैं। ये कंप्यूटर कैलकुलेशन के अलावा अन्य कार्य भी कर सकते हैं जैसे – डिज़ाइनिंग, डाटा फीडिंग, विडिओ प्ले, गेमिंग, डिवाइस कंट्रोलिंग इत्यादि।
Computer Generations
कंप्युटर जनरेशन का अध्ययन एक महत्वपूर्ण तकनीकी और ऐतिहासिक विषय है, जो हमें विभिन्न कंप्यूटर पीढ़ियों के विकास और प्रौद्योगिकी में परिवर्तनों को समझने में मदद करता है। कंप्यूटर को अभी तक पाँच पीढ़ियों मे विभाजित किया गया है, जो निम्न प्रकार है –
Main Highlighted Points of First Generation Computer
- समय अवधि : 1940-1956
- प्रमुख प्रौद्योगिकी : वैक्यूम ट्यूब (Vacuum Tube)
- प्रोग्रामिंग भाषा : मशीनी भाषा
- मेमोरी : मेग्नेटिक टेप एवं मेग्नेटिक ड्रम्स
- इनपुट/आउट्पुट इकाई : पंच कार्ड
- स्पीड : बहुत स्लो
- आकार : बहुत बड़ा
- उदाहरण : ENIAC, UNIVAC, EDSAC, मार्क 1
Main Highlighted Points of Second Generation Computer
- समय अवधि: 1956-1963
- प्रमुख प्रौद्योगिकी: ट्रांसिस्टर्स (Transistor)
- प्रोग्रामिंग भाषा : मशीनी व असेंबली भाषा
- मेमोरी : मेग्नेटिक कोर एवं मेग्नेटिक डिस्क
- इनपुट/आउट्पुट इकाई : मेग्नेटिक टेप एवं पंच कार्ड
- स्पीड : प्रथम पीढ़ी की अपेक्षा तेज
- आकार : प्रथम पीढ़ी की अपेक्षा सैकड़ों गुना छोटा
- उदाहरण: IBM 1401, CDC 1604
Main Highlighted Points of Third Generation Computer
- समय अवधि: 1963-1971
- प्रमुख प्रौद्योगिकी: इंटीग्रेटेड सर्किट (IC)
- प्रोग्रामिंग भाषा : हाई लेवल भाषा
- मेमोरी : लार्ज मेग्नेटिक कोर/डिस्क
- इनपुट/आउट्पुट : मेग्नेटिक टेप, मानीटर, कीबोर्ड, प्रिंटर
- स्पीड : दूसरी पीढ़ी से तेज
- आकार : दूसरी पीढ़ी से छोटा
- उदाहरण: IBM 360, DEC PDP-11
Main Highlighted Points of Fourth Generation Computer
- समय अवधि: 1971 – वर्तमान
- प्रमुख प्रौद्योगिकी: LSIC & VLSIC (माइक्रोप्रोसेसर्स)
- प्रोग्रामिंग भाषा : हाई लेवल भाषा
- मेमोरी : सेमी कंडक्टर मेमोरी (RAM, ROM)
- इनपुट/आउट्पुट : मानीटर, कीबोर्ड, प्रिंटर, स्कैनर, पोइंटिंग डिवाइस
- स्पीड : तीसरी पीढ़ी से तेज
- आकार : तीसरी पीढ़ी से छोटा
- उदाहरण: IBM PC, Apple Macintosh, Altair 8800
Main Highlighted Points of Fifth Generation Computer
- समय अवधि: वर्तमान – भविष्य
- प्रमुख प्रौद्योगिकी: ULSIC, Artificial intelligence (AI), Quantum Computing, Nanotechnology.
- प्रोग्रामिंग भाषा : हाई लेवल भाषा, Machine Learning
- मेमोरी : हाई कपेसिटी सेमी कंडक्टर मेमोरी (RAM, ROM)
- इनपुट/आउट्पुट : मानीटर, कीबोर्ड, प्रिंटर, माउस, टच स्क्रीन, टच पैड
- स्पीड : बहुत तेज
- आकार : बहुत छोटा
- उदाहरण: सुपर कंप्यूटर, वाणिज्यिक डेटा सेंटर, रोबॉट्स
Types of Computer
मुख्य रूप से कंप्यूटर तीन प्रकार के होते हैं –
- Analog – एनालॉग कंप्यूटर विशेष प्रकार के कंप्यूटर होते है। ये ताप (Temperature), दाब (Pressure), गति (Speed) या विद्युत प्रवाह (Electric Flow) जैसे भौतिक मानो (Physical Values) के आधार पर कार्य करते हैं। उदाहरण – Speedo Meter, Therma Meter, Pressure Meter आदि।
- Digital – डिजिटल कंप्यूटर अंकों (Digits) में सभी डेटा का प्रोसेसिंग (Processing) करता है। इन कंप्युटरों डिस्प्ले स्क्रीन होती है जिसके जरिए प्रोसेस हो रहे कार्यों को देखा भी जा सकता है। डाटा को इनपुट/आउटपुट करने के लिए इसमे इनपुट/आउटपुट यूनिट का उपयोग होता है। इनके निम्न प्रकार हैं –
- Micro Computer – आकार मे छोटे, स्पीड मे तेज, पर्सनल कार्यों के लिए डिजाइन किए गए। उदाहरण – Smartphone, Laptop, Notebook, Desktop आदि।
- Mini Computer – ये कंप्युटर माइक्रो कंप्युटर से बड़े, स्पीड मे तेज और महगें होते हैं, ये प्रायः टाइम शेयरिंग और डिस्ट्रिब्यूटेड डाटा प्रोसेसिंग मे उपयोग किए जाते हैं। उदाहरण – Bank Servers.
- Mainframe Computer – मेनफ्रेम कंप्यूटर बड़े संगठनों, बैंकों, सरकारी विभागों और व्यावसायिक संस्थाओं में उपयोग के लिए बनाए गए हैं। ये उच्च प्रदर्शन और बड़ी स्केल पर डेटा प्रोसेसिंग के लिए उपयोग किए जाते हैं।
- Super Computer – सुपर कंप्यूटर दुनिया के सबसे तेज और शक्तिशाली कंप्यूटर होते हैं। इनका उपयोग नई खोज, वैज्ञानिक अनुसंधान, उपग्रह प्रक्षेपण, मॉडलिंग, सिमुलेशन, मौसम पूर्वानुमान और बड़े डेटा सेट्स के विश्लेषण के लिए उपयोग किया जाता है। भारतीय परम (PARAM) और IBM – Blue Gene सुपर कंप्यूटर के उदाहरण हैं।
- Hybrid – हाइब्रिड कंप्यूटर (मिश्रित कंप्यूटर) एनालॉग और डिजिटल दोनों समायोजन होता है। जैसे- पेट्रोल पंप मशीनें, एटीएम मशीनें, एरोप्लेन मे इस्तेमाल होने वाले कंप्युटर आदि।
CPU (Central Processing Unit)
CPU कंप्यूटर या अन्य इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस का प्रमुख घटक (Component) होता है जो सभी निर्देशों और गणनाओं को प्रोसेस करता है। इसे अक्सर कंप्यूटर का मस्तिष्क भी कहा जाता है, क्योंकि यह विभिन्न सॉफ़्टवेयर प्रोग्राम्स और ऑपरेटिंग सिस्टम्स द्वारा प्राप्त आदेशों को निष्पादित करता है।

यूजर द्वारा इनपुट किए गए डाटा को प्रोसेस करने के लिए CPU निम्न चरणों का पालन करता है।
Input>Process>Output
- Input – निर्देश भेजना: इनपुट यूनिट के माध्यम से डेटा और निर्देशों को इनपुट किया जाता है।
- Process – डाटा को प्रोसेस करना: प्रोसेसिंग यूनिट (CPU) द्वारा इनपुट किए डाटा व निर्देशों को प्रोसेस किया जाता है।
- Output – डाटा आउट्पुट प्राप्त करना : आउटपुट यूनिट के माध्यम से प्रोसेस्ड डेटा का आउटपुट प्राप्त किया जाता है।
Main Component of CPU – CPU के तीन भाग होते हैं,
- Arithmetic Logic Unit – ALU : अंकगणितीय और तार्किक गणनाओं को हल करता है।
- Control Unit : कंप्यूटर के अन्य हिस्सों को निर्देशित करता है और आदेशों को निष्पादित करता है।
- Memory Unit : कैशै के रूप मे इस्तेमाल की जाने वाली रजिस्टर मेमोरी फास्ट होती है जो डेटा और निर्देशों को अस्थायी रूप से संग्रहित करते हैं।
Computer Devices
डिवाइसेस का इस्तेमाल कंप्यूटर मे डाटा को इनपुट व आउटपुट करने के लिए करते हैं, इन डिवाइसेस को दो श्रेणियों मे विभाजित किया जाता है-
Input Devices – इन डिवाइसेस के द्वारा सिस्टम को निर्देश व डाटा इनपुट किए जाते है, ये डिवाइसेस निम्न प्रकार है।
- Keyboard – इस डिवाइस के द्वारा कंप्यूटर मे डाटा टाइप किया जाता है।
- Mouse – इसे पोइंटिंग डिवाइस भी कहते है, इसका इस्तेमाल डिज़ाइनिंग बनाने मे तथा कंप्यूटर को तेजी से ऑपरैट करने के लिए किया जाता है।
- Trackball – यह माउस के समान ही डिवाइस है, इसमे कुछ अतितिक्त फंगक्शन होते है, जैसे इसमे एक बाल के जरिए पॉइन्टर (कर्सर) को मूव किया जाता है।
- Joystick – इस डिवाइस का इस्तेमाल डिजाइन बनाने मे तथा गेम खेलने मे किया जाता है।
- Touch Pad – यह डिवाइस लैपटॉप मे इस्तेमाल होती है, जो माउस की जगह इस्तेमाल होती है।
- Scanner – इस डिवाइस की मदद से किसी कागज पर प्रिन्ट सामग्री को डिजिटल रूप मे स्कैन कर सकते है। इनके विभिन्न उदाहरण हैं – BCR, MICR, OMR, OCR आदि।
Output Device – इन डिवाइसेस के द्वारा प्रोसेस डाटा का आउटपुट प्राप्त करते हैं, ये डिवाइसेस निम्न प्रकार है।
- Monitor – यह टीवी के समान डिवाइस है, जो सिस्टम पर प्रोसेस किए जा रहे कार्य को देखने के लिए इस्तेमाल होता है।
- Printer – इस डिवाइस के द्वारा डाटा का प्रिन्ट निकाल सकते हैं। प्रिंटर दो प्रकार के होते हैं, Impact printer और Non-Impact Printer. इम्पैक्ट प्रिंटर पुराने प्रिंटर हैं, जैसे – Typewriter, Drum Printer, Chain Printer आदि। नान-इम्पैक्ट प्रिंटर मॉडर्न प्रिंटर हैं, जैसे – Laser Printer, Inkjet Printer, Thermal Printer आदि।
- Speaker – कंप्यूटर से आवाज सुनने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
- Projector – किसी प्रस्तुति को बड़ी स्क्रीन पर दिखाने के लिए इस डिवाइस का इस्तेमाल किया जाता है।
- Plotter – प्लाटर एक प्रकार का प्रिंटर होता है, जो बड़ी साइज़ की इमेज प्रिन्ट करता है, जैसे- बैनर, होर्डिंग आदि।
