SIC Jayanti
Life Journey of Sarvoday Inter College Jayanti
Sarvoday Inter College Jayanti is one of the oldest institutions of Almora District located about 400 Km away in northeast direction of Uttarakhand state capital and national capital. It was established in 1951 after upgrading the then Middle School constituted in 1928. The story of establishment of this Institution and the supreme sacrifices made by our leaders is highly inspiring and motivating.
Hundred year back in 1920s, when the world was striving to recover from the destruction of the first world war, India was reeling under the oppressive rule of British Raj. Its atrocities were increasingly felt with every passing day after World War, which ignited the minds of the masses to spread Kranti of freedom movement nationwide. Salam did not remain untouched. With the return of Shri Ram Singh Dhoni Ji, a renowned freedom fighter and educationalist, from Rajasthan to his mother land, Salam, the conch of freedom movement was blown in our pristine Devbhumi. Motivated by his exceptional leadership, our people plunged into freedom movement, which ultimately culminated to famous bloody Salam Kranti.
Like most of the remote parts of our nation, Salam was a poor and illiterate land of docile people. In 1920s its literacy rate was less than 5% against the national average of 12%, and its GDP was less than one tenth of the present days GDP compared at today’s prices. To motivate and mobilise masses under those trying circumstances was really a herculean task beyond imagination of anyone. But our visionary leaders, Dhoni Ji and Shri Durga Dutt Shastriji, made it possible.
There was no doubt in their mind that education is the panacea of all ills and path for the growth and development of this backward region. Hence, the idea of middle school was conceived by them, which came into being in 1928 as one of the oldest schools of Almora district.
With consistent efforts of Shri Shastri Ji, the Middle School was upgraded to the present day’s Inter College. Shastriji motivated few teachers of our Devbhumi including Shri Devi Datt Gururani Ji of Pubhaun, our first Principal, Shri Girish Chandra Joshi Ji and Shri Dikar Singh Kunwar Ji of Kandey, Shri Nand Kishore Pandey Ji of Sangroli to join the newly upgraded middle school to today’s Sarvoday Inter College Jayanti, leaving their scintillating city life and career.
From 1951 to till his retirement in 1988, Gururani Ji rendered selfless service as founding and born principal to this Vidyamandir. He nurtured it like his own child and worshipped ma Sharda in his 37 years penance as a true and devoted poojari. Under his able leadership the College gained name and fame and became one of the best institutions of Almora District during 1970s. It fame spread far and wide and students from far flung areas rushed to seek admission in this prestigious college. The academic staff of the College was dedicated for holistic development of students. Some of the reputed staff members include Shri Govind Singh Bisht Ji, Chardra Ballabh Joshi Ji, Ganga Prasad Joshi Ji, Himmat Singh Negi Ji, Roop Singh Bora Ji, etc. Many students of the college performed exceptionally and are well established in different fields. Some of them are reputed engineers, doctors, administrators, academicians, journalists, lawyers, judges etc and are successful professionals. After retirement of Gururani Ji, Shri Chandra Ballabh Joshi Ji take over as Principal and continued his legacy. There after Shri Ganga Prasad Joshi Ji took charge of Principal of the College. He was also a strict disciplinarian.
After retirement of Joshi ji, the academic standard of the college started deteriorating as most of the time the college remained without a regular Principal. The School management has also become defunct and has not been in existence since 2017. As a result, the college is facing predicament and is in dire state. There is an urgent need for restoration of its glory. The Sarvoday Inter College Jayanti Alumni Association is trying hard to restore its glory.
