Mejor Doners’ Intro

Major Contributors for Restoration of the Glory of the
Sarvoday Inter College Jayanti, Almora (Uttrakhand)

श्रीमती शान्ती गुरुरानी

सिकजा परिवार अपने संस्थापक और प्रथम प्रधानाचार्य परम श्रद्धेय श्री देवी दत्त गुरुरानी जी की अर्द्धांगिनी परम पूज्यनीय श्रीमती शान्ति गुरुरानी जी के 51,000 रुपये के अप्रतिम सहयोग और आशीर्वाद से अत्यंत भाव-विभोर हैं। नवरात्रि के पावन पर्व पर इस शुभ अवसर पर सिकजा के लिए इससे बड़ा उपहार नहीं हो सकता।

श्रीमती शान्ति गुरुरानी जी न केवल हमारे विद्यामन्दिर की प्रारंभिक यात्रा की साक्षी रही हैं, बल्कि उन्होंने हर कदम पर श्री देवी दत्त गुरूरानी जी का सहयोग किया है। उनके मार्गदर्शन में विद्यामन्दिर ने अपनी नींव से लेकर शिखर तक की यात्रा की है। इसलिए, हमारे विद्यामन्दिर की वर्तमान जीर्ण-शीर्ण स्थिति से उनका व्यथित होना स्वाभाविक है। उनका यह आशीर्वाद न केवल हमारे अभियान की प्रासंगिकता को पुष्ट करता है, बल्कि हमारे मनोबल को ऊंचा करने वाला उत्प्रेरक भी बनेगा। सिकजा परिवार की ओर से इस पावन योगदान के लिए हम आभार व्यक्त करते हैं, और आशा करते हैं कि आपके आशीर्वाद से हमारा विद्यामंदिर पुनः अपने गौरवपूर्ण स्वरूप में लौटेगा।

1960 से 1990 के दशक के पूर्व छात्र आपके सार्वजनिक और सामाजिक जीवन से अच्छी तरह परिचित होंगे, लेकिन उसके बाद के पूर्व छात्रों के लिए आपके बारे में जानना निःसंदेह एक जिज्ञासा का विषय होगा। इसलिए, आपके द्वारा क्षेत्र के लिए किए गए सामाजिक और सार्वजनिक कार्यों को उनके संज्ञान में लाना आवश्यक है।

आप लोहाघाट के एक संभ्रांत और कुलीन परिवार की बेटी हैं। आपके पिताजी, आदरणीय श्री बद्री दत्त जोशी जी, लोहाघाट के वरिष्ठतम और ख्याति प्राप्त अधिवक्ता थे और लोहाघाट से लेकर पूरे चंपावत क्षेत्र में उन्हें सभी लोग जानते थे। आपकी पारिवारिक पृष्ठभूमि में भी असाधारणता का समावेश है, क्योंकि आप अपने 6 भाइयों की इकलौती बहन थीं। आपके सभी भाई अपने-अपने क्षेत्रों में ख्याति प्राप्त हुए—कोई वरिष्ठ वकील बना, कोई आर्मी कर्नल, तो कोई लेक्चरर। यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि आपकी परवरिश एक विशिष्ट और समृद्ध सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक परिवेश में हुई, जो आपके व्यक्तित्व का सजीव प्रमाण है।

आपका विवाह 16 वर्ष की आयु में परम श्रद्धेय श्री देवी दत्त गुरूरानी जी से हुआ। उस समय आपके पिताजी को यह चिंता थी कि कहीं विवाह के बाद आपकी शिक्षा बाधित न हो जाए या दांपत्य जीवन में किसी प्रकार का कष्ट न आए। इसलिए, उन्होंने आपके लिए जीवन भर एक सहायक की व्यवस्था की—जो उस समय की परिस्थितियों में एक बड़ी और महत्वपूर्ण घटना थी। शादी के बाद भी आपने अपनी शिक्षा जारी रखी और उस दौर में, जब सालम क्षेत्र में महिला साक्षरता दर 1% से भी कम थी, आपने एम.ए. और बी.एड. की डिग्री हासिल की। यह न केवल आपकी शिक्षा के प्रति समर्पण को दर्शाता है, बल्कि आपके ज्ञान और व्यक्तित्व की स्पष्ट झलक भी प्रदान करता है। आपके शैक्षणिक प्रयासों और समाज के प्रति आपकी प्रतिबद्धता ने आपको क्षेत्र की महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बना दिया।

आपके सार्वजनिक, राजनैतिक और सामाजिक जीवन का दायरा बेहद व्यापक और प्रभावशाली रहा है। आप न केवल क्षेत्र की वरिष्ठतम नेताओं में से एक थीं, बल्कि आपने सामाजिक सेवाओं में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। गरीब परिवारों की मदद करना, उनके बच्चों की शिक्षा की व्यवस्था करना, और विधवाओं के लिए पेंशन की व्यवस्था करने के आपके प्रयास क्षेत्र में गहराई से सराहे गए हैं। राजनीतिक जीवन में आपकी सक्रियता उस दौर की बात है, जब काँग्रेस का चुनाव चिन्ह “गाय और बछड़ा” हुआ करता था और जनसंघ का चिन्ह “दीपक” था, अर्थात् बीजेपी का तो तब उद्भव भी नहीं हुआ था। आपकी लोकप्रियता और नेतृत्व क्षमता इतनी थी कि कम से कम दो बार अल्मोड़ा से एम.एल.ए. का टिकट मिलना लगभग तय था। आपकी विनम्रता और शांत स्वभाव ने आपको राजनीति की कठिन चुनौतियों में भी सहज बनाए रखा। चुनाव की तीव्र नोक-झोंक के बावजूद, आपने कभी अपने संयम और मृदुलता को नहीं छोड़ा। आपकी मीठी और ओजस्वी वाणी लोगों के दिलों पर गहरी छाप छोड़ती थी।

आपके भाषणों की प्रभावशाली शैली और आपकी मधुर वाणी ने आपको “सालम कोकिला” की उपाधि दिलाई, और यह कोई अतिशयोक्ति नहीं है। आपका व्यक्तित्व इस बात का प्रमाण है कि आपने अपने सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं किया। राजनीति के संघर्षपूर्ण माहौल में, जब आपके सिद्धांतों पर कोई आंच आने लगी, तो आपने बिना किसी हिचकिचाहट के राजनीतिक जीवन से सन्यास ले लिया। आपके इस कदम ने यह साबित किया कि आपके लिए व्यक्तिगत सिद्धांत और नैतिकता राजनीति से ऊपर थे। यही आपके व्यक्तित्व की सबसे बड़ी विशेषता है—आपका समाज के प्रति समर्पण और सच्चाई से जीने का आपका अदम्य संकल्प।

आपका जीवन सार्वजनिक और पारिवारिक दोनों क्षेत्रों में असाधारण संतुलन का आदर्श उदाहरण है, जो क्षेत्र की सभी महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है। यह सुनकर गर्व होता है कि गुरूरानी जी भी हमेशा यह स्वीकार करते थे कि आपके चारों बच्चों की परवरिश और शिक्षा में आपका सबसे बड़ा योगदान रहा है। आपके बच्चों की सफलता, उनके अलग-अलग क्षेत्रों में ख्याति प्राप्त करना, आपके समर्पण और मार्गदर्शन का प्रतिफल है। आपके ज्येष्ठ पुत्र, आदरणीय श्री सुशील गुरूरानी जी, शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान देने वाले एक विद्वान हैं और महाविद्यालय के सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य के रूप में सम्मानित हुए हैं। आपके मझले पुत्र, श्री अनिल गुरूरानी जी, इंडियन इंजीनियरिंग सर्विस से चयनित रेलवे इंजीनियर हैं और चीफ जनरल मैनेजर के पद से सेवा निवृत्त होकर भी क्षेत्र का गौरव बने हुए हैं। आपके कनिष्ठ पुत्र, श्री अरविंद गुरूरानी जी, बिट्स पिलानी के इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर हैं और नोएडा औद्योगिक क्षेत्र में वरिष्ठ पद से सेवानिवृत्त हुए हैं।

आपकी एकमात्र बेटी, श्रीमती उमा गुरुरानी पाण्डेय जी, आपकी तरह ही अत्यंत संवेदनशील और कर्तव्यनिष्ठ हैं। उनके जीवनसाथी, आदरणीय श्री विनोद पाण्डेय जी, एक रिटायर्ड कर्नल, अपने संपूर्ण परिवार के साथ इस अभियान में सक्रिय रूप से जुड़े हुए हैं। यह गर्व की बात है कि उनका आशीर्वाद ही नहीं, बल्कि उनका उदार दान भी इस अभियान की सफलता में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

87 वर्ष की आयु में भी आपका तेजस्वी मुख मंडल और सौम्य व्यक्तित्व, आपके शांत स्वभाव, निश्चलता और निश्छलता का प्रतीक है। आपके जीवन का हर पहलू, चाहे वह सार्वजनिक सेवा हो, पारिवारिक जिम्मेदारियाँ हों या समाजसेवा, प्रेरणा का स्रोत है। SICJAA परिवार आपके सुखमय और दीर्घायु जीवन की कामना करता है और आपके स्नेह का सदैव आकांक्षी रहेगा। आपका आशीर्वाद और मार्गदर्शन हमें इस अभियान में सदा प्रेरित करता रहेगा।

श्रीमती उमा गुरुरानी पाण्डेय:

SICJAA परिवार की ओर से आदरणीय श्रीमती उमा गुरुरानी पाण्डेय जी और आपके जीवनसाथी, आदरणीय कर्नल श्री विनोद कुमार पाण्डेय जी, हम सभी आप दोनों का दिल से आभार व्यक्त करते हैं। आपके अद्वितीय योगदान के लिए, आपने हमारे विद्यामंदिर के गौरव बहाली के लिए जो 1,50,000/- रुपये की अनुदान राशि के रूप में दिया है, उसके लिए हम सभी अत्यंत कृतज्ञ हैं। श्रीमती उमा जी, आप हमारे परिवार की अभिन्न सदस्या हैं। आपने उस समय हमारे विद्यामंदिर में अध्ययन किया, जब यह आपके पिताश्री और हमारे परम श्रद्धेय प्रथम और संस्थापक प्रधानाचार्य, श्री देवीदत्त गुरुरानी जी के अथक प्रयासों से जिले की सिरमौर संस्थाओं में से एक बना था। आपके पिताजी द्वारा बोई गई शिक्षा का बीज़ आज एक विशाल वृक्ष का रूप ले चुका है, जिसके फलों से हम जैसे हजारों गरीब छात्र लाभान्वित हुए हैं। यह सच है कि आज हमारे विद्यामंदिर की जीर्ण-शीर्ण अवस्था से आपका व्यथित होना स्वाभाविक है।

लेकिन, हम इस बात से भी अधिक प्रभावित हैं कि आपके पतिदेव, आदरणीय कर्नल श्री विनोद कुमार पाण्डेय जी, ने हमारी इस मुहिम में संवेदनशीलता के साथ हाथ बंटाया है। उनका सहयोग और समर्थन हमारे लिए प्रेरणादायक है। आपका योगदान न केवल हमारे विद्यामंदिर की पहचान को पुनर्जीवित करने में सहायक सिद्ध होगा, बल्कि यह भी सुनिश्चित करेगा कि आने वाली पीढ़ियाँ भी उस ज्ञान और शिक्षा के लाभान्वित हो सकें, जो आपके पिताजी ने अपने जीवन में स्थापित की थी। आपकी महिला शक्ति की प्रतीक के रूप में पहचान हमारे लिए गर्व का विषय है। आप आदरणीय सुशील गुरुरानी जी की छोटी बहिन हैं और अनिल गुरुरानी जी तथा अरविंद गुरुरानी जी की बड़ी बहिन हैं। इस अभियान से जुड़ी, आप हमारे विद्यामंदिर की 1975 बैच की हमारे विद्यामंदिर की वरिष्ठतम पूर्व छात्रा हैं। रक्षाबंधन के सुअवसर पर आपने एक नई लीक आरंभ की थी, जब आपने SICJAA के लिए ₹50,000/- का अभूतपूर्व योगदान दिया, जिसने हम सभी को निःशब्द कर दिया।

आपने, अपने जन्मदिन के शुभ अवसर पर, आपके द्वारा दोनों बच्चों के नाम पर 50-50 हजार रुपये की दी गई, यह भेंट हम सभी के लिए माँ शक्ति का प्रत्यक्ष आशीर्वाद है। आपका योगदान और प्रेम हमें हर कदम पर प्रेरित करता है। हम आपके इस उदारता के लिए हृदय से आभार व्यक्त करते हैं। आपके पूज्य पिताजी, परम श्रद्धेय श्री देवीदत्त गुरुरानी द्वारा रोपित बीज़ ने ज्ञान की एक अविरल ज्योति जलाई, जिसे आपने और आपके परिवार ने संजोकर रखा। उन्होंने 34 साल तक इस विद्यामंदिर में ज्ञान का प्रकाश फैलाया, जिससे हम सभी का पथ प्रदर्शित हुआ। आपकी यह अप्रतिम भेंट उनकी पुण्यात्मा के प्रति एक सच्ची श्रद्धांजलि होगी। हम अगली पीढ़ी के लिए इस विरासत को संजोकर रखने का संकल्प लेते हैं। एक बार पुनः, आपको और आपके परिवार को हमारा धन्यवाद। आपकी उदारता और योगदान सदैव हमारे दिलों में बसा रहेगा।

कर्नल श्री विनोद कुमार पाण्डेय:

आदरणीय कर्नल श्री विनोद पाण्डेय जी, आपका जीवन और आपके कार्यों की गहराई में जाकर हम यह समझ सकते हैं कि आप केवल एक सैन्य अधिकारी नहीं, बल्कि एक प्रेरणास्त्रोत भी हैं। आप हमारे विद्यामंदिर के गौरव हैं और आपके प्रति हमारी कृतज्ञता शब्दों में नहीं कह सकते। आपकी शिक्षार्थियों की भलाई के प्रति असीम निष्ठा और सेवा भाव वास्तव में अनुकरणीय हैं। आप हमारी वरिष्ठतम पूर्व छात्रा और संस्थापक प्रधानाचार्य जी की सुपुत्री, श्रीमती उमा गुरुरानी जी के पतिवर हैं, जो इस विद्यालय के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। आपका जन्म 8 जुलाई 1953 को बागेश्वर के उतरोरा गांव में हुआ। आपके परिवार में शिक्षा और सेवा की परंपरा सदैव रही है। आपके पिता जी, जो बंगाल इंजीनियर्स से सूबेदार के पद से सेवानिवृत्त हुए, ने आपको देशभक्ति और सेवा का जोश सिखाया। आपके लिए यह गर्व की बात है कि आपने, अपने पिता जी की फोर्स में कमीशन प्राप्त किया, जो किसी भी पिता के लिए सबसे बड़ा सम्मान होता है। आपकी माँ, जो लाठी (मल्ला दानपुर) के एक प्रतिष्ठित परिवार से थीं, ने आपको उच्च शिक्षा और देश प्रेम के प्रति प्रेरित किया।