Computer Memory
मेमोरी का उपयोग कंप्यूटर मे डाटा स्टोर करने के लिए किया जाता है, कंप्यूटर मे मेमोरी दो प्रकार की होती है।
- Primary Memory
- Secondary Memory
Primary Memory – इसका उपयोग मुख्य रूप से Data Processing और Program Operation मे किया जाता है। रियल टाइम मे प्रोसेस हो रहे कंप्यूटर पर सभी कार्य प्राइमरी मेमोरी मे ही स्टोर रहते हैं, इसलिए इसे Main Memory भी कहते हैं। प्राइमरी मेमोरी दो प्रकार की होती है –
- RAM (Random Access Memory) – यह एक वोलाटाइल मेमोरी है, जो कंप्यूटर के चालू रहने तक ही डाटा स्टोर रख सकती है, कंप्यूटर के बंद होते ही इसका सम्पूर्ण डाटा डिलीट हो जाता है। इस मेमोरी का इस्तेमाल कंप्यूटर मे Real Time Processing मे किया जाता है। इसके उदाहरण हैं – DDR RAM, SD RAM आदि।
- ROM (Read Only Memory) – यह एक नॉन-वोलाटाइल मेमोरी है, जिस वजह से कंप्यूटर के बंद रहने पर भी इस मेमोरी का डाटा डिलीट नहीं होता है। इस मेमोरी मे स्टोर डाटा को केवल रीड किया जा सकता है, यूजर द्वारा मिटाया नहीं जा सकता है। इस मेमोरी मे फर्मवेयर प्रोग्राम लोड रहते हैं जो कंप्यूटर को बूट (Boot) करने मे हेल्प करते है। इसके उदाहरण है – PROM, EPROM, EEPROM आदि।
- Cache Memory – कैशै मेमोरी सबसे फास्ट मेमोरी होती है। यह CPU के लिए रियल टाइम डाटा प्रोसेसिंग मे L1, L2, L3 कैशै के रूप मे इस्तेमाल होती है।
Secondary Memory – सेकन्डेरी मेमोरी का उपयोग मुख्य रूप से डाटा स्टोर करने के लिए किया जाता है। इस मेमोरी मे स्टोर किया डाटा परमानेंट रूप से स्टोर रहता है, कंप्यूटर के बंद/चालू होने से डाटा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। इस मेमोरी का साइज़ भी प्राइमेरी मेमोरी की तुलना मे कई गुना अधिक होता है, जिस वजह से इसमे बड़ी मात्रा मे डाटा स्टोर कर सकते है। इनके उदाहरण है –
- Hard Disk Drive (HDD) – हार्ड डिस्क एक डेटा स्टोरेज डिवाइस है जो डेटा को स्थायी रूप से संग्रहित करने के लिए प्रयोग किया जाता है। यह कंप्यूटर में ऑपरेटिंग सिस्टम, सॉफ्टवेयर, फ़ाइलें और अन्य डेटा को स्टोर करने का मुख्य तरीका है। एक हार्डडिस्क मे 1000 GB या इससे भी अधिक डाटा स्टोर किया जा सकता है।
- Floppy Disk Drive (FDD) – फ्लॉपी डिस्क का उपयोग 20वीं सदी के अंत में कंप्यूटरों में डेटा को संग्रहीत करने और स्थानांतरित करने के लिए किया जाता था। यह एक पतली, लचीली डिस्क होती है जो एक चौकोर प्लास्टिक के कवर में बंद होती है। इसे फ्लॉपी डिस्क या डिस्केट भी कहा जाता है। यह डिस्क 1.44MB डाटा स्टोर कर सकती थी।
- Solid State Drive (SSD) – यह उच्च क्षमता वाली लेटेस्ट डाटा स्टोरेज डिवाइस है जो हार्ड डिस्क से तेज और उन्नत है। इसे हार्ड डिस्क की जगह ही इस्तेमाल किया जाता है। यह डाटा स्टोर करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक IC chips का इस्तेमाल करती है, जिस वजह से यह पावर खपत कम तथा इसकी रीड/राइट स्पीड बहुत तेज होती है।
- CD/DVD – यह ऑप्टिकल स्टोरेज डिवाइस है, इसका इस्तेमाल मुख्य रूप से सॉफ्टवेयर व फाइल को स्टोर करने के लिए किया जाता है। CD/DVD ड्राइव की मदद से किसी भी कंप्यूटर पर सॉफ्टवेयर इंस्टालेशन व डाटा बैकअप/ट्रैन्स्फर के लिए उपयोग किया जाता है। Size : CD – 700 MB, DVD – 4.7GB
- Pen Drive – यह एक रिमूवबल स्टोरेज डिवाइस है, जिसे किसी भी कंप्यूटर पर USB पोर्ट की मदद से कनेक्ट किया जाता है। इसका उपयोग मुख्य रूप से डाटा बैकअप व ट्रैन्स्फर करने के लिए किया जाता है। एक पेनड्राइव कई GB डाटा स्टोर कर सकती है।
Memory Units
| Units | Equal To |
| 1 Bit | 0 or 1 |
| 4 Bit | 1 Nibble |
| 8 Bit | 1 Byte |
| 1024 Byte | 1 KB (Kilo byte) |
| 1024 Kilo byte | 1 MB (Mega byte) |
| 1024 Mega byte | 1 GB (Giga byte) |
| 1024 Giga byte | 1 TB (Tera byte) |
| 1024 Tera byte | 1 PB (Peta byte) |
| 1024 Peta byte | 1 EB (Exabyte) |
| 1024 Exabyte | 1 ZB (Zetta byte) |
| 1024 Zetta byte | 1 YB (Yetta byte) |
Hardware and Software
हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर दोनों ही कंप्युटर के महत्वपूर्ण भाग है, दोनों से मिलकर ही कंप्यूटर का निर्माण होता है।
Hardware – हार्डवेयर कंप्यूटर के भौतिक भाग (Physical Parts) होते है, यानि कंप्यूटर के वे सभी पार्ट्स जिन्हे छुआ, देखा व रिपेयर किया जा सकता है हार्डवेयर कहलाते हैं। जैसे – Cable, Circuit Board, Computer case, Keyboard, Mouse, Screen आदि।
Software – सॉफ्टवेयर कई निर्देशों से बने कंप्यूटर प्रोग्राम्स होते हैं, जिन्हे छू या देख तो नहीं सकते लेकिन इनके जरिए एक यूजर कंप्यूटर को ऑपरैट कर सकते हैं। सॉफ्टवेयर कई प्रकार के होते है-
- System Software – यह सॉफ्टवेयर विशेष रूप से सिस्टम के लिए डिजाइन किए जाते है, तथा इनकी कार्यप्रणाली कंप्युटर को मैनेज करना, यूजर मैनेजमेंट, डिवाइस मैनेजमेंट, मेमोरी मैनेजमेंट, सिक्युरिटी मैनेजमेंट आदि से संबंधित होती है। सबसे पहले कंप्युटर पर सिस्टम सॉफ्टवेयर लोड किया जाता है, जिसके बाद कंप्युटर ऑपरेशन के लिए रेडी होता है। सिस्टम सॉफ्टवेयर फैल हो जाने पर कंप्युटर स्टार्ट ही नहीं होता है। सिस्टम सॉफ्टवेयर को ऑपरेटिंग सिस्टम (Operating System) भी कहते है। इनके उदाहरण हैं – DOS, Windows, Linux, Mac आदि।
- Application Software – इस प्रकार के सॉफ्टवेयर यूजर के लिए डिजाइन किए जाते है, यानि यूजर अपनी आवश्यकता अनुसार इन सॉफ्टवेयर को कंप्यूटर पर अलग से इंस्टॉल करता है। इनके उदाहरण हैं – Chrome, Photoshop, MS Office, Tally, Media Players, Browsers, Video Game, Whatsapp, Skype आदि।
- Utility Software – इस प्रकार से सॉफ्टवेयर कंप्युटर के विभिन्न ऑपरेशन को मैनेज व कंट्रोल करने के लिए उपयोग किए जाते हैं, जैसे – Disk Cleanup, Windows Security, Disk Defragment, Windows Defender आदि।
- Device Driver Software – इस प्रकार के सॉफ्टवेयर किसी विशेष डिवाइस के लिए इंस्टॉल किए जाते हैं, जो कंप्युटर मे अलग से जोड़ी गई हो। डिवाइस ड्राइवर मे उस डिवाइस की कार्यप्रणाली शामिल होती है, जिसे कंप्युटर आसानी से समझ सकता है तथा डिवाइस का कंप्यूटर पर इस्तेमाल किया जा सकता है। इनके उदाहरण हैं – Printer driver, Sound driver, Ethernet driver, Bluetooth driver आदि।
Programming Languages
कंप्यूटर के लिए प्रोग्राम्स और सॉफ्टवेयर विकसित करने के लिए प्रोग्रामिंग भाषाओं का उपयोग किया जाता है। प्रोग्रामिंग भाषाएं दो प्रकार की होती है –
- Low Level Language (LLL)
- High Level Language (HLL)
Low Level Language – लो लेवल लैंग्वेज की मशीन फ़्रेंडली होती है, इसलिए इनकी संरचना जटिल होती है। इस भाषा मे प्रोग्राम कोड लिखने के लिए प्रोग्रामर को CPU और हार्डवेयर का गहरा ज्ञान होना आवश्यक है। ये भाषाएं निम्न प्रकार हैं।
- Binary Language – इसे मशीनी भाषा भी कहते हैं, यह ऐसी प्रोग्रामिंग भाषा है जो 0,1 के संयोजन से लिखी जाती है। यहाँ 0 का मतलब OFF और 1 का मतलब ON होता है। इस भाषा मे लिखे प्रोग्राम्स तेजी से एक्सक्यूट होते हैं, क्योंकि यह भाषा प्रोसेसर से साथ सीधे संवाद करती है। यह भाषा प्रोग्रामर के लिए कठिन हो सकती है, क्योंकि इस भाषा मे प्रोग्राम कोड लिखना और डिबग करना अन्य भाषाओ की तुलना मे कठिन होता है।
- Assembly Language – यह एक निम्न स्तरीय भाषा है जो मशीन भाषा के समान है, लेकिन यह मानव-पठनीय प्रारूप में लिखी जाती है। इसमें सिंबल और शॉर्टकट का उपयोग किया जाता है। जैसे – SUB, MUL, ADD, DIV आदि। इस भाषा मे लिखे प्रोग्राम को एक्सक्यूट करने के लिए असेम्बलर (Assembler) की आवश्यकता होती है, जो प्रोग्राम कोड को मशीनी भाषा मे बदल देता है।
- Microcode – यह एक निम्न स्तरीय भाषा है जो कंप्यूटर के प्रोसेसर के अंदरूनी कार्यों को नियंत्रित करने के लिए उपयोग की जाती है।