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सर्वोदय इंटर कॉलेज की जीवन यात्रा
सर्वोदय इंटर कॉलेज जयंती उत्तराखंड और राष्ट्रीय राजधानी से लगभग 400 किलोमीटर दूर उत्तर-पूर्व दिशा में स्थित अल्मोड़ा जिले का सबसे पुराना विद्यालय है। इसकी स्थापना 1928 के तत्कालीन मिडिल स्कूल को अपग्रेड करके 1951 में सर्वोदय इंटर कालेज जयंती के रूप की गई थी। इस संस्थान की स्थापना में हमारे नेताओं द्वारा किए गए सर्वोच्च बलिदान की कहानी बेहद प्रेरणादायक है।
सौ साल पहले 1920 के दशक में, जब दुनिया प्रथम विश्व युद्ध के विनाश से उबरने का प्रयास कर रही थी, भारत ब्रिटिश राज के दमनकारी शासन से जूझ रहा था। प्रथम विश्व युद्ध के बाद ब्रिटिश राज के अत्याचार दिन प्रतिदिन बड़ने लगे; जिसने देशभर जनता में स्वतंत्रता आंदोलन की क्रांति की लहर दौड़ने लगी। सालम क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं रहा। प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी और शिक्षाविद् श्री राम सिंह धौनी जी की राजस्थान से अपनी मातृभूमि सालम वापसी के साथ ही हमारी प्रतिष्ठित देवभूमि भी स्वतंत्रता आंदोलन के शंखनाद से गूंज उठी। उनके असाधारण नेतृत्व से प्रेरित होकर, सालम की आम जनता स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पडी, जिसकी परिणति अंततः प्रसिद्ध खूनी सलाम क्रांति के रूप में हुई।
हमारे देश के अधिकांश दूरदराज के हिस्सों की तरह, सालम भी मासूम, गरीब और अशिक्षित लोगों की भूमि थी। 1920 के दशक में इसकी साक्षरता दर राष्ट्रीय औसत 12% के मुकाबले 5% से भी कम थी और इसकी जी.डी.पी. आज की कीमतों की तुलना में वर्तमान जी.डी.पी. के दसवें हिस्से से भी कम थी। उन कठिन परिस्थितियों में जनता को प्रेरित करना और संगठित करना वास्तव में किसी की भी कल्पना से परे एक कठिन कार्य था। लेकिन हमारे दूरदर्शी नेताओं, धौनी जी और श्री दुर्गा दत्त शास्त्रीजी ने इसे संभव बनाया। उनके मन में कोई भी संदेह नहीं था कि शिक्षा सभी बीमारियों का रामबाण है और इस पिछड़े क्षेत्र की प्रगति और विकास की कुंजी है। इसलिए, उनके मन में मिडिल स्कूल का विचार आया, जो 1928 में अल्मोड़ा जिले के सबसे पुराने स्कूलों में से एक स्कूल के रूप में अस्तित्व में आया।
श्री शास्त्री जी के लगातार प्रयासों से मिडिल स्कूल को वर्तमान सर्वोदय इंटर कॉलेज जयंती में अपग्रेड किया गया। शास्त्री जी ने हमारे देवभूमि के कुछ शिक्षकों जैसे पुभाऊ के श्री देबी दत्त गुरुरानी जी, हमारे प्रथम प्रधानाचार्य, कांडे के श्री गिरीश चंद्र जोशी जी और श्री डिकर सिंह कुँवर जी, संग्रोली के श्री नंद किशोर पाण्डेय जी को अपने शानदार शहरी जीवन और करियर को छोड़कर सर्वोदय इंटर कॉलेज जयंती में अध्यापन कार्य के लिए प्रेरित किया।
1951 से 1988 में अपनी सेवानिवृत्ति तक, गुरुरानी जी ने इस विद्यामंदिर के संस्थापक और जन्मजात प्राचार्य के रूप में निस्वार्थ सेवा प्रदान की। उन्होंने इसे अपने बच्चे की तरह पाला और अपनी 37 साल की तपस्या में एक सच्चे और समर्पित पुजारी के रूप में मां शारदा की पूजा की। उनके कुशल नेतृत्व में कॉलेज ने प्रसिद्धि हासिल की और 1970 के दशक में अल्मोड़ा जिले के सर्वश्रेष्ठ संस्थानों में से एक बन गया। इसकी प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैल गई और दूर-दराज इलाकों से छात्रों में इस प्रतिष्ठित कॉलेज में प्रवेश लेने के लिए होड़ लगने लगी। कॉलेज के अध्यापक छात्रों के समग्र विकास के लिए समर्पित थे। कुछ प्रतिष्ठित शिष्यकों में श्री गोविंद सिंह बिष्ट जी, चद्र बल्लभ जोशी जी, गंगा प्रसाद जोशी जी, हिम्मत सिंह नेगी जी, रूप सिंह बोरा जी आदि शामिल हैं। कॉलेज के कई छात्रों ने असाधारण प्रदर्शन किया और विभिन्न क्षेत्रों में अद्वितीय सफलता हासिल की। उनमें से कुछ प्रतिष्ठित इंजीनियर, डॉक्टर, प्रशासक, शिक्षाविद, पत्रकार, वकील, न्यायाधीश आदि सफल पेशेवर हैं। गुरुरानी जी की सेवानिवृत्ति के बाद, श्री चंद्र बल्लभ जोशी जी ने प्रिंसिपल का पद संभाला और उनकी विरासत को जारी रखा। इसके बाद श्री गंगा प्रसाद जोशी जी ने कॉलेज के प्राचार्य का कार्यभार संभाला। वे सख्त अनुशासनप्रिय व्यक्ति थे।
श्री गंगा प्रसाद जोशी जी की सेवानिवृत्ति के बाद, कॉलेज का शैक्षणिक स्तर गिरावट आने लगी क्योंकि अधिकांश समय कॉलेज नियमित प्राचार्य के बिना ही चलता रहा। स्कूल प्रबंधन भी निष्क्रिय हो गया है और 2017 से अस्तित्व हीन हो गया। नतीजतन, कॉलेज संकट का सामना कर रहा है और गंभीर स्थिति में है। इसके गौरव को पुनः स्थापित करने की तत्काल आवश्यकता है।
वर्तमान में सर्वोदय इंटर कॉलेज जयंती एलुमिनाई एसोसिएशन इसकी गरिमा को बहाल करने के लिए पुरजोर कोशिश कर रही है।