आपकी प्रारंभिक शिक्षा प्रतिष्ठित सैनिक स्कूल, रीवा से हुई। यहाँ आपने न केवल अकादमिक उत्कृष्टता प्राप्त की, बल्कि जीवन की कई महत्वपूर्ण पाठ भी सीखे। आपने 10वीं कक्षा अब्बल श्रेणी में उत्तीर्ण की और इसके बाद डिफेंस की सर्वोच्च अकादमी एन.डी.ए., खड़कवासला में शामिल हुए। यहीं से आपको 1973 में कमीशन मिला, जो आपके भविष्य के लिए एक महत्वपूर्ण कदम था। आपने 1980 में सेना में कैप्टन के रूप में कॉलेज ऑफ मिलिट्री इंजीनियरिंग, पुणे से सिविल इंजीनियरिंग में अपनी बुनियादी शिक्षा पूरी की। इसके बाद, 1982 से 1985 तक आपने आई.आई.टी. मुंबई से दो पोस्ट ग्रेजुएशन की, जिनमें डॉक एंड हार्बर इंजीनियरिंग और स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग शामिल हैं। यह आपके लिए एक विशेष सम्मान था कि आपको सेना द्वारा इस महत्वपूर्ण अध्ययन के लिए चयनित किया गया। इसके अलावा, आपने आईआईएम अहमदाबाद से एक सर्टिफिकेट कोर्स भी किया।

आपकी शिक्षा के प्रति जुनून और समर्पण आपके व्यक्तित्व में झलकता है। आप हमें यह प्रेरणा देते हैं कि शिक्षा का कोई अंत नहीं होता। आपके अनुभव बताते हैं कि जो व्यक्ति अपने जीवन को एक शिक्षार्थी की तरह व्यतीत करता है, वह कभी अहंकार का शिकार नहीं होता। आपके द्वारा प्रदर्शित यह गुण हमें हमेशा प्रेरित करते हैं कि सीखने का कोई समय नहीं होता और हर उम्र में ज्ञान की प्राप्ति संभव है। आपने 34 वर्षों तक भारतीय सेना में सेवा की, जिसमें पूरे भारत के विभिन्न स्थानों, जैसे- पोर्ट ब्लेयर और कोचीन में तैनाती शामिल थी। आपके कार्यकाल में आपने अपनी तकनीकी और प्रबंधन क्षमताओं का भरपूर उपयोग किया, जो आपकी बहुमुखी प्रतिभा को दर्शाता है। आपकी सेना से सेवानिवृत्ति के बाद, आपने डायनेमिक स्टाफिंग सर्विसेज में महाप्रबंधक के रूप में कार्य किया, जहाँ आपने विदेशों में सेवा के लिए जनशक्ति की भर्ती की।

आपने तीन वर्षों तक नोएडा में भारत पेट्रोलियम की स्वामित्व वाली संचालित कंपनी (COCO) के माध्यम से पेट्रोल पंप की सेवा भी की। यह आपके लिए एक नई चुनौती थी, जिसमें आपने अपनी नेतृत्व क्षमता और सेवा भाव को बखूबी निभाया। अब आप नोएडा (यू.पी.) के सेक्टर 28 में बस गए हैं और अपने सेवानिवृत्त जीवन का आनंद ले रहे हैं। आपके दोनों बच्चे वर्तमान में सिंगापुर में उच्च पदों पर कार्यरत हैं, जो आपके सफल मार्गदर्शन का प्रमाण है। आपने अपने परिवार को एक अद्वितीय मार्गदर्शन दिया है, जो आपके समर्पण और मेहनत का फल है। आपका जीवन हमें यह सिखाता है कि जब हम अपनी जिम्मेदारियों को पूरी निष्ठा और प्यार के साथ निभाते हैं, तो हमें सफलता अवश्य मिलती है।

आपके योगदान ने हमें यह सिखाया है कि शिक्षार्थियों के प्रति हमारी जिम्मेदारी है और हम सबको एक साथ मिलकर शिक्षा के प्रति अपने दायित्वों का निर्वहन करना चाहिए। आपके अनमोल सहयोग के लिए हम आपके प्रति हृदय से आभारी हैं और प्रार्थना करते हैं कि आप स्वस्थ, समृद्ध और परिपूर्ण सेवानिवृत्त दाम्पत्य जीवन का आनंद लेते रहें। आपके जैसे व्यक्तित्व हमारे विद्यामंदिर को गर्वित करते हैं, और हम आपके आगे और भी सफलताओं की कामना करते हैं। आपकी प्रेरणा हमें यह सिखाती है कि हम अपने जीवन में शिक्षा, सेवा और समर्पण को हमेशा प्राथमिकता दें।

श्री विक्रांत पाण्डेय:

श्री विक्रांत पाण्डेय जी, कर्नल श्री विनोद पाण्डेय जी और श्रीमती उमा गुरुरानी पाण्डेय जी के सुपुत्र हैं। आपका जन्म 16 सितंबर 1978 को पुणे के एक सैन्य अस्पताल, कमांड अस्पताल में हुआ। आपके परिवार में शिक्षा और सेवा का एक अद्भुत इतिहास है, जो आपके व्यक्तित्व को परिभाषित करता है। आपकी प्रारंभिक शिक्षा मुंबई, कोचीन, आगरा और हिसार के केंद्रीय विद्यालयों में हुई। इन विद्यालयों में शिक्षा ग्रहण करते समय आपने अपनी लीडरशिप क्वालिटी का परिचय दिया, जो आपके परिवार से विरासत में मिली थी। आपको प्रतिष्ठित दिल्ली पब्लिक स्कूल, नोएडा में प्रवेश मिला, जहाँ आपने हेड बॉय की जिम्मेदारी निभाई। आपकी नेतृत्व क्षमता और परिश्रम ने आपको अन्य छात्रों के बीच अलग पहचान दिलाई।

आप एक मेधावी छात्र रहे हैं और आपकी शैक्षणिक उपलब्धियाँ उत्कृष्ट हैं। आपने सी.बी.एस.ई. की दसवीं और बारहवीं कक्षा में बहुत ही उच्च कोटि का प्रदर्शन किया। विशेष रूप से, आपने हाईस्कूल परीक्षा में गणित में 100% अंक प्राप्त किए, जो आपकी मेहनत और गणित के प्रति आपकी गहरी रुचि को दर्शाता है। आपकी अद्वितीय शैक्षणिक पृष्ठभूमि के परिणामस्वरूप, आपको सिंगापुर सरकार द्वारा एशिया की सर्वोच्च यूनिवर्सिटी, नानयांग टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी, सिंगापुर में कंप्यूटर इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन के लिए चयनित किया गया। यहाँ आपने अपनी शिक्षा को एक नई ऊँचाई पर पहुँचाया। स्नातक स्तर की पढ़ाई के बाद, आपने सिंगापुर में सिटीबैंक समूह में कार्य करना प्रारंभ किया। आपकी मेहनत और समर्पण ने आपको आगे बढ़ने के अनेक अवसर प्रदान किए। इसके बाद, आपने नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर से फाइनेंशियल मैनेजमेंट में मास्टर डिग्री प्राप्त की और बाद में यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो बूथ स्कूल ऑफ बिजनेस से एमबीए की डिग्री पूरी की। आपकी शिक्षा और अनुभव ने आपको वित्तीय क्षेत्र में एक मजबूत आधार प्रदान किया।

आपने मई 2005 में रूड़की के लोहाघाट निवासी रचना जोशी के साथ शादी के पवित्र बंधन में बंधे। आपकी दो सुंदर और सुशील कन्याएँ हैं, जो आपके परिवार का गौरव हैं। आपकी पत्नी, श्रीमती रचना जी, पुणे विश्वविद्यालय से एमबीए की डिग्री प्राप्त करने के बाद चार्टर्ड अकाउंटेंसी की व्यावसायिक योग्यता हासिल की और वर्तमान में सिंगापुर में एलजीटी बैंक में निदेशक के रूप में कार्यरत हैं। आप वर्तमान में सिंगापुर में यू.ओ.बी. बैंक में वरिष्ठ निदेशक के रूप में कार्यरत हैं। आपकी समर्पण और प्रतिभा ने आपको इस उच्च पद तक पहुँचाया है, जहाँ आप न केवल अपने व्यक्तिगत लक्ष्यों को पूरा कर रहे हैं, बल्कि अपने परिवार और समाज के प्रति भी अपनी जिम्मेदारियों को निभा रहे हैं।