High Level Language – हाई लेवल लैंग्वेज प्रोग्रामर फ़्रेंडली होती है, यह भाषाएं मानव पठनीय रूप मे लिखी जाती हैं इसलिए इन भाषाओं मे प्रोग्राम लिखना और डिबग करना लो लेवल लैंग्वेज की तुलना मे सरल होता है। हाई लेवल लैंग्वेज मे लिखे प्रोग्राम को एक्सक्यूट कराने के लिए Compiler, Interpreter जैसे लैंग्वेज ट्रांसलेटर की आवश्यकता होती है, क्योंकि कंप्युटर सीधे हाई लेवल भाषा को नहीं समझ सकता। लैंग्वेज ट्रान्सलेटर हाईलेवल भाषा को मशीनी भाषा मे बदल देता है। प्रोग्रामर को इस भाषा मे प्रोग्राम कोड लिखने के लिए हार्डवेयर का गहरा ज्ञान होने की आवश्यकता भी नहीं है। इन भाषाओ के उदाहरण हैं – C, C++, Java, Python, PHP , C# आदि।
Language Translator
लैंग्वेज ट्रांसलटोर जिसे भाषा अनुवादक कहते हैं। इसका उपयोग हाई लेवल लैंग्वेज मे लिखे प्रोग्राम कोड को मशीन कोड मे परिवर्तित करने के लिए किया जाता हैं, ये निम्न प्रकार हैं –
- Assembler – असेंबली भाषा मे लिखे प्रोग्राम कोड को मशीनी भाषा मे परिवर्तित करता है।
- Compiler – हाईलेवल भाषा मे लिखे प्रोग्राम कोड को मशीनी भाषा मे ट्रान्सलेट करता है, यह तेज है तथा सम्पूर्ण कोड को एक ही बार मे ट्रान्सलेट कर देता है।
- Interpreter – हाईलेवल भाषा मे लिखे प्रोग्राम कोड को मशीनी भाषा मे लाइन बाई लाइन ट्रान्सलेट करता है, यह कम्पाइलर से धीमा है।
Important Terms of Computer
Power supply (SMPS) – यह कंप्यूटर के विभिन्न कम्पोनेन्ट को पावर प्रदान करता है, यह AC Voltage लेता है तथा DC voltage आउटपुट करता है। इसकी फुल फॉर्म Switch Mode Power Supply है।
Mother Board – यह कंप्यूटर का मुख्य सर्किट बोर्ड होता है, कंप्यूटर के सभी पार्ट्स व डिवाइसेस जैसे – RAM, CPU, HDD, Mouse, Keyboard आदि इसी से कनेक्ट रहते हैं।
CMOS – इसका का मतलब है “Complementary Metal-Oxide-Semiconductor”, यह एक प्रकार की सेमीकंडक्टर चिप है जो मदरबोर्ड पर पाई जाती है। यह बैटरी से चलने वाली मेमोरी चिप है जो महत्वपूर्ण सिस्टम सेटिंग्स जैसे कि सिस्टम टाइम, डेट और हार्डवेयर कॉन्फ़िगरेशन को संग्रहीत करती है।
BIOS –BIOS, जो कि “Basic Input/Output System” का संक्षिप्त रूप है, एक फर्मवेयर प्रोग्राम है जो कंप्यूटर के बूटिंग प्रक्रिया के दौरान हार्डवेयर घटकों को आरंभ और परीक्षण करता है। यह ऑपरेटिंग सिस्टम को हार्डवेयर डिवाइस के साथ संवाद करने के लिए आवश्यक रूटीन प्रदान करता है।
POST – पोस्ट (POST) का अर्थ है “Power-On Self-Test”, यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो कंप्यूटर को चालू करने के तुरंत बाद होती है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कंप्यूटर के सभी घटक सही ढंग से काम कर रहे हैं।
Booting – बूटिंग (Booting) कंप्यूटर को शुरू करने की प्रक्रिया है। यह कंप्यूटर को पावर ऑन करने या रीस्टार्ट करने से शुरू होता है और ऑपरेटिंग सिस्टम को मेन मेमोरी (RAM) में लोड करने तक जारी रहता है। बूटिंग के दौरान, कंप्यूटर के हार्डवेयर घटक जांच किए जाते हैं और फिर ऑपरेटिंग सिस्टम लोड किया जाता है, जिससे कंप्यूटर उपयोग के लिए तैयार हो जाता है।
Log off – यूजर अकाउंट से बाहर निकालना, यानि वर्तमान यूजर को बंद करना।
Log on – किसी यूजर के अकाउंट से कंप्यूटर को स्टार्ट करना।
Administrator or Admin User- कंप्यूटर का वह यूजर जिसके पर कंप्यूटर की फुल अथॉरिटी हो, यानि ऐड्मिन यूजर कंप्यूटर को पूर्ण रूप से प्रबंधित कर सकता है।
Local User – लोकल यूजर के पास सीमित पावर होती है, जिससे वह कंप्यूटर मे पूर्ण रूप से प्रबंधन नहीं कर सकता है।
Virus – कंप्यूटर वायरस एक हानिकारक सॉफ़्टवेयर प्रोग्राम है जो कंप्यूटर सिस्टम को संक्रमित कर सकता है। यह एक दुर्भावनापूर्ण कोड होता है जो खुद को दोहराता है, फैल सकता है, और कंप्यूटर मे उपलब्ध डाटा को नुकसान पहुंचा सकता है।
Antivirus – एक सॉफ्टवेयर प्रोग्राम जो कंप्यूटर मे छिपे वायरस को खोजता है, उन्हे कंप्यूटर से डिलीट करता है तथा कंप्यूटर को वायरस से सुरक्षित रखता है।
Browser – कंप्यूटर पर इंटरनेट सर्फिंग/ब्राउज़िंग करने के लिए सॉफ्टवेयर प्रोग्राम होता है, जैसे – Chrome, Mozilla, Safari आदि।
USB – इसका पूरा नाम Universal Serial Bus है, यह एक प्रकार का इंटरफेस है जिसकी मदद से कंप्यूटर मे विभिन्न प्रकार की डिवाइसेस को कनेक्ट किया जा सकता है, जैसे – Pendrive, Keyboard, Mouse, Printer आदि।
HDMI – इसका पूरा नाम High-Definition Multimedia Interface है, इसकी मदद से डिस्प्ले डिवाइस को कंप्युटर से कनेक्ट किया जा सकता है। जैसे – TV, Monitor आदि।
VGA – इसका पूरा नाम Video Graphics Array है, यह एक प्रकार की केबल है इसकी मदद से TV, Monitor, Projector को कंप्यूटर से जोड़ा जा सकता है।
Command – कमांड एक प्रकार का निर्देश है जो कंप्यूटर को किसी कार्य को परफ़ॉर्म करने के लिए दिया जाता है।
Task – कंप्यूटर पर रन हो रहे विभिन्न कार्य टास्क कहलाते हैं।
Desktop – यह मॉनिटर स्क्रीन प्रदर्शित ऑपरेटिंग सिस्टम का मुख्य पेज होता है, जहां टास्कबार,आइकन्स, और वॉलपेपर प्रदर्शित होते है।
Icons – यह प्रोग्राम व अप्लीकेशन के लिंक होते हैं, जो एक पिक्चर के रूप मे दिखाई देते हैं। इन आइकन्स पर क्लिक करके प्रोग्राम को ओपन किया जाता है।
Folder/Directory – विभिन्न प्रकार की फ़ाइलों को व्यस्थित रूप से अलग-अलग लोकैशन पर सेव (Save) करने के लिए फ़ोल्डर या डायरेक्टरी का उपयोग किया जाता है।
Files – फाइल मे यूजर द्वारा क्रीऐट किया गया डाटा स्टोर होता है। यह टेक्स्ट, इमेज, ऑडियो, वीडियो, या सॉफ़्टवेयर प्रोग्राम के रूप मे हो सकती है।
Download – इंटरनेट से किसी फाइल को कंप्यूटर मे सेव करना डाउनलोड कहलाता है।
Upload – कंप्यूटर से इंटरनेट पर किसी फाइल को सेव करना अपलोड कहलाता है।
Resolution – रो (Row) और कॉलम (Column) मे व्यस्थित हजारों Pixels का संग्रह रेसोल्यूशन कहलाता है, पिक्सेल की मात्रा जितनी अधिक होगी तस्वीर उतनी क्लीयर व शार्प होगी, यानि रेसोल्यूशन बेहतर होगा।
Pixels – स्क्रीन पर प्रदर्शित छोटे-छोटे बिन्दु जो किसी तस्वीर (ग्राफिक) का निर्माण करते हैं, Pixels कहलाते हैं।
Drag & Drop – किसी ऑब्जेक्ट को माउस द्वारा मूव करना Drag तथा छोड़ना Drop कहलाता है।
Internet – इंटरनेट, जिसे नेटवर्क का नेटवर्क भी कहा जाता है, एक वैश्विक कंप्यूटर नेटवर्क है जो दुनिया भर के कंप्यूटरों को एक साथ जोड़ता है। यह लोगों को जानकारी साझा करने, संवाद करने और इंटरनेट कनेक्शन के माध्यम से किसी भी जगह से डेटा और संसाधनों तक पहुँचने में सक्षम बनाता है। इंटरनेट का विकास 1960 के दशक में शुरू हुआ था, जब ARPANET नामक एक शुरुआती नेटवर्क बनाया गया था। बाद में, TCP/IP प्रोटोकॉल विकसित किया गया, जिससे विभिन्न नेटवर्क को एक-दूसरे से संवाद करने की अनुमति मिली।
Network – नेटवर्क (network) दो या दो से अधिक कंप्यूटरों या अन्य उपकरणों का एक समूह होता है जो एक दूसरे से केबल या वायरलेस (Wireless) तकनीक से जुड़े होते हैं और डेटा या संसाधनों का आदान-प्रदान करते हैं। इसे कंप्यूटर नेटवर्क, या इंटरनेट भी कहा जा सकता है। नेटवर्क के माध्यम से, हम फ़ाइलों को साझा कर सकते हैं, संचार कर सकते हैं, और संसाधनों तक पहुंच सकते हैं।
Ethernet – ईथरनेट (Ethernet) एक कंप्यूटर नेटवर्क प्रौद्योगिकी है जो उपकरणों को लोकल एरिया नेटवर्क (LAN) और वाइड एरिया नेटवर्क (WAN) में एक साथ जोड़ती है। यह एक वायर कनेक्शन के माध्यम से काम करता है और डेटा पैकेट के प्रबंधन के लिए प्रोटोकॉल का एक सेट उपयोग करता है, जो नेटवर्क पर सूचना के कुशल प्रवाह की अनुमति देता है।
Wifi – वाई-फाई (Wi-Fi) एक वायरलेस तकनीक है जो आपके डिवाइस को इंटरनेट से जोड़ने के लिए रेडियो तरंगों का उपयोग करती है। यह वायरलेस लोकल एरिया नेटवर्क (WLAN) का एक मानक है जो IEEE 802.11 पर आधारित है। वाई-फाई का उपयोग करके आप अपने लैपटॉप, स्मार्टफोन, टैबलेट, और अन्य उपकरणों को बिना किसी केबल के इंटरनेट से जोड़ सकते हैं।