हमारे विद्यालय के लिए यह गर्व का विषय है कि आपने ग्रीष्मकालीन अवकाश में इसके परिसर में विद्याध्ययन किया। आपके परिवार की उदारता और संवेदनशीलता को हम सभी नमन करते हैं। आपके जीवन की यात्रा, समर्पण और मेहनत के साथ-साथ, समाज और शिक्षा के प्रति आपके योगदान को देखकर हमें प्रेरणा मिलती है। आपके जैसे व्यक्तित्व का होना हमारे विद्यामन्दिर की पहचान है और हम आपके आगे और भी सफलताओं की कामना करते हैं।

श्रीमती वन्दिता

श्रीमती वन्दिता जी, श्रीमती उमा गुरूरानी पाण्डेय जी और कर्नल श्री विनोद पाण्डेय जी की सुपुत्री हैं। आपका जन्म 19 जनवरी 1980 को पुणे (महाराष्ट्र) के एक सैन्य अस्पताल, कमांड हॉस्पिटल में हुआ। आपके परिवार का सैन्य पृष्ठभूमि में होना और शिक्षा के प्रति उनका समर्पण, आपके जीवन को एक विशेष दिशा प्रदान करता है। आपकी प्रारंभिक शिक्षा कोचीन (केरल), आगरा और हिसार (हरियाणा) के केंद्रीय विद्यालयों में हुई। शिक्षा के दौरान आपने न केवल बुनियादी ज्ञान प्राप्त किया, बल्कि नेतृत्व कौशल भी विकसित किए। आपके अग्रज, श्री विक्रांत पाण्डेय जी की तरह, आप भी नेतृत्व की गुणवत्ता से सम्पन्न हैं और इसीलिए आप दिल्ली पब्लिक स्कूल, नोएडा की वाइस हेड गर्ल रहीं। आप एक मेधावी छात्रा रही हैं। आपके भाई, श्री विक्रांत पांडे जी, सिंगापुर में सिंगापुर गणराज्य की पूर्ण छात्रवृत्ति पर स्नातक की पढ़ाई कर रहे थे। इस संदर्भ में, सिंगापुर सरकार ने आपको भी छात्रवृत्ति प्रदान की और आप प्रतिष्ठित नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ़ सिंगापुर (एनयूएस) में प्रवेश पाने में सफल रहीं। आपने एनयूएस से कम्प्यूटेशनल फाइनेंस में स्नातक की उपाधि प्राप्त की, जो आपके समर्पण और मेहनत का परिचायक है।

आप न केवल एक सफल पेशेवर हैं, बल्कि सामुदायिक सेवा के प्रति अपनी अटूट प्रतिबद्धता के लिए भी जानी जाती हैं। विभिन्न सामुदायिक पहलों की एक सक्रिय सदस्य के रूप में, आपने जरूरतमंद लोगों की मदद करने के उद्देश्य से कई अभियानों का आयोजन किया है। आपकी सामुदायिक सेवा के प्रयासों ने आपको समाज में एक प्रेरणास्त्रोत बना दिया है। वर्तमान में, आप सिंगापुर के सिस्को सिस्टम्स में अकाउंट एक्जीक्यूटिव के रूप में कार्यरत हैं।

आपके पतिदेव, जिन्हें आम तौर पर श्री रामा कृष्णा जी के नाम से संबोधित किया जाता है, आंध्र प्रदेश के एक कुलीन ब्राह्मण (अब आधुनिकीकृत) हैं। उनका पूरा नाम श्री रामा कृष्णा वेंकट सत्य मारुवाड़ा है। वे एक प्रतिष्ठित वित्त पेशेवर हैं और वर्तमान में सिंगापुर टेली-कम्युनिकेशंस के वरिष्ठ वित्त निदेशक के रूप में कार्यरत हैं। श्री रामा कृष्णा जी बचपन से ही एक प्रतिभाशाली छात्र रहे हैं। उन्हें सिंगापुर सरकार द्वारा सिंगापुर में माध्यमिक शिक्षा और एन.यू.एस. में स्नातक की पढ़ाई के लिए चयनित किया गया था। उन्होंने एन.यू.एस. से इंजीनियरिंग में मास्टर डिग्री प्राप्त की और इसके बाद सिंगापुर मैनेजमेंट यूनिवर्सिटी से अकाउंटिंग में एक और मास्टर डिग्री हासिल की। श्री रामा कृष्णा जी ने सिंगापुर सशस्त्र बल (वायुसेना) में स्वयंसेवक के रूप में भी सेवा दी है, जो उनकी देशभक्ति और सेवा भावना को दर्शाता है।

SICJAA परिवार आपके परिवार के हमारे विद्यालय के गौरव बहाली के लिए किए गए अभूतपूर्व योगदान के लिए आभारी है। आपकी उपलब्धियाँ न केवल आपके परिवार के लिए गर्व का विषय हैं, बल्कि हमारे विद्यालय के लिए भी प्रेरणा का स्रोत हैं। हम आपके समृद्ध और परिपूर्ण जीवन के लिए माँ शारदा से प्रार्थना करते हैं। आपकी शिक्षा, पेशेवर सफलताएँ और सामुदायिक सेवा के प्रति समर्पण, सभी मिलकर आपके जीवन की अद्वितीय पहचान बनाते हैं।

श्री गंगा प्रसाद जोशी:

सिकजा परिवार अपने पूर्व प्रधानाचार्य, परम श्रद्धेय श्री गंगा प्रसाद जोशी जी के 51,000 रुपये के बहुमूल्य योगदान के लिए हृदय की गहराइयों से आभार व्यक्त करता है। यह योगदान सिर्फ धनराशि का नहीं, बल्कि उस असीम आत्मीयता और सेवा भावना का प्रतीक है जो आपने हमारे विद्यालय और इसके छात्रों के प्रति दर्शाई है। आपने 1960 के दशक से 2000 के दशक तक हमारे विद्यालय में एक कर्मयोगी की तरह निरंतर सेवा की। इस दौरान आपने न केवल हजारों साधनहीन छात्रों को शिक्षा प्रदान की, बल्कि एन.सी.सी. के माध्यम से उनमें अनुशासन, कर्तव्यनिष्ठा, देशप्रेम और स्वाभिमान की भावना का संचार किया।

आपका समर्पण और सेवा भाव विद्यालय के प्रत्येक छात्र और शिक्षक के लिए सदैव प्रेरणा का स्रोत रहे हैं। आपने छात्रों में जो नैतिक मूल्य और अनुशासन का विकास किया, वह आज भी हमारे विद्यालय की पहचान बने हुए हैं। आपने जिस प्रकार से छात्रों के सर्वांगीण विकास को प्राथमिकता दी और उन्हें शिक्षा के साथ-साथ राष्ट्रसेवा के लिए प्रेरित किया, वह आपकी दूरदर्शिता और नेतृत्व क्षमता का अद्वितीय प्रमाण है।

आपका योगदान और सेवाएं विद्यालय के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में अंकित हैं। सिकजा परिवार आपके इस अमूल्य योगदान के लिए हमेशा कृतज्ञ रहेगा और आपके दिखाए मार्ग पर चलते हुए विद्यालय को नई ऊंचाइयों तक ले जाने का प्रयास करेगा।

आपका जन्म आजादी से पूर्व, 1945 में, बांजधर गांव में हुआ था। आपके पिता, आदरणीय श्री श्रीबल्लभ जोशी जी, अपने समय के एक प्रतिष्ठित और आदर्शवादी व्यक्ति थे, जिन्होंने आपको प्रारंभ से ही देशप्रेम, कर्तव्यनिष्ठा और उच्च संस्कारों की सीख दी। आपने बाल्यकाल से ही शिक्षा के प्रति गहरी रुचि और लगन दिखाई। इसके बाद आपने सर्वोदय इंटर कॉलेज, जयंती में प्रवेश लिया और 1959 में हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की। इस उपलब्धि के साथ, आप हमारे विद्यामंदिर के सबसे वरिष्ठ पूर्व छात्रों में से एक बन गए।

आपने अपनी उच्च शिक्षा के लिए अल्मोड़ा का रुख किया और जी.आई.सी. अल्मोड़ा से इंटरमीडिएट की परीक्षा पास की। इसके पश्चात, अल्मोड़ा डिग्री कॉलेज से स्नातक (बीए) की डिग्री प्राप्त की। उच्च शिक्षा के प्रति आपकी जिज्ञासा ने आपको नैनीताल की ओर अग्रसर किया, जहां आपने कुमाऊँ विश्वविद्यालय से हिन्दी और राजनीति शास्त्र में मास्टर डिग्री हासिल की।

1965 में आपने हमारे विद्यालय में एल.टी. शिक्षक के रूप में अपनी सेवा का शुभारंभ किया। आपकी शिक्षा के प्रति समर्पण और निष्ठा के कारण आपको 1969 में हिन्दी प्रवक्ता के पद पर पदोन्नति मिली। आपकी विद्वता, अनुशासनप्रियता और नेतृत्व क्षमता ने विद्यालय में एक अनुकरणीय माहौल का निर्माण किया।

1996 में, जब हमारे द्वितीय प्रधानाचार्य, श्री चन्द्रदत्त जोशी जी, सेवा निवृत्त हुए, तो आपको प्रधानाचार्य के पद पर सुशोभित किया गया। आपके नेतृत्व में विद्यालय ने शिक्षा और अनुशासन के नए आयाम छुए। आपके अथक प्रयासों और समर्पण के कारण विद्यालय ने शिक्षा के क्षेत्र में एक विशिष्ट पहचान बनाई।

आपके प्रयासों से ही 1971 में विद्यालय में एनसीसी की स्थापना हुई, जिसने छात्रों को अनुशासन, कर्तव्यनिष्ठा, और देशप्रेम की शिक्षा दी। एनसीसी ने कई गरीब छात्रों के लिए एक नई राह खोली, जिनके पास साधन नहीं थे, उन्हें एनसीसी के माध्यम से देश के विभिन्न हिस्सों में जाने और सीखने का मौका मिला।

आपने न केवल इन छात्रों को शिक्षा प्रदान की, बल्कि उनके जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने का प्रयास भी किया। आपने साधनहीन छात्रों की परेशानियों को समझते हुए, उन्हें एनसीसी के जूतों और यूनिफार्म के माध्यम से आगे बढ़ने में मदद की। आपके योगदान से इन छात्रों को आत्मसम्मान और आत्मविश्वास मिला, जो उनके जीवन को दिशा देने में सहायक बना।

38 वर्षों के सफल कार्यकाल के बाद, आप 2003 में प्रधानाचार्य पद से सेवानिवृत्त हुए। हालांकि, सेवानिवृत्ति के बाद भी, आपने समाज और अपनी जन्मभूमि के प्रति अपनी सेवा जारी रखी। आपका बांजधर गांव से अटूट लगाव और प्रेम प्रेरणादायक है। अपने भाइयों और बच्चों की लाख कोशिशों के बाद भी, आपने अपनी जन्मभूमि को छोड़ने से इंकार कर दिया और यहीं पर अपनी सेवाएं जारी रखीं।

आपको 1972 में एनसीसी में कमीशन मिला और 1990 में मेजर के पद पर प्रोन्नत हुए। यह आपकी अनुशासनप्रियता, नेतृत्व क्षमता और देशप्रेम के प्रति आपके समर्पण का प्रमाण था।

सिकजा परिवार आपके इस अमूल्य योगदान और सेवा के लिए कृतज्ञ है। हम आपके स्वस्थ, समृद्ध और सुदीर्घ जीवन की कामना करते हैं। आपकी उपस्थिति हमारे लिए सदैव प्रेरणास्रोत रहेगी और अपने हर कार्यक्रम में आपकी गरिमामयी उपस्थिति के साथ आशीर्वाद का आकांक्षी हैं।

Shri Kripal Singh Bisht:

(Major Contributor for restoration of the Glory of SICJ)

The SICJAA family expresses its heartfelt gratitude to Shri Kripal Singh Bisht Ji, a distinguished first-generation alumnus of the 1976 batch, for his generous contribution of ₹72,100 towards the noble cause of restoring the glory of our Vidyamandir. We were honoured by your gracious presence at our AGM on September 8, 2024, held within the nostalgic yet dilapidated premises of our Vidyamandir.

Not only did you accept our invitation to be physically present at the AGM, but your powerful words, expressing your commitment to this movement until your last breath, deeply inspired and boosted our morale. Your emotional reflection on visiting your alma mater for the first time in 48 years moved all of us. This divine movement, which has the power to connect three generations of alumni from across the nation, is truly a testament to one of the core objectives of SICJAA. Your involvement has added to its strength and spirit.

You have retired from the esteemed position of Director in the prestigious Research and Analysis Wing (R&AW) of the Government of India, having undertaken numerous national and international assignments. Despite such remarkable achievements, we are deeply moved by your humility and the kind words you shared, acknowledging that everything you have achieved in life is a gift from this Vidyamandir and a result of the discipline instilled by its dedicated gurus.

Our former principal, the respected Shri Ganga Prasad Joshi Ji, was equally moved when he met you on the college premises after 48 years. His aged eyes sparkled with joy as he fondly recalled a significant event from 1975, when he sent you and Shri Prakash Singh Bora Ji to an NCC camp in Kanpur during the sweltering heat of May. He noted the remarkable transformation in your personality following the camp and proudly mentioned that you were the first Under Officer of NCC at SICJ. Such a reunion, filled with shared memories, could only happen through the grace of Maa Saraswati.

As we have reiterated time and again, the hidden and underlying force behind this noble movement is divine, and we are merely instruments of its execution. Embrace it fully and experience its blessings by immersing yourself in the pool of SICJAA. To do otherwise would be to miss a divine opportunity of a lifetime.

Shri Hari Dutt Bhatt:

(Major Contributor for restoration of the Glory of SIC)

Shri Hari Datt Bhatt Ji is an alumnus of our school who is one of the major contributors for the restoration of the glory of our Vidyamandir. He belongs to the village Papoli Bayali (Dhurka Divav). He studied in SIC Jayanti and passed intermediate in 1983. Thereafter, he moved to Lucknow for competitive exams. His struggle for a respectable job is exemplary.

While preparing for competitive exams, he got a job in a Publication House. He continued his preparation for exams while in job. He got appointed in the UP-Electricity Board and thereafter, he got a regular appointment in Indian Red Cross. But he did not give up his preparation and got appointed as LDC in the UP Secretariat. His journey continued and he took his new assignment in Regional Centre Lucknow of National Science Museum, Calcutta, an Enterprise of Government of India.

Finally, he was appointed as Reader (Peshkar) in District Consumer Forum, Dehradun, and presently posted at Lucknow. The professional journey of Bhatt Ji is really inspiring. His quench for respectable service did not extinguish, and he changed jobs as we change our clothes.

Bhatt Ji is deeply pained by the dire state of SIC, that is why he made a major contribution of Rs 1,02,000/- (One Lakh Two Thousand only) for restoration of the glory of our Vidyamandir within three days of our request.

Bhatt Ji's wife, Smt Nisha Bhatt, is a simple spiritual housewife. Bhatt Ji has two children who are well settled. His son is Marine Engineer, and his daughter is the Sales Manager in Bajaj Finance. The success of his children is attributed to his deep concern for society at whose cost he achieved success. We wish continued support from Bhatt Ji for this noble cause.

Er. Anil Kumar Gururani:

(Top Achievers & Major Contributor for Restoration of the Glory of SIC)

Er. Shri Anil Kumar Gururani Ji, an alumnus of our Vidyamandir, is the 2nd son of our venerated first and founding Principal Shri Devi Datt Gururani Ji. He belongs to village Pubhaun, Jainti, Almora and presently settled in Noida (UP), NCR after retirement from Indian Railways. He passed High School in 1974 and Intermediate in 1976 from SIC with flying colours. During college days, he was jack of all trades and was especially good cricket and volleyball player.