Bluetooth – ब्लूटूथ एक वायरलेस तकनीक है जिसका इस्तेमाल दो डिवाइस (Smartphone, Laptop, Tablet etc.) को बिना केबल के एक-दूसरे से कनेक्ट करने के लिए किया जाता है। यह कम दूरी पर डेटा ट्रांसफर करने के लिए रेडियो तरंगों का उपयोग करता है, जिससे आपको तारों की आवश्यकता नहीं होती है।
LAN – LAN, यानी लोकल एरिया नेटवर्क, एक ऐसा कंप्यूटर नेटवर्क है जो एक सीमित क्षेत्र, जैसे कि एक ही इमारत या परिसर, के भीतर कंप्यूटरों को आपस मे जोड़ता है। यह एक छोटे से नेटवर्क में कई कंप्यूटरों को आपस में जोड़ने का एक तरीका है, जिससे वे एक-दूसरे के साथ डेटा और संसाधनों को साझा कर सकें।
MAN – MAN, जिसका पूरा नाम मेट्रोपॉलिटन एरिया नेटवर्क है, एक कंप्यूटर नेटवर्क है जो एक बड़े भौगोलिक क्षेत्र, जैसे शहर, कई शहरों या कस्बों को आपस में जोड़ता है। यह LAN (लोकल एरिया नेटवर्क) से बड़ा और WAN (वाइड एरिया नेटवर्क) से छोटा होता है।
WAN – WAN का मतलब है वाइड एरिया नेटवर्क (Wide Area Network)। यह एक बड़ा कंप्यूटर नेटवर्क है जो दो या उससे अधिक स्थानीय क्षेत्र नेटवर्क (LAN) या अन्य नेटवर्क को एक बड़े भौगोलिक क्षेत्र में जोड़ता है, जैसे कि शहर, देश या यहाँ तक कि दुनिया भर में।
Network Topology – नेटवर्क टोपोलॉजी, किसी नेटवर्क में नोड्स (डिवाइसेस) और उनके बीच के कनेक्शनों की व्यवस्था होती है। यह बताता है कि डिवाइस आपस मे कैसे जुड़े हुए हैं और कैसे एक-दूसरे के साथ डेटा का आदान-प्रदान करते हैं।
- बस टोपोलॉजी (Bus Topology):सभी डिवाइस एक मुख्य केबल से जुड़े होते हैं।
- स्टार टोपोलॉजी (Star Topology):सभी डिवाइस एक केंद्रीय डिवाइस से जुड़े होते हैं।
- रिंग टोपोलॉजी (Ring Topology):सभी डिवाइस एक रिंग में जुड़े होते हैं।
- मेश टोपोलॉजी (Mesh Topology):सभी डिवाइस एक-दूसरे से जुड़े होते हैं।
- ट्री टोपोलॉजी (Tree Topology):एक मुख्य रूट केबल से शाखाएं निकलती हैं, जिन पर डिवाइस जुड़े होते हैं।
Switch – नेटवर्क स्विच (Network Switch) एक नेटवर्किंग हार्डवेयर डिवाइस है जो विभिन्न उपकरणों (जैसे – कंप्यूटर, लैपटॉप, प्रिंटर) के बीच डेटा को भेजने और प्राप्त करने में मदद करता है। यह एक ही नेटवर्क में कई उपकरणों को एक साथ जोड़ता है, जिससे वे एक-दूसरे के साथ संवाद (Communication) कर सकते हैं।
Router – राउटर एक कंप्यूटर नेटवर्किंग उपकरण है जो डेटा पैकेट को एक नेटवर्क से दूसरे नेटवर्क में स्थानांतरित करता है। यह इंटरनेट पर डेटा के फ्लो को नियंत्रित करता है और विभिन्न नेटवर्क को आपस में जोड़ता है। यह एक ऐसा उपकरण भी है जो कई उपकरणों को एक ही इंटरनेट कनेक्शन का उपयोग करने की अनुमति देता है।
IP Address – IP का मतलब है “Internet Protocol Address”, यह एक अनूठा पता है जो इंटरनेट से जुड़े हर डिवाइस, जैसे कि कंप्यूटर, मोबाइल फोन, प्रिंटर को दिया जाता है। यह पता एक संख्यात्मक लेबल के रूप में होता है, जैसे कि 192.168.0.1, IP पता डिवाइस को नेटवर्क पर पहचानने और डेटा भेजने और प्राप्त करने के लिए आवश्यक है।
Email – ईमेल (e-mail) का मतलब होता है “इलेक्ट्रॉनिक मेल”। यह इंटरनेट के माध्यम से कंप्यूटर या अन्य डिवाइस का उपयोग करके लोगों के बीच संचार का एक तरीका है। आप ईमेल का उपयोग करके टेक्सट, चित्र, फाइलें, और कई अन्य प्रकार के दस्तावेज भेज सकते हैं।
Protocol – नेटवर्क प्रोटोकॉल नियमों का एक समूह है जो यह बताता है कि नेटवर्क में जुड़े डिवाइस कैसे संचार करते हैं। यह एक प्रकार की भाषा है जो डिवाइसों को डेटा का आदान-प्रदान करने की अनुमति देती है, चाहे वे कैसे बने हों या उन्हें कैसे संचालित किया जाए।
- HTTP: यह वेब ब्राउज़र और वेब सर्वर के बीच संचार के लिए उपयोग किया जाता है।
- TCP/IP: यह इंटरनेट पर डेटा भेजने और प्राप्त करने का सबसे आम प्रोटोकॉल है।
- SMTP: यह ईमेल भेजने के लिए उपयोग किया जाता है।
- FTP: यह फ़ाइलें स्थानांतरित करने के लिए उपयोग किया जाता है।
Internet and Network (इंटरनेट और नेटवर्क)
आज की दुनिया में, इंटरनेट और नेटवर्क (Internet and Network) हमारी ज़िंदगी का अभिन्न हिस्सा बन गए हैं। सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक, हम लगातार इनसे जुड़े रहते हैं। चाहे वह अपने दोस्तों और परिवार से जुड़ना हो, ऑनलाइन शॉपिंग करना हो, या फिर दुनिया भर की जानकारी तक पहुँचना हो, यह सब इन्हीं के माध्यम से संभव है। इस ब्लॉग पोस्ट में, हम Internet and Network की इस रोमांचक दुनिया में गहराई से उतरेंगे। हम समझेंगे कि ये कैसे काम करते हैं, ये कितने प्रकार के होते हैं, और हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी पर इनका क्या प्रभाव पड़ता है। तो चलिए, इस डिजिटल यात्रा को शुरू करते हैं!
इंटरनेट क्या है?
इंटरनेट, जिसे “नेटवर्क का नेटवर्क” भी कहा जाता है, यह एक विश्वव्यापी नेटवर्क है जो दुनिया भर के कंप्यूटरों को आपस में जोड़ती है। इसमे बहुत से स्थानीय, क्षेत्रीय, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क परस्पर आपस मे जुड़े होते हैं। इंटरनेट आपको जानकारी साझा करने, संवाद करने और विभिन्न प्रकार की सेवाओं का उपयोग करने की अनुमति देता है, जैसे कि ईमेल, सोशल मीडिया, ऑनलाइन बैंकिंग और ऑनलाइन शॉपिंग आदि।
Internet and Network से संबंधित बुनियादी जानकारी
ARPANET : ARPANET, जिसका मतलब एडवांस्ड रिसर्च प्रोजेक्ट्स एजेंसी नेटवर्क है, इंटरनेट का पूर्ववर्ती था। यह एक शुरुआती पैकेट-स्विच्ड नेटवर्क था और TCP/IP प्रोटोकॉल सूट को लागू करने वाला पहला नेटवर्क था। यह नेटवर्क अमेरिकी रक्षा विभाग की एडवांस्ड रिसर्च प्रोजेक्ट्स एजेंसी (ARPA) द्वारा वित्तपोषित था, और इसे इंटरनेटवर्किंग प्रौद्योगिकी विकास और परीक्षण के लिए एक परीक्षण स्थल के रूप में इस्तेमाल किया गया था।
World Wide Web : वर्ल्ड वाइड वेब (WWW) एक सूचना प्रणाली है जो इंटरनेट पर उपलब्ध दस्तावेजों और अन्य संसाधनों को हाइपरलिंक के माध्यम से जोड़ती है। यह एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा हम विभिन्न वेबसाइटों और वेब पेजों तक पहुँच सकते हैं। इसे अक्सर “वेब” या “W3” भी कहा जाता है। संक्षेप में, WWW इंटरनेट का एक हिस्सा है जो हमें जानकारी तक पहुंचने और साझा करने की अनुमति देता है।
Web Page : वेब पेज एक हाइपरटेक्स्ट दस्तावेज़ (Document) है जिसे वर्ल्ड वाइड वेब पर देखा जा सकता है। यह एक वेबसाइट का हिस्सा होता है, और इसे वेब ब्राउज़र में प्रदर्शित किया जाता है। एक वेब पेज में टेक्स्ट, इमेज, वीडियो, और अन्य वेब पेजों के लिंक शामिल हो सकते हैं।
Web Site : वेबसाइट एक डिजिटल प्लेटफॉर्म है जहां किसी संगठन, व्यक्ति, या विशिष्ट विषय से संबंधित जानकारी और अन्य सामग्री साझा की जाती है। इसमें वेब पेज, चित्र, वीडियो, और अन्य प्रकार की सामग्री शामिल हो सकती है। एक वेबसाईट को वेब सर्वर (Web Server) पर प्रकाशित किया जाता है, जिससे कोई भी वेबसाईट की सामग्री को एक्सेस कर सकता है।
Home Page : होम पेज (Homepage) किसी वेबसाइट का मुख्य पेज होता है, जो वेबसाइट पर आने वाले उपयोगकर्ताओं के लिए शुरुआती बिंदु के रूप में काम करता है। यह वेबसाइट के बाकी पेजों के लिए एक नेविगेशन केंद्र भी होता है, जिससे उपयोगकर्ता वेबसाईट के विभिन्न अनुभागों तक पहुंच सकते हैं।
URL : URL का मतलब है Uniform Resource Locator, यह एक वेब एड्रेस होता है जो इंटरनेट पर किसी विशिष्ट संसाधन (जैसे कि वेबपेज, इमेज, वीडियो, या फ़ाइल) का पता बताता है। यह एक तरह से किसी वेबसाइट या वेबपेज का पता होता है, जिसे जरिए आप उस तक पहुँच सकते हैं। उदाहरण के लिए, “https://www.google.com” एक URL है जो आपको Google के होम पेज पर ले जाएगा।
IP Address : आईपी एड्रेस (IP Address) एक अद्वितीय संख्यात्मक लेबल है जो इंटरनेट से जुड़े प्रत्येक डिवाइस को दिया जाता है। यह एक तरह का ऑनलाइन पता है जो आपके कंप्यूटर, स्मार्टफोन या किसी भी इंटरनेट से जुड़े डिवाइस को पहचानने में मदद करता है।
आईपी एड्रेस दो मुख्य प्रकार के होते हैं: IPv4 और IPv6:
- IPv6: यह 128-बिट एड्रेस होता है और इसे हेक्साडेसिमल अंकों के आठ समूहों के रूप में दर्शाया जाता है, जैसे 2001:0db8:85a3:0000:0000:8a2e:0370:7334.