After passing the 12th exam with first honours, he got admission in prestigious Roorkee engineering college (now IIT, Roorkee). After graduating in mechanical engineering, he qualified  Indian Engineering Service exam conducted by UPSC with top rank and became a Railway Mechanical Engineer. He served the Indian Railway in various capacities and retired in 2019 from the top post.

He is deeply concerned with the present predicament of SIC and assured full support for restoration of its glory. He is not only the top achiever of our Vidyamandir but also one of the top contributors for the noble cause. After taking membership of SICJAA, he has contributed the of Rs. 1,0100/- (Rupee One Lakh One Hundred Only) for restoration of the glory of SIC.

Er. Anil Gururani Ji’s elder brother Dr. Susheel Gururani Ji, retired Principal of degree college and a well-known educationist, is also an alumnus of SIC and a member of this group. He is also deeply concerned with the predicament of SIC. He graced last year’s foundation day celebrations of SIC.

Their youngest brother, Shri Arvind Gururani Ji, is also an alumnus of SIC. He passed intermediate from SIC in 1978 and graduated in electronics engineering from BIT, Pilani, Rajasthan, a renowned institute for electronic engineering.  He is also a well-established engineer.  Their only sister is also well settled in NCR. The glorious achievements of Gururani Ji siblings are attributed to their father’s unflinching dedication for our Vidyamandir and empathy towards poor people.  He served our Vidyamandir for 37 years like a true “Karmyogi” and led it to unsurmountable  heights.

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श्री कान्ति बल्लभ भट्ट (कमल भट्ट)

SICJAA परिवार अपने सफलतम सदस्य श्री कांति बल्लभ भट्ट जी का एस. आई. सी. के गौरव बहाली के जन कल्याणकारी कार्य के लिए 1,00,000/- रु. (एक लाख रुपये) का असाधारण सहयोग के लिए आभार व्यक्त करता है। सर्वप्रथम हम आप से क्षमा याचना करते हैं कि आपकी अनुमति के बिना आपका अमूल्य सहयोग हम अपनी वेब साइट में डाल रहे हैं। मेरे और श्री योगेश गहतोड़ी जी के अनुरोध के बावजूद आपने अपनी डिटेल्स शेयर करने से मना किया क्योंकि आप बिना पब्लिसिटी के एक कर्मयोगी की तरह निष्काम भाव से अपनी मातृ संस्था का कर्ज उतारने के लिए आर्थिक सहयोग करना चाहते थे और इसे अपना नैतिक दायित्व समझते हैं। जिससे हम गदगद् हुए और आप के प्रति हमारा सम्मान कई गुना बढ़ गया। इस पर मुझे विवेकानन्द जी की शिष्या लेडी जोस्फिने मकलौईड की बात याद आगाई when I met Russian Czar, I felt how great he is and how small I am and when I met Vivekananda, I felt how great he and how great I am (यानि जब किसी व्यक्ति के विचार या व्यवहार आपको गौरवान्वित करे तो वास्तव में वह श्रेष्ठ व्यक्ति होता है) हम आपकी भावनावों का सम्मान करते हैं और आपकी संवेदनशीलता को भी सलाम करते हैं।

हमारे इस अभियान का उद्देश्य सभी पूर्व छात्रों को जोड़कर एक मंच प्रदान कर उनके बीच अटूट संबंध स्थापित करना भी है। हमें यह भी बताना आवश्यक है कि केवल नौकरी में ही नहीं हमारे पूर्व छात्र अन्य व्यवसाय में भी ऊंचाई छू रहे हैं और हमारे विद्यामन्दिर के गौरव बहाली के लिए संकल्पकृत हैं। आपके निष्काम भाव ने अभियान के लिए प्रेरक का कार्य किया और आप कई लोगों के प्रेरणा श्रोत बन गए हैं।

उपलब्ध जानकारी के आधार पर आप एस.आई.सी. के 1993 इंटरमीडियेट बैच के पूर्व छात्र हैं। आपका जन्म ग्राम सुरेना (सूरी) में हुआ और आप अपने परिवार के साथ वर्तमान में चंडीगढ़ में रहते हैं जहां आपका रियल इस्टेट का फलता फूलता व्यवसाय है। श्री योगेश गहतोड़ी जी के अनुरोध पर जब मैंने परसों रात 9 बजे आपको फोन किया तो आपका फोन स्विच ऑफ था। अगले दिन आपसे वार्तालाप से ज्ञात हुआ कि आप ठीक 8 बजे रात अपना फोन स्विच ऑफ कर देते हैं और फिर सुबह ही खोलते हैं। रात्रि का समय आप स्वयं और परिवार को देते हैं। जो हम सभी के लिए इन्फॉर्मेशन एडिक्शन की उम्र में एक अद्भुत सीख है। रियल इस्टेट में होने के बावज़ूद भी आप इतना व्यवस्थित जीवन जीते हैं, ये आपके संयम और अनुशासन का अनूठा उदाहरण है। इसी कारण आपके तीनों बच्चे बहुत होनहार हैं। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं की आपके नाम के अनुरूप आपकी कान्ति भी सर्वत्र फैलती रहे।

Dr. Bhim Singh Negi:

Dr. Bhim Singh Negi, an alumnus of SIC, Jainti belongs to village Kaladungra. presently he is settled at Lucknow. He had studied in SIC Jayanti from 1988 to 1995. He took part in various cultural programmes and other co-curricular activities. While studying in the 10th class, he took part in district and state level science exhibitions under the guidance of Shri Dev Singh Bisht Ji, Lecturer, Biology of SIC and got second and third position respectively.

After passing out 12th exam in 1995, he moved to Lucknow for preparing medical exam. He got selected in BAMS programme and passed BAMS from Government Medical College, Lucknow. After graduating in Ayurveda, he started practice in Lucknow and is now an established practitioner. He is a devout social worker associated with a number of social organisations. He organises a number of medical camps in slum and under privileged areas and also conducted blood donation camps in different areas.

On 9th September 2023,  he installed and consecrated a beautiful idol of "Maa Sharda" in the college premises and also organised a mega camp and community kitchen. Dr. Negi is torchbearer of the campaign for restoration of glory of SIC, Jainti. His commitment for the campaign is unflinching. He is committed to serve his alma matter. He has contributed the of Rs. 1,00,000/- (Rupee One Lakh Only) for restoration of the glory of SIC.

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श्री जगदीश चन्द्र सनवाल जी :

SICJAA परिवार आदरणीय श्री जगदीश चंद्र सनवाल जी का उनके 51,000 रुपये के बहुमूल्य योगदान के लिए हृदय से आभार व्यक्त करता है। आप हमारे सम्मानित वरिष्ठ सदस्य, 1975 बैच के पास आउट हैं। आप एक अत्यंत संवेदनशील और उदार व्यक्तित्व के धनी हैं। श्री योगेश गहतोड़ी जी के एक निवेदन पर आपने जून की तपती धूप में बैंक जाकर SICJAA के अकाउंट में अनुदान की पहली किश्त जमा की और फिर बारिश में भी अनुदान की दूसरी किश्त जमा कर, अपना नाम प्रमुख दानदाताओं में दर्ज कराया। हम आपकी इस संवेदनशीलता और सेवा भावना को प्रणाम करते हैं।

आपने संघर्ष से सिद्धि की जो कहानी अपने शब्दों में व्यक्त की, वह सचमुच मार्मिक और प्रेरणादायक है। हम इसे SICJAA के नए सदस्यों के संज्ञान में लाने का प्रयास करेंगे, ताकि वे भी आपके समर्पण और संघर्ष की इस अमूल्य सीख से प्रेरित हो सकें। आपका योगदान न केवल आर्थिक रूप से, बल्कि प्रेरणात्मक रूप में भी हमारे समाज के लिए एक मूल्यवान धरोहर है।

आपका बचपन ननिहाल ग्राम लोहना में बहुत ही आर्थिक तंगी में बीता, लेकिन इसके बावजूद आपने अपने जीवन में कभी हार नहीं मानी। प्रारंभिक शिक्षा के दौरान, आपने प्राईमरी पाठशाला भीमादेवी से पांचवीं कक्षा तक की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद, छठी से लेकर इण्टरमीडिएट तक की शिक्षा आपने सर्वोदय इण्टर कालेज जयन्ती से प्राप्त की, जहाँ आपने 1973 में हाईस्कूल परीक्षा ससम्मान प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की।

आपका जीवन कई सम्मानित सदस्यों, जैसे SICJAA के अध्यक्ष डॉ. आनंद सिंह बिष्ट जी, श्री रूप सिंह बिष्ट जी सिलपड़ वाले और आपके सहपाठी श्री नारायण दत्त भट्ट जी गड़ाऊं वालों की तरह, पितृ छाया से वन्चित रहा, लेकिन इस कठिन परिस्थिति में भी आपने अपनी लगन के साथ मेहनत से संघर्ष करते हुए शिक्षा प्राप्त की और अपने जीवन को सिद्धि की ओर अग्रसर किया। आपकी इस संघर्षमयी यात्रा ने न केवल आपको एक मजबूत व्यक्तित्व बनाया, बल्कि यह हमारे समाज के लिए भी एक प्रेरणा बन गई।

आपकी माता जी, एक सत्यनिष्ठ, साहसी और कर्मयोगिनी थीं, जिन्होंने अपने संघर्षपूर्ण जीवन में हर चुनौती का सामना करते हुए न केवल आपका पालन-पोषण किया, बल्कि आपकी शिक्षा को सुचारू रखने के लिए भी हर संभव प्रयास किया। उनके द्वारा किए गए त्याग और समर्पण ने आपकी सफलता की नींव रखी। वे पर्वतीय ग्राम स्वराज मंडल में कताई-बुनाई का कार्य करती थीं और उनकी कर्तव्यपरायणता और सौम्यता के कारण पूरा क्षेत्र उन्हें "पनुली दी" के नाम से सम्मान और प्रेम से जानता था।

मुझे आज भी आपके किशोरावस्था के दिनों की वह छवि स्मरण है, जब आपकी माता जी का शांत, सौम्य परंतु चिंताग्रस्त और अनिश्चितता से भरा मुखमंडल मेरे मन में गहराई से अंकित हो गया था। उनकी तपस्या और समर्पण की वह छाप आज भी मेरे स्मृतिपटल पर अमिट रूप से दर्ज है और यह मुझे निरंतर प्रेरित करती रहती है। उनका संघर्ष और साहस हमें यह सिखाता है कि कठिनाइयों के बावजूद कैसे धैर्य और दृढ़ संकल्प से जीवन को आगे बढ़ाया जा सकता है।

आपके जीवन की वह समयावधि, जब आपने अपनी माता जी और श्रीमती देवकी कुंजवाल जी के साथ चौखुरी में समय बिताया, आपके लिए अविस्मरणीय थी। उस समय का सानिध्य, विशेष रूप से पूज्यनीय पाण्डेय जी और उनके परिजनों द्वारा किया गया सहयोग, आपके जीवन की एक अनोखी और स्वप्निल यात्रा की तरह प्रतीत होता है। वह सहयोग और समर्थन, जो आपको उनके परिवार से मिला, आज भी आपके दिल में बसा हुआ है। आपके विद्यालय के संस्थापक और प्रथम प्रधानाचार्य, परम श्रद्धेय स्व. श्री देवीदत्त गुरूरानी जी की असीम कृपा ने आपके जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने न केवल आपकी फीस माफ करवाई, बल्कि गरीबी के संघर्ष के समय में आपकी हरसंभव मदद की, जिससे आप अपने शैक्षिक सफर को आगे बढ़ा पाए।

आपका इण्टरमीडिएट का पहला बैच था, लेकिन अध्यापकों की कमी और खेल, विशेषकर क्रिकेट के प्रति आपके अधिक रुझान के कारण आपकी पढ़ाई कुछ बाधित रही। उस समय SICJ में हर खेल का अलग-अलग कैप्टन होता था, और आप भी क्रिकेट के कैप्टन बने, जिसका प्रमाण पत्र आज भी आपने ससम्मान सुरक्षित रखा है। यह प्रमाण पत्र न केवल आपके खेल के प्रति जुनून को दर्शाता है, बल्कि उस समय की आपकी नेतृत्व क्षमता और उपलब्धियों का भी प्रतीक है। यह सब आपके जीवन की एक प्रेरणादायक कहानी है, जो संघर्षों से भरी हुई होने के बावजूद, आपके साहस और कड़ी मेहनत की मिसाल पेश करती है।

वर्ष 1976 में आपने बी.एस.सी. की पढ़ाई के लिए डिग्री कॉलेज, अल्मोड़ा में दाखिला लिया और वहां भी आपको क्रिकेट खेलने का अवसर मिला। लेकिन, आर्थिक परिस्थितियों की गंभीरता ने आपकी राह में बाधाएँ खड़ी कीं। फीस न दे पाने और शहर में कमरे का किराया न चुकाने जैसे कारणों से आपको बी.एस.सी. की पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी। इस कठिन समय में आपने ढोलीगांव इंटर कॉलेज में दो-तीन साल तक हाईस्कूल में गणित और विज्ञान पढ़ाया। लेकिन, जब उस विद्यालय का प्रांतीयकरण हुआ और आप अनट्रेंड थे, तब आपको स्कूल छोड़ना पड़ा।

उसी वर्ष जयन्ती में आई.टी.आई. की शुरुआत हुई और आपने वहां से ड्राफ्ट्समैन का कोर्स किया। इसके बाद, एक वर्ष तक कुमाऊं मंडल विकास निगम में सेवा देने के बाद, सिंचाई विभाग में आपकी राजकीय सेवा के लिए चयन हुआ। इस दौरान आपकी पोस्टिंग देहरादून, मेरठ, गोरखपुर, हल्द्वानी और फिर देहरादून में हुई। इन स्थानों पर रहते हुए, आपको राज्य स्तरीय सर्विसेज की क्रिकेट टीम में बतौर ऑलराउंडर खेलने का गौरव प्राप्त हुआ। आपने प्रतिष्ठित के.डी. सिंह बाबू स्टेडियम लखनऊ, ग्रीन पार्क कानपुर और आगरा जैसे बड़े स्थलों पर क्रिकेट खेला, जो आपकी खेल प्रतिभा और उत्साह का प्रमाण है।

वर्ष 2015 के जनवरी माह में, आपने नलकूप खण्ड हल्द्वानी से संगणक/जेई तकनीकी के सम्मानित पद से सेवानिवृत्ति प्राप्त की। आपके जीवन का हर पल चुनौतियों से भरा रहा, जिसने आपको एक परिपक्व और संवेदनशील व्यक्ति बनाया। आपकी यह यात्रा संघर्ष और कठिनाइयों से भरी रही, लेकिन आपने हर मुश्किल को साहस और दृढ़ संकल्प से पार किया। यह आपकी मेहनत, समर्पण और संघर्ष से मिलने वाली सफलता का ही परिणाम है, जो निस्संदेह अत्यंत श्रेयस्कर है।

हम सभी आपके स्वस्थ, समृद्ध और परिपूर्ण रिटायर्ड जीवन की कामना करते हैं। आपकी माताजी की पुण्य आत्मा, जहां भी होंगी, निश्चय ही आपकी उपलब्धियों से संतृप्त होंगी। आपका जीवन उन सभी के लिए एक प्रेरणास्रोत है जो जीवन में कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं और आपने यह साबित कर दिया कि संघर्ष से मिली सफलता सबसे मूल्यवान होती है।

Shri Bhuwan Chandra Joshi :

(Major Contributor for Restoration of the Glory of SIC)

Shri Bhuwan Chandra  Joshi Ji, an alumnus of SIC Jayanti, belongs to village Sunari, Jayanti. He is the most sensitive person who is deeply pained by the present state of SIC, Jayanti. Immediately after the 74th Establishment Day commemoration of our Vidyamandir on 9th September 2023, he expressed willingness for liberal donation for restoration of its glory. He is a major contributor for the restoration of the glory of our Vidyamandir. He has contributed Rs.51,000/- (Fifty-One Thousand only)  for this noble cause, which is the highest amount for a non-executive member of SICJAA, hence the entire SICJAA family is grateful to him and his concern for our Vidyamandir and salutes to his passion for this social cause.