- IPv4: यह 32-बिट एड्रेस होता है और इसे चार संख्याओं के रूप में दर्शाया जाता है, जैसे 192.168.1.1.
Domain : डोमेन (Domain) एक विशिष्ट नाम होता है जो इंटरनेट पर किसी वेबसाइट या ऑनलाइन सेवा की पहचान करता है। यह एक ऐसा पता है जिसे लोग वेबसाइटों तक पहुंचने के लिए ब्राउज़र में टाइप करते हैं। डोमेन नाम, संख्याओं के एक समूह (आईपी एड्रेस) के बजाय, एक मानव-पठनीय नाम होता है, जो इसे याद रखना और उपयोग करना आसान बनाता है। उदाहरण के लिए, “google.com” एक डोमेन नाम है।
Web Server : वेब सर्वर एक कंप्यूटर प्रोग्राम या एक कंप्यूटर है जो इंटरनेट पर वेब पेजों को संग्रहीत, संसाधित और वितरित करने के लिए ज़िम्मेदार है। जब कोई उपयोगकर्ता किसी वेबसाइट पर जाता है, तो उसका ब्राउज़र एक अनुरोध भेजता है, और वेब सर्वर उस अनुरोध को संसाधित करता है और अनुरोधित वेब पेजों को वापस भेजता है।
Web Hosting : वेब होस्टिंग एक ऐसी सेवा है जो आपकी वेबसाइट को इंटरनेट पर उपलब्ध कराती है। यह एक वेब सर्वर पर आपकी वेबसाइट की फाइलों को संग्रहीत करने की प्रक्रिया है, ताकि दुनिया भर के लोग आपकी वेबसाइट को देख सकें।
Web Browser : एक वेब ब्राउज़र एक सॉफ्टवेयर एप्लीकेशन है जो आपको इंटरनेट पर वेबसाइटों और वेब पेजों को देखने व ब्राउज़ करने की अनुमति देता है। यह एक ऐसा टूल है जो आपको वर्ल्ड वाइड वेब (WWW) पर जानकारी खोजने और एक्सेस करने में मदद करता है। उदाहरण के लिए, Google Chrome, Mozilla Firefox, Safari, और Microsoft Edge कुछ लोकप्रिय वेब ब्राउज़र हैं।
Internet Service Provider (ISP): इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर (आईएसपी) एक ऐसी कंपनी है जो व्यक्तियों और संगठनों को इंटरनेट सेवा प्रदान करती है। यह एक गेटवे की तरह काम करता है, जिससे आप उनके नेटवर्क से जुड़कर अपने उपकरणों का उपयोग करके इंटरनेट एक्सेस कर सकते हैं। आईएसपी विभिन्न प्रकार की सेवाएं प्रदान करते हैं, जैसे कि ब्रॉडबैंड, डायल-अप, और सैटेलाइट इंटरनेट।
- Broadband : ब्रॉडबैंड आईएसपी उच्च गति वाले इंटरनेट कनेक्शन प्रदान करते हैं, जैसे कि फाइबर ऑप्टिक, केबल, और डीएसएल।
- Dial-up : डायल-अप आईएसपी कम गति वाले इंटरनेट कनेक्शन प्रदान करते हैं, जो आमतौर पर टेलीफोन लाइनों का उपयोग करते हैं।
- Satellite : सैटेलाइट आईएसपी उन क्षेत्रों में इंटरनेट एक्सेस प्रदान करते हैं जहां अन्य प्रकार के कनेक्शन उपलब्ध नहीं हैं।
Search Engine : सर्च इंजन एक सॉफ्टवेयर प्रोग्राम है जो उपयोगकर्ताओं को इंटरनेट पर जानकारी खोजने में मदद करता है। यह एक ऐसा टूल है जो आपको कीवर्ड या वाक्यांशों का उपयोग करके ऑनलाइन सामग्री खोजने की अनुमति देता है। सर्च इंजन वेब पेजों को क्रॉल और इंडेक्स करते हैं। जब आप कोई क्वेरी दर्ज करते हैं, तो यह आपके द्वारा खोजे जा रहे कीवर्ड से संबंधित वेब पेजों की एक सूची लौटाता है। कुछ लोकप्रिय सर्च इंजन है, Google, Yahoo, Bing आदि।
Downloading : डाउनलोडिंग का मतलब है, किसी दूसरे कंप्यूटर या इंटरनेट से अपने कंप्यूटर में डेटा (जैसे फ़ाइलें, चित्र, वीडियो, आदि) सेव करना।
Uploading : अपलोडिंग का मतलब है, अपने कंप्यूटर या डिवाइस से डेटा को इंटरनेट पर भेजना सेव करना। जैसे – गूगल ड्राइव, वन ड्राइव, क्लाउड स्टोरेज आदि।
Online Chatting : ऑनलाइन चैटिंग, इंटरनेट के माध्यम से दो या दो से अधिक लोगों के बीच वास्तविक समय में टेक्स्ट-आधारित संवाद (बातचीत) है। इसे Instant Messaging या Chat के रूप में भी जाना जाता है, और यह आमतौर पर Small Text का आदान-प्रदान होता है ताकि अन्य प्रतिभागियों को तुरंत जवाब देने में सक्षम बनाया जा सके। ऑनलाइन चैट करने के विभिन्न माध्यम है, जैसे – Facebook Messenger, Whatsapp, Telegram, Snapchat आदि।
Video Conferencing : वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग, जिसे वीडियो मीटिंग या वेब कॉन्फ्रेंसिंग भी कहा जाता है, एक ऐसी तकनीक है जो दो या दो से अधिक लोगों को एक साथ जोड़ती है, ताकि वे लाइव वीडियो और ऑडियो के माध्यम से बातचीत कर सकें, जैसे कि वे एक ही कमरे में मौजूद हों। यह तकनीक विभिन्न स्थानों पर मौजूद लोगों को एक-दूसरे से जुड़ने और संवाद करने का एक प्रभावी तरीका प्रदान करती है। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग करने के लिए विभिन्न प्लेटफॉर्म्स Zoom, Google Meet, Microsoft Teams, Skype आदि।
Blogging : ब्लॉगिंग, एक ऑनलाइन गतिविधि है जिसमें किसी व्यक्ति या समूह द्वारा, किसी वेबसाइट या ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर लेख, फोटो, वीडियो, या अन्य प्रकार की सामग्री प्रकाशित करते हैं। इसे एक तरह का ऑनलाइन जर्नल या डायरी भी माना जा सकता है, जहाँ लोग अपने विचारों, अनुभवों, रुचियों, या किसी खास विषय पर जानकारी साझा व टिप्पणी करते हैं। ब्लॉगिंग में न केवल सामग्री लिखना शामिल है, बल्कि ब्लॉग को बनाना, उसे प्रबंधित करना, और पाठकों के साथ जुड़ना भी शामिल है।
Social Networking : सोशल नेटवर्किंग, जिसे सोशल मीडिया या सोशल नेटवर्किंग साइट्स भी कहा जाता है, एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें लोग ऑनलाइन प्लेटफॉर्म (X, Facebook, LinkedIn) का उपयोग करके एक-दूसरे से जुड़ते हैं, जानकारी साझा करते हैं, और ऑनलाइन दोस्त बनाते हैं। यह एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा लोग अपने दोस्तों, परिवार, और अन्य लोगों से संपर्क में रह सकते हैं, अपनी रुचियों के बारे में जानकारी साझा कर सकते हैं, और नए लोगों से मिल सकते हैं।
Information Communication Technology (ICT) : आईसीटी का मतलब सूचना और संचार प्रौद्योगिकी है। यह एक व्यापक शब्द है जो विभिन्न प्रकार की तकनीकों को संदर्भित करता है जिनका उपयोग सूचना को संप्रेषित करने, संसाधित करने, संग्रहीत करने और प्रबंधित करने के लिए किया जाता है।
आईसीटी में शामिल हैं-
- कंप्यूटर, डेस्कटॉप, लैपटॉप, टैबलेट, आदि।
- सॉफ्टवेयर, ऑपरेटिंग सिस्टम, एप्लिकेशन, आदि।
- इंटरनेट, वायरलेस नेटवर्क, आदि।
- मोबाइल डिवाइस, स्मार्टफोन, आदि।
- दूरसंचार, टेलीफोन, रेडियो, टेलीविजन, आदि।
- डिजिटल कैमरे, वीडियो रिकॉर्डर आदि।
आईसीटी का उपयोग विभिन्न क्षेत्रों में किया जाता है, जैसे-
- शिक्षा – शिक्षण और सीखने की प्रक्रिया को बेहतर बनाने के लिए।
- स्वास्थ्य – रोगियों की देखभाल और उपचार में सुधार करने के लिए।
- व्यवसाय – संचार, डेटा प्रबंधन और निर्णय लेने में सुधार करने के लिए।
- सरकारी सेवाएं – सार्वजनिक सेवाओं और सूचनाओं तक पहुंच प्रदान करने के लिए।
- संचार – दुनिया भर में लोगों को जोड़ने और जानकारी साझा करने के लिए।
- मनोरंजन – फिल्मों, संगीत और अन्य सामग्री तक पहुंच प्रदान करने के लिए।
आईसीटी ने हमारे जीवन के लगभग हर पहलू को बदल दिया है, और इसका प्रभाव आने वाले वर्षों में और भी अधिक महत्वपूर्ण होने की संभावना है।
E-Governance : ई-गवर्नेंस, जिसे इलेक्ट्रॉनिक शासन भी कहा जाता है, सरकार और सार्वजनिक क्षेत्र में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) का उपयोग है, जिसका उद्देश्य शासन को बेहतर बनाना है। यह नागरिकों, व्यवसायों और सरकार के बीच लेनदेन को सरल, कुशल और पारदर्शी बनाने के लिए आईसीटी का उपयोग है।
उदाहरण के लिए, भारत में, ई-गवर्नेंस पहल में Online Pan Card, Aadhar Card, Online Passport, e-FIR, और Bhulekh जैसी सेवाएं शामिल हैं।
ई-गवर्नेंस के कई लाभ हैं, जिनमें शामिल हैं:
- नागरिकों के लिए बेहतर सेवा वितरण, बढ़ी हुई पहुंच, और बढ़ी हुई पारदर्शिता।
- व्यवसायों के लिए लागत कम करना, दक्षता में वृद्धि, और बेहतर व्यापार करने की स्थिति।
- सरकार के लिए लागत कम करना, दक्षता में वृद्धि, और नागरिकों के साथ बेहतर संबंध।
ई-गवर्नेंस, शासन को बेहतर बनाने और नागरिकों और व्यवसायों के लिए बेहतर सेवाएं प्रदान करने का एक शक्तिशाली माध्यम है।
Email : ईमेल, या इलेक्ट्रॉनिक मेल, इंटरनेट के माध्यम से संदेशों (जैसे टेक्स्ट, फाइलें, आदि) को भेजने और प्राप्त करने का एक तरीका है। यह एक डिजिटल संचार प्रणाली है जो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को संदेश भेजने के लिए कंप्यूटर और अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का उपयोग करती है। ईमेल भेजने और प्राप्त करने के लिए एक ईमेल खाता की आवश्यकता होती है जिसे विभिन्न ईमेल सेवा प्रदाता (Gmail, Hotmail, Yahoo) से फ्री मे प्राप्त कर सकते हैं। इसके लिए इन कंपनियों की साइट पर ऑनलाइन रजिस्ट्रैशन करना होगा, जिसमे आपकी बेसिक जानकारी और वेरीफिकेशन शामिल हो सकता है। ईमेल के जरिए दुनिया मे किसी को भी संदेश भेजा जा सकता है, इसके लिए प्राप्तकर्ता का ईमेल खाता पता होना चाहिए।
साइबर क्राइम क्या है?
साइबर क्राइम, जिसे कंप्यूटर अपराध या ई-अपराध भी कहा जाता है, एक ऐसी आपराधिक गतिविधि है जिसमें कंप्यूटर, इंटरनेट व नेटवर्क (Internet and Network), या डिजिटल डिवाइस का उपयोग किया जाता है। इसका उद्देश्य आमतौर पर वित्तीय लाभ प्राप्त करना या किसी को नुकसान पहुंचाना होता है। साइबर क्राइम में हैकिंग, फ़िशिंग, पहचान की चोरी, और मैलवेयर फैलाना शामिल हो सकता है।
साइबर क्राइम के प्रकार:
- हैकिंग: किसी के कंप्यूटर या नेटवर्क में अनधिकृत रूप से प्रवेश करना।
- फ़िशिंग: लोगों को धोखा देकर उनकी व्यक्तिगत जानकारी जैसे यूजरनेम, पासवर्ड, और क्रेडिट कार्ड नंबर प्राप्त करना।
- पहचान की चोरी: किसी और की पहचान का उपयोग करके वित्तीय या अन्य लाभ प्राप्त करना।
- मैलवेयर: कंप्यूटर वायरस, वॉर्म, और ट्रोजन हॉर्स जैसे हानिकारक सॉफ़्टवेयर का उपयोग करके सिस्टम को नुकसान पहुंचाना।
- रैंसमवेयर: किसी के कंप्यूटर या नेटवर्क को लॉक करना और फिर उसे अनलॉक करने के लिए फिरौती मांगना।
- सोशल मीडिया फ्रॉड: सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का उपयोग करके लोगों को धोखा देना या उनके साथ दुर्व्यवहार करना।
साइबर क्राइम से कैसे बचें?
- अपने कंप्यूटर और अन्य डिजिटल उपकरणों को सुरक्षित रखने के लिए एंटीवायरस सॉफ़्टवेयर और फ़ायरवॉल का उपयोग करें।
- अज्ञात स्रोतों से ईमेल या संदेशों में अटैचमेंट या लिंक पर क्लिक न करें।
- अपने पासवर्ड मजबूत रखें और उन्हें नियमित रूप से बदलें।
- सोशल मीडिया पर अपनी व्यक्तिगत जानकारी साझा करते समय सावधान रहें।
- यदि आप साइबर क्राइम का शिकार होते हैं, तो तुरंत पुलिस को रिपोर्ट करें।
साइबर क्राइम एक गंभीर खतरा है, लेकिन सही सावधानी बरतकर इससे बचा जा सकता है।
साइबर सिक्युरिटी क्या है?
साइबर सुरक्षा, जिसे कंप्यूटर सुरक्षा या सूचना प्रौद्योगिकी सुरक्षा भी कहा जाता है, एक व्यापक शब्द है जो कंप्यूटर, नेटवर्क, और डिजिटल डेटा को अनधिकृत पहुंच, क्षति, या चोरी से बचाने के लिए उपयोग की जाने वाली तकनीकों, प्रक्रियाओं और प्रथाओं को संदर्भित करता है।
साइबर सुरक्षा क्यों महत्वपूर्ण है?
- डेटा की सुरक्षा: साइबर सुरक्षा डेटा की गोपनीयता, अखंडता और उपलब्धता सुनिश्चित करती है, जो व्यक्तिगत, वित्तीय और संगठनात्मक जानकारी के लिए महत्वपूर्ण है।
- व्यवसाय की निरंतरता: साइबर सुरक्षा व्यवधानों को रोककर, व्यवसाय निर्बाध रूप से चल सकते हैं, जिससे उत्पादकता और राजस्व में वृद्धि होती है।
- नियामक अनुपालन: कई उद्योगों और क्षेत्रों में डेटा सुरक्षा और गोपनीयता से संबंधित सख्त नियम और कानून हैं, और साइबर सुरक्षा इन आवश्यकताओं को पूरा करने में मदद करती है।
- विश्वास का निर्माण: मजबूत साइबर सुरक्षा उपाय ग्राहकों, भागीदारों और अन्य हितधारकों के बीच विश्वास और विश्वसनीयता स्थापित करने में मदद करते हैं।
- मानसिक शांति: साइबर हमलों के बारे में चिंताओं को कम करके, साइबर सुरक्षा व्यक्तियों और संगठनों को मानसिक शांति प्रदान करती है।
साइबर सुरक्षा के कुछ प्रमुख पहलू:
- नेटवर्क सुरक्षा: फ़ायरवॉल, घुसपैठ का पता लगाने और रोकथाम प्रणाली, और एन्क्रिप्शन का उपयोग करके नेटवर्क को अनधिकृत पहुंच और हमलों से बचाना।
- एंडपॉइंट सुरक्षा: कंप्यूटर, लैपटॉप, मोबाइल डिवाइस और अन्य उपकरणों को मैलवेयर, वायरस और अन्य खतरों से सुरक्षित रखना।
- एप्लिकेशन सुरक्षा: सॉफ्टवेयर और वेब एप्लिकेशन को साइबर हमलों से सुरक्षित करना।
- सूचना सुरक्षा: संवेदनशील डेटा को सुरक्षित रखना और अनधिकृत पहुंच, उपयोग या प्रकटीकरण को रोकना।
- क्लाउड सुरक्षा: क्लाउड-आधारित सेवाओं और डेटा को सुरक्षा खतरों से सुरक्षित करना।
- पहचान और पहुंच प्रबंधन: यह सुनिश्चित करना कि केवल अधिकृत उपयोगकर्ता ही सिस्टम और डेटा तक पहुंच सकें।
साइबर सुरक्षा के लिए कुछ सामान्य उपाय निम्न प्रकार हैं-
- मजबूत पासवर्ड: जटिल और अद्वितीय पासवर्ड का उपयोग करना और उन्हें नियमित रूप से बदलना।
- सॉफ्टवेयर को अपडेट करना: ऑपरेटिंग सिस्टम, एप्लिकेशन और सुरक्षा सॉफ़्टवेयर को नवीनतम संस्करणों में अपडेट करना।
- सुरक्षा सॉफ़्टवेयर का उपयोग करना: एंटीवायरस, एंटीमैलवेयर और फ़ायरवॉल जैसे सुरक्षा सॉफ़्टवेयर का उपयोग करना।
- सुरक्षा जागरूकता प्रशिक्षण: कर्मचारियों और उपयोगकर्ताओं को साइबर खतरों और सर्वोत्तम प्रथाओं के बारे में शिक्षित करना।
- डेटा बैकअप: नियमित रूप से डेटा का बैकअप लेना ताकि उसे किसी भी नुकसान या क्षति की स्थिति में पुनर्स्थापित किया जा सके।
- सुरक्षा नीतियों और प्रक्रियाओं का कार्यान्वयन: एक व्यापक सुरक्षा योजना बनाना और उसे लागू करना जो सभी कर्मचारियों और हितधारकों पर लागू हो।
- नियमित सुरक्षा ऑडिट: यह सुनिश्चित करने के लिए नियमित रूप से सुरक्षा ऑडिट करना कि सुरक्षा उपाय प्रभावी ढंग से काम कर रहे हैं।
क्लाउड कम्प्यूटिंग क्या है?
क्लाउड कंप्यूटिंग इंटरनेट के माध्यम से विभिन्न कंप्यूटिंग सेवाओं, जैसे स्टोरेज, सर्वर, डेटाबेस, नेटवर्किंग, सॉफ्टवेयर, एनालिटिक्स और इंटेलिजेंस की ऑन-डिमांड उपलब्धता है। आप इन संसाधनों का उपयोग अपनी आवश्यकता के अनुसार करते हैं और केवल उन्हीं के लिए भुगतान करते हैं, जिससे आपको भौतिक डेटा सेंटर और सर्वर खरीदने, उनका स्वामित्व रखने और उनका रखरखाव करने की ज़रूरत नहीं पड़ती है।
यह कैसे काम करता है?
- भौतिक बुनियादी ढांचे (जैसे सर्वर) को किराए पर लेने के बजाय आप Amazon Web Services (AWS) या Microsoft Azure जैसे क्लाउड प्रदाता से कंप्यूटिंग संसाधन प्राप्त करते हैं।
- ये संसाधन दूरस्थ सर्वरों और डेटा केंद्रों में स्थित होते हैं, जिन तक आप इंटरनेट के माध्यम से पहुँच सकते हैं।
क्लाउड कंप्यूटिंग के लाभ
- लागत बचत: आप केवल उन सेवाओं के लिए भुगतान करते हैं जिनका आप उपयोग करते हैं, जिससे महंगे हार्डवेयर और बुनियादी ढांचे की लागत कम होती है।
- लचीलापन और स्केलेबिलिटी: आप अपनी व्यावसायिक ज़रूरतों के अनुसार संसाधनों को आसानी से बढ़ा या घटा सकते हैं।
- विश्वसनीयता: कई प्रदाता अपनी सेवाओं को कई स्थानों पर वितरित करते हैं, जिससे डेटा हानि या आउटेज का खतरा कम होता है।
- त्वरित नवाचार: क्लाउड प्रदाता लगातार नई प्रौद्योगिकियाँ प्रदान करते हैं, जिससे व्यवसाय तेज़ी से नवाचार कर सकते हैं।
- पहुँच: आप कहीं से भी, किसी भी डिवाइस से अपने डेटा और अनुप्रयोगों तक पहुँच सकते हैं।
क्लाउड कंप्यूटिंग के उदाहरण
- डेटा स्टोरेज: Google Drive, Dropbox, या OneDrive जैसी सेवाएँ डेटा को क्लाउड में स्टोर करती हैं।
- सॉफ्टवेयर-ए-ए-सर्विस (SaaS): Salesforce या Microsoft 365 जैसे सॉफ़्टवेयर को बिना किसी इंस्टॉलेशन के इंटरनेट पर उपयोग किया जा सकता है।
- इन्फ्रास्ट्रक्चर-ए-ए-सर्विस (IaaS): AWS जैसे प्रदाता आपको वर्चुअल मशीनें और स्टोरेज किराए पर लेने की सुविधा देते हैं।
नेटवर्क क्या होता है?