Joshi Ji studied in SIC Jayanti from 9th to 12th standard in 1990 decade. His father, Late Shri Dinesh Chandra  Joshi Ji, retired as JCO from Indian Navy. He was simple, gentle and very helpful person. His mother Late Shrimati Parwati Devi was also a simple housewife.

After passing out from SIC, Jayanti he moved to Lohaghat, District Champawat for diploma in electronics. During diploma engineering he got an opportunity to work in a picture tube manufacturing company namely Samtel Glass Limited at Kota, Rajasthan. He worked in the said company till 2011 and also started Real Estate Business in Kota from 2001.

In 2011, he made his mind to shift to his Devbhumi and started real estate business in Durgapur No-2, Main Kali Nagar, Dineshpur Road, Rudrapur, Udham Singh Nagar, Uttarakhand. He established a real estate firm “Maa Barahi Colonizers & Builders” in 2015. His firm is now well established and doing handsome business.  Joshi Ji’s both parents died in 2018 and 2019 respectively. Their eternal soul would be pleased to see their son’s remarkable success.

The success of  Joshi Ji and his firm is attributed to the direct blessings of “Ma Barahi” because goddess “Barahi” blesses her devotees who liberally donate for the welfare of society. We wish continued support from  Joshi Ji for this noble cause.

श्री मोहन चन्द्र भट्ट जी

SICJAA परिवार परम आदरणीय श्री मोहन चंद्र भट्ट जी के 50,000 रुपये के बहुमूल्य और उदार योगदान के लिए हृदय की गहराइयों से आभार व्यक्त करता है। आप न केवल ग्राम भाबू के मूल निवासी हैं, बल्कि उस भूमि के गौरवशाली उत्तराधिकारी भी हैं, जहाँ विद्वानों, कलाकारों और आध्यात्मिक गुरुओं की परंपरा सदियों से जीवित रही है। वर्तमान में आप सेवानिवृत्ति के बाद हल्द्वानी में निवास कर रहे हैं, लेकिन आपकी जड़ें, आपकी पहचान आज भी भाबू गाँव की मिट्टी में बसी हुई हैं।

आपने पंतनगर यूनिवर्सिटी से BVSc की डिग्री प्राप्त की और अपने जीवन की पहली सीढ़ी पर कदम रखा, जहाँ आपने कड़ी मेहनत, संकल्प और धैर्य से प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता प्राप्त की। आपकी यह यात्रा भारतीय स्टेट बैंक (SBI) में बैंक अधिकारी के रूप में चयन से शुरू हुई और कठिन परिश्रम, ईमानदारी और कार्यकुशलता के बल पर आप SBI के उच्चतम पद, AGM (असिस्टेंट जनरल मैनेजर) से सेवानिवृत्त हुए।

आपका यह योगदान न केवल आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह आपके समाज के प्रति स्नेह, संवेदनशीलता और उदारता का सजीव प्रमाण है। आपका गाँव भाबू न केवल विद्वानों और कलाकारों की भूमि है, बल्कि वहाँ की आध्यात्मिक विरासत भी अमूल्य है। हम परम आदरणीय श्री पान देव मासाप के रावण के अद्वितीय अभिनय और श्रद्धेय बाबा कल्याण दास जी महाराज की आध्यात्मिक उपलब्धियों को आज भी स्मरण करते हैं। आज, उसी गौरवशाली परंपरा को प्रिय कमल भट्ट जी ने जारी रखते हुए हमारे विद्या मंदिर और पूरे क्षेत्र का मान बढ़ाया है।

हमारी भावनाएँ शब्दों से परे हैं। आपने हमारे विद्या मंदिर के एल्युमिनाई न होते हुए भी जो अभूतपूर्व योगदान दिया है, उसने न केवल हमें गहराई से छू लिया है, बल्कि उन सभी लोगों को भी प्रेरित किया है, जो अब तक दूर थे या असमंजस की स्थिति में थे। आपकी इस उदारता ने हमारे दिलों में जो भावनाएँ जगाई हैं, वो हम शायद शब्दों में पूरी तरह व्यक्त न कर सकें।

आपने समाज के प्रति जो प्रेम और समर्पण दिखाया है, वह हम सभी के लिए अनुकरणीय है। आपने अपने कर्मों से यह सिखाया है कि इंसानियत की सेवा केवल व्यक्तिगत उपलब्धियों तक सीमित नहीं होती, बल्कि समाज को ऊँचाइयों तक ले जाने में भी योगदान देती है।

SICJAA परिवार आपकी इस उदारता और सहयोग के लिए नतमस्तक है। आपका यह स्नेह और समर्थन हमारे मिशन को नई ऊँचाइयों तक ले जाएगा और हम भविष्य में भी आपकी इस प्रेरणा से समाज सेवा की दिशा में निरंतर आगे बढ़ते रहेंगे। हम आपके इस योगदान को सदैव याद रखेंगे और इसके प्रति सदा कृतज्ञ रहेंगे।

श्री बी. के. चमोली जी (रिटायर्ड प्रिंसिपल)
गवर्नमेंट सीनियर सेकेंडरी स्कूल
, दिल्ली


SICJAA परिवार आदरणीय श्री बी.के. चमोली जी, रिटायर्ड प्रिंसिपल, गवर्नमेंट सीनियर सेकेंडरी स्कूल, दिल्ली द्वारा हमारे विद्यामंदिर के पुनर्निर्माण और इसके शिक्षा की गुणवत्ता सुधार के लिए दिए गए 51,000 रुपये के अभूतपूर्व योगदान के लिए हृदय से आभारी है। शिक्षा के प्रसार के प्रति आपकी अद्वितीय संवेदनशीलता और समर्पण भाव को हम नमन करते हैं।

आप हमारे अध्यक्ष डॉ. आनंद सिंह बिष्ट जी के सहकर्मी रहे हैं, और आपने उनके नेतृत्व में दक्षिणी दिल्ली के कई स्कूलों की शिक्षा गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए सराहनीय कार्य किया है। यह हम सब के लिए गर्व की बात है और हमारे गुरुवृंद के लिए अत्यंत प्रेरणादायक घटना है। आपने 2020 में प्रधानाचार्य के पद से सेवानिवृत्त होकर दिल्ली में सपरिवार निवास कर रहे हैं।

हिंदी दैनिक समाचार में डॉ. आनंद सिंह बिष्ट जी के नेतृत्व में हमारे विद्यामंदिर की गौरव बहाली का समाचार पढ़कर आपने न केवल इस महान कार्य में रुचि दिखाई, बल्कि मात्र 10 मिनट के भीतर ही माँ शारदे के चरणों में यह अनुदान राशि भेंट कर दी। यह शिक्षा के प्रति आपके अपार समर्पण और प्रतिबद्धता का प्रतीक है। आप और डॉ. आनंद सिंह बिष्ट जी का रिश्ता केवल शिक्षक और प्रधानाचार्य का नहीं था, बल्कि आप दोनों के बीच एक अटूट सम्मान और स्नेह का संबंध भी था, जो आपके द्वारा प्रेषित लेख से झलकता है।

आपका बचपन सादगीपूर्ण रहा और आपका जन्म टिहरी जनपद के पालम गाँव में हुआ। आपने