नेटवर्क (Network) शब्द का अर्थ है दो या दो से अधिक कंप्यूटरों या उपकरणों का एक समूह जो एक दूसरे से जुड़े हुए हैं और डेटा या सूचना साझा करने में सक्षम हैं। यह एक प्रणाली है जो विभिन्न उपकरणों को एक साथ काम करने और जानकारी साझा करने की अनुमति देती है।
नेटवर्क के प्रकार –
LAN : लोकल एरिया नेटवर्क (LAN), यह एक ऐसा नेटवर्क है जो एक सीमित क्षेत्र जैसे कि घर, कार्यालय या स्कूल में उपस्थित उपकरणों को आपस में जोड़ता है। LAN में, कंप्यूटर, प्रिंटर और अन्य डिवाइस एक-दूसरे के साथ डेटा और संसाधनों को साझा कर सकते हैं।
MAN : मेट्रोपॉलिटन एरिया नेटवर्क (MAN), एक कंप्यूटर नेटवर्क है जो एक बड़े भौगोलिक क्षेत्र जैसे कि एक शहर को कवर करता है। यह LAN (लोकल एरिया नेटवर्क) से बड़ा और WAN (वाइड एरिया नेटवर्क) से छोटा होता है।
WAN : वाइड एरिया नेटवर्क (WAN), एक ऐसा कंप्यूटर नेटवर्क है जो बड़े भौगोलिक क्षेत्रों को कवर करता है, जैसे कि शहर, देश, या फिर पूरा विश्व। यह स्थानीय नेटवर्क (LAN) को जोड़ता है और विभिन्न स्थानों पर स्थित उपकरणों को संचार करने की अनुमति देता है।
नेटवर्क टोपोलोजी क्या है?
टोपोलॉजी (Topology) का मतलब है कि कंप्यूटर नेटवर्क में उपकरणों (जैसे कंप्यूटर, प्रिंटर, सर्वर, आदि) की व्यवस्था या लेआउट कैसे है। दूसरे शब्दों में, यह बताता है कि नेटवर्क में डिवाइस एक दूसरे से कैसे जुड़े हुए हैं और डेटा का आदान-प्रदान कैसे होता है।
टोपोलोजी के प्रकार –
BUS : बस टोपोलॉजी एक प्रकार की नेटवर्क टोपोलॉजी है जिसमें सभी उपकरण एक ही केबल से जुड़े होते हैं जिसे “बस” कहा जाता है। यह केबल एक साझा संचार माध्यम (shared communication medium) के रूप में कार्य करता है, जिससे नेटवर्क पर सभी उपकरण एक साथ समान सिग्नल प्राप्त कर सकते हैं।
STAR : स्टार टोपोलॉजी एक कंप्यूटर नेटवर्क टोपोलॉजी है जिसमें सभी डिवाइस (जैसे कंप्यूटर, प्रिंटर) एक केंद्रीय हब या स्विच से जुड़े होते हैं। यह एक तारे के आकार का दिखता है, जिसमें हब/स्विच केंद्र में होता है और सभी डिवाइस उससे जुड़े होते हैं।
RING : रिंग टोपोलॉजी एक प्रकार का नेटवर्क कॉन्फ़िगरेशन है जहाँ उपकरण (जैसे कंप्युटर, प्रिंटर) एक वृत्ताकार तरीके से जुड़े होते हैं और एक बंद लूप बनाते हैं। इस व्यवस्था में, प्रत्येक उपकरण ठीक दो अन्य उपकरणों से जुड़ा होता है, जिससे डेटा ट्रांसमिशन के लिए एक सतत मार्ग बनता है। इसका मतलब है कि डेटा रिंग के चारों ओर केवल एक ही दिशा में यात्रा करता है, और प्रत्येक उपकरण से गुजरते हुए अपने गंतव्य तक पहुँचता है।
MESH : मैश टोपोलॉजी एक प्रकार का नेटवर्क है जिसमें प्रत्येक डिवाइस, नेटवर्क में मौजूद हर दूसरे डिवाइस से सीधे जुड़ा होता है। इस टोपोलॉजी में, डेटा को एक डिवाइस से दूसरे डिवाइस तक पहुंचाने के कई रास्ते होते हैं, जिससे यह बहुत विश्वसनीय हो जाता है. यदि एक कनेक्शन विफल हो जाता है, तो डेटा अभी भी दूसरे रास्ते से जा सकता है.
TREE : ट्री टोपोलॉजी (Tree Topology) कंप्यूटर नेटवर्क में एक प्रकार की टोपोलॉजी है जो पेड़ के आकार की होती है। इसमें एक केंद्रीय नोड होता है, जिसे रूट नोड भी कहा जाता है, और उससे कई शाखाएं निकली होती हैं, जिन पर अन्य नोड्स जुड़े होते हैं। यह टोपोलॉजी स्टार और बस टोपोलॉजी का संयोजन है।
HYBRID : हाइब्रिड टोपोलॉजी (Hybrid Topology) एक प्रकार की नेटवर्क टोपोलॉजी है जिसमें दो या दो से अधिक विभिन्न प्रकार की टोपोलॉजी (जैसे स्टार, बस, रिंग, मेश) को मिलाकर एक नया नेटवर्क बनाया जाता है। यह टोपोलॉजी विभिन्न टोपोलॉजी के फायदों को एक साथ लाने और उनके नुकसान को कम करने में मदद करती है.
इंटरनेट एवं नेटवर्किंग डिवाइसेस
Router : राउटर एक ऐसा उपकरण है जो दो या दो से अधिक नेटवर्क को आपस मे जोड़ता है, जैसे कि आपके घर का लोकल एरिया नेटवर्क (LAN) और इंटरनेट। यह आपके उपकरणों (जैसे कंप्यूटर, फोन, आदि) को इंटरनेट से जुड़ने और एक दूसरे के साथ संवाद करने की अनुमति देता है। संक्षेप में, राउटर आपके घर या ऑफिस में इंटरनेट कनेक्शन को प्रबंधित और वितरित करने का काम करता है।
Hub : हब एक ऐसा उपकरण है जो कई कंप्यूटरों, प्रिंटर या अन्य नेटवर्क उपकरणों को एक साथ जोड़ता है। यह एक केंद्रीय डिवाइस के रूप में कार्य करता है जिसके माध्यम से डेटा प्रसारित होता है। जब एक डिवाइस से डेटा भेजा जाता है, तो हब उस डेटा को नेटवर्क के सभी उपकरणों को भेजता है। हब, OSI मॉडल की भौतिक परत पर काम करता है।
Switch : नेटवर्क स्विच एक ऐसा डिवाइस है जो नेटवर्क में कई उपकरणों को आपस मे जोड़ता है और उन्हें एक-दूसरे के साथ संचार करने की अनुमति देता है। हब के विपरीत, स्विच नेटवर्क पर सभी उपकरणों को डेटा प्रसारित करने के बजाय, केवल उस उपकरण को डेटा संचारित कर सकते हैं जिसके लिए वे लक्षित हैं। स्विच OSI मॉडल के डेटा लिंक लेयर पर काम करते हैं और लोकल एरिया नेटवर्क में हब की तुलना में बेहतर प्रदर्शन और सुरक्षा प्रदान करते हैं। ये उपकरण डेटा को सही गंतव्य तक अग्रेषित करने के लिए MAC एड्रेस का उपयोग करते हैं, जिससे नेटवर्क के भीतर डेटा ट्रांसमिशन अधिक कुशल और सुरक्षित हो जाता है।
Gateway : गेटवे (Gateway) एक नेटवर्क कनेक्टिविटी डिवाइस या सॉफ़्टवेयर है जो दो अलग-अलग नेटवर्क को जोड़ता है जो विभिन्न ट्रांसमिशन प्रोटोकॉल का उपयोग करते हैं। यह एक नेटवर्क के लिए प्रवेश और निकास बिंदु के रूप में कार्य करता है, जिसका अर्थ है कि नेटवर्क से गुजरने वाला सभी ट्रैफ़िक गेटवे से होकर गुजरता है। गेटवे के विभिन्न उदाहरण है।
- Internet Gateway – एक इंटरनेट गेटवे एक स्थानीय नेटवर्क को इंटरनेट से जोड़ता है, जिससे स्थानीय नेटवर्क के उपकरण इंटरनेट तक पहुंच सकते हैं।
- Mobile Gateway – मोबाइल गेटवे मोबाइल उपकरणों को विभिन्न नेटवर्क (जैसे, 2G, 3G, 4G, 5G) के बीच स्विच करने और डेटा संचारित करने की अनुमति देता है।
- Payment Gateway – एक पेमेंट गेटवे ऑनलाइन भुगतान स्वीकार करने और संसाधित करने के लिए एक सुरक्षित चैनल प्रदान करता है।
Bridge : एक नेटवर्क ब्रिज दो या दो से अधिक नेटवर्क सेगमेंट्स को जोड़ता है, जिससे वे एक ही नेटवर्क की तरह काम करते हैं। यह डेटा लिंक लेयर (लेयर 2) पर काम करता है और MAC पतों के आधार पर डेटा को फ़ॉरवर्ड करता है। संक्षेप में, यह नेटवर्क को विभाजित करने और डेटा को सही गंतव्य तक पहुंचाने में मदद करता है।
Repeater : एक ऐसा नेटवर्क डिवाइस है जो नेटवर्क सिग्नल को प्रवर्धित और पुनः उत्पन्न करता है। इसका मुख्य काम नेटवर्क की सीमा को बढ़ाना है, खासकर जब सिग्नल कमजोर हो रहा हो या लंबी दूरी तक फैलाना हो.
NIC : नेटवर्क इंटरफ़ेस कार्ड (NIC) एक ऐसा उपकरण है जो कंप्यूटर को नेटवर्क से जोड़ता है। यह एक हार्डवेयर डिवाइस है जो कंप्यूटर को नेटवर्क पर डेटा भेजने और प्राप्त करने में सक्षम बनाता है।
WiFi : वाई-फ़ाई डिवाइस एक ऐसा इलेक्ट्रॉनिक उपकरण है जो रेडियो तरंगों का उपयोग करके तारों (केबलों) के बिना इंटरनेट से जुड़ता है और विभिन्न उपकरणों को एक नेटवर्क बनाने की अनुमति देता है। इसका फुल फॉर्म वायरलेस फिडेलिटी (Wireless Fidelity) है। एक वाई-फाई राउटर वायरलेस सिग्नल भेजता है, जिससे लैपटॉप, स्मार्टफोन, टैबलेट और स्मार्ट टीवी जैसे डिवाइस इंटरनेट से जुड़ पाते हैं।
Bluetooth : ब्लूटूथ एक वायरलेस तकनीक है जो कम दूरी पर डेटा साझा करने के लिए रेडियो फ्रीक्वेंसी का इस्तेमाल करती है। ब्लूटूथ का इस्तेमाल दस्तावेज़ साझा करने या अन्य ब्लूटूथ-सक्षम डिवाइस से कनेक्ट करने के लिए कर सकते हैं। ब्लूटूथ कनेक्शन के जरिए एक डिवाइस से दूसरी डिवाइस पर डाटा ट्रान्सफर किया जा सकता है।
नेटवर्क मीडिया क्या है?
नेटवर्क मीडिया का मतलब है कंप्यूटर नेटवर्क में डेटा संचारित करने के लिए उपयोग किए जाने वाले माध्यम। इसमें विभिन्न प्रकार के वायर और वायरलेस माध्यम शामिल होते हैं, ये माध्यम डेटा को एक डिवाइस से दूसरे डिवाइस तक ले जाने का काम करते हैं।
मीडिया के प्रकार
- वायर्ड मीडिया – ट्विस्टेड-पेयर केबल, कोएक्सियल केबल, फाइबर-ऑप्टिक केबल।
- वायरलेस मीडिया – रेडियो तरंगें, इन्फ्रारेड तरंगें, वाईफाई, ब्लूटूथ आदि।
Internet and Network में TCP/IP मॉडल क्या है?
TCP/IP मॉडल एक संचार मॉडल है जो Internet and Network पर डेटा के आदान-प्रदान के लिए नियमों का एक सेट प्रदान करता है। इसे 1970 और 1980 के दशक में अमेरिकी रक्षा विभाग (D.O.D.) द्वारा विकसित किया गया था। यह मॉडल एंड-टू-एंड संचार प्रदान करता है, जिससे विभिन्न नेटवर्क के बीच डेटा का सुरक्षित और विश्वसनीय ट्रांसमिशन संभव होता है।
TCP/IP मॉडल की चार परतें होती हैं:
- एप्लीकेशन लेयर (Application Layer): यह परत उपयोगकर्ताओं के साथ इंटरैक्ट करती है और विभिन्न एप्लिकेशन प्रोटोकॉल जैसे HTTP, FTP, SMTP, आदि प्रदान करती है।
- ट्रांसपोर्ट लेयर (Transport Layer): यह परत डेटा को पैकेटों में विभाजित करती है और एंड-टू-एंड कनेक्शन प्रदान करती है, यह सुनिश्चित करती है कि डेटा सही क्रम में और बिना किसी त्रुटि के पहुंचे।
- इंटरनेट लेयर (Internet Layer): यह परत डेटा को पैकेटों में रूट करने और भेजने के लिए जिम्मेदार है, यह सुनिश्चित करती है कि डेटा सही नेटवर्क तक पहुंचे।
- नेटवर्क एक्सेस लेयर (Network Access Layer): यह परत डेटा को भौतिक नेटवर्क पर भेजने के लिए जिम्मेदार है, जिसमें भौतिक और डेटा लिंक परतें शामिल हैं।
TCP/IP मॉडल के मुख्य लाभ निम्नलिखित हैं-
- यह एक मानकीकृत मॉडल है, जिसका अर्थ है कि विभिन्न नेटवर्क और उपकरणों के बीच संचार संभव है।
- यह एक लचीला मॉडल है, जिसका मतलब है कि इसे विभिन्न प्रकार के नेटवर्क और अनुप्रयोगों के लिए अनुकूलित किया जा सकता है।
- यह एक विश्वसनीय मॉडल है, जिसका अर्थ है कि यह सुनिश्चित करता है कि डेटा सही क्रम में और बिना किसी त्रुटि के पहुंचे।
TCP/IP मॉडल इंटरनेट और अन्य नेटवर्क पर डेटा के आदान-प्रदान के लिए एक महत्वपूर्ण मॉडल है। यह एक मानकीकृत, लचीला और विश्वसनीय मॉडल है जो विभिन्न नेटवर्क और उपकरणों के बीच संचार को संभव बनाता है।
Internet and Network में OSI मॉडल क्या है?
OSI मॉडल, या ओपन सिस्टम इंटरकनेक्शन मॉडल, एक वैचारिक (Ideological) ढांचा है जो Internet and Network में डेटा संचार को समझने और व्यवस्थित करने के लिए बनाया गया है। यह एक मानक मॉडल है जो विभिन्न नेटवर्किंग कार्यों को सात अलग-अलग परतों में विभाजित करता है, प्रत्येक परत (Layer) एक विशिष्ट कार्य करती है। इसका उद्देश्य विभिन्न कंप्यूटर प्रणालियों को एक-दूसरे के साथ संचार करने में सक्षम बनाना है, ताकि विभिन्न हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर तकनीकें एक साथ मिलकर काम कर सकें।
OSI मॉडल की सात परतें निम्नवत हैं-
- फिजिकल लेअर (Physical Layer): यह परत डेटा को बिट्स के रूप में प्रसारित करने के लिए जिम्मेदार है, और यह नेटवर्क के भौतिक माध्यम (जैसे केबल, वायरलेस सिग्नल) से संबंधित है।
- डेटा लिंक लेयर (Data Link Layer): यह परत डेटा को फ्रेम्स में व्यवस्थित करने और त्रुटि-मुक्त डेटा संचरण सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार है।
- नेटवर्क लेयर (Network Layer): यह परत डेटा को एक नेटवर्क से दूसरे नेटवर्क में रूट करने के लिए जिम्मेदार है, और इसमें आईपी एड्रेसिंग शामिल है।
- ट्रांसपोर्ट लेयर (Transport Layer): यह परत डेटा को एंड-टू-एंड डिलीवरी सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार है, और इसमें डेटा को सेगमेंट्स में विभाजित करना और त्रुटि जांच शामिल है।
- सेशन लेयर (Session Layer): यह परत संचार सत्रों को स्थापित करने, प्रबंधित करने और समाप्त करने के लिए जिम्मेदार है।
- प्रेजेंटेशन लेयर (Presentation Layer): यह परत डेटा के प्रारूपण और एन्क्रिप्शन के लिए जिम्मेदार है, ताकि विभिन्न प्रणालियों के बीच डेटा का आदान-प्रदान सुचारू रूप से हो सके।
- अप्लीकेशन लेयर (Application Layer): यह परत उपयोगकर्ता को नेटवर्क सेवाओं तक पहुंचने की अनुमति देती है, जैसे कि ईमेल, फ़ाइल स्थानांतरण, आदि।
OSI मॉडल का उपयोग नेटवर्क समस्याओं का निवारण करने, नेटवर्क प्रोटोकॉल के संचालन को समझने और नेटवर्क सुरक्षा का विश्लेषण करने के लिए किया जाता है।
WAN आर्किटेक्चर क्या है?
वाइड-एरिया नेटवर्क (WAN) आर्किटेक्चर ओपन सिस्टम इंटरकनेक्शन (OSI) मॉडल पर आधारित हैं जो सभी दूरसंचार को वैचारिक रूप से परिभाषित और मानकीकृत करता है। OSI मॉडल किसी भी कंप्यूटर नेटवर्क को सात परतों में काम करने के लिए कल्पना करता है। विभिन्न नेटवर्किंग तकनीकें इन विभिन्न परतों में से प्रत्येक पर काम करती हैं और साथ मिलकर एक कार्यशील WAN बनाती हैं।
नेटवर्क प्रोटोकॉल क्या हैं?
नेटवर्क प्रोटोकॉल, नियमों और प्रक्रियाओं का एक समूह है जो Internet and Network में उपलब्ध कंप्यूटरों और उपकरणों को एक नेटवर्क पर संवाद करने में सक्षम बनाता है। ये प्रोटोकॉल डेटा को प्रारूपित करने, भेजने, प्राप्त करने और संसाधित करने के तरीके को परिभाषित करते हैं, भले ही वे अलग-अलग ऑपरेटिंग सिस्टम या हार्डवेयर का उपयोग कर रहे हों। कुछ सामान्य नेटवर्क प्रोटोकॉल में TCP, UDP, IP, HTTP, FTP, SMTP, DNS, DHCP, और SNMP शामिल हैं।
विभिन्न प्रकार के नेटवर्क प्रोटोकॉल-
- TCP (Transmission Control Protocol): एक कनेक्शन-उन्मुख प्रोटोकॉल है जो विश्वसनीय, क्रमबद्ध डेटा ट्रांसमिशन प्रदान करता है। यह सुनिश्चित करता है कि डेटा पैकेट सही क्रम में पहुंचे और खोए हुए पैकेटों को फिर से भेजा जाए।
- UDP (User Datagram Protocol): एक कनेक्शनरहित प्रोटोकॉल है जो टीसीपी की तुलना में तेज़ है लेकिन डेटा ट्रांसमिशन की विश्वसनीयता की गारंटी नहीं देता है।
- IP (Internet Protocol): नेटवर्क पर डेटा पैकेटों को रूट करने के लिए उपयोग किया जाता है।
- HTTP (Hyper Text Transfer Protocol): वेब ब्राउज़िंग के लिए उपयोग किया जाता है, जो क्लाइंट और सर्वर के बीच डेटा के आदान-प्रदान को नियंत्रित करता है।
- FTP (File Transfer Protocol): फ़ाइलों को एक कंप्यूटर से दूसरे कंप्यूटर पर स्थानांतरित करने के लिए उपयोग किया जाता है।
- SMTP (Simple Mail Transfer protocol): ईमेल भेजने के लिए उपयोग किया जाता है।
- DNS (Domain Name System): डोमेन नामों को आईपी पतों में अनुवाद करता है, जिससे उपयोगकर्ताओं के लिए वेबसाइटों तक पहुंचना आसान हो जाता है।
- DHCP (Dynamic Host Configuration Protocol): नेटवर्क पर उपकरणों को स्वचालित रूप से आईपी पते और अन्य नेटवर्क सेटिंग्स प्रदान करता है।
- SNMP (Simple Network Management Protocol): नेटवर्क उपकरणों को प्रबंधित और निगरानी करने के लिए उपयोग किया जाता है।
- TELNET (Teletype Network): टेलनेट एक नेटवर्क प्रोटोकॉल है जो आपको किसी दूसरे कंप्यूटर (सर्वर) से कनेक्ट करने और उस पर कमांड चलाने की अनुमति देता है, जैसे कि आप उस कंप्यूटर पर सीधे बैठे हों। यह एक टेक्स्ट-आधारित संचार चैनल बनाता है, जो आपको सर्वर के कमांड-लाइन इंटरफ़ेस तक पहुंचने में सक्षम बनाता है।
ये प्रोटोकॉल विभिन्न प्रकार के कार्यों को पूरा करने के लिए एक साथ काम करते हैं, जिससे नेटवर्क पर संचार और डेटा साझाकरण संभव होता है।
नेटवर्क एड्रैस क्या होता है?
एक नेटवर्क एड्रेस, कंप्यूटर नेटवर्क में एक डिवाइस (जैसे, कंप्यूटर, सर्वर, राउटर) की पहचान करने के लिए इस्तेमाल होने वाला एक अद्वितीय नंबर या पता होता है। यह एक तरह से उस डिवाइस का “पता” होता है, जिससे नेटवर्क में डेटा भेजा और प्राप्त किया जा सकता है।
उदाहरण के लिए इंटरनेट पर प्रत्येक डिवाइस का एक आईपी एड्रेस (IP address) होता है, जो एक नेटवर्क एड्रेस है। Ex – 192.168.10.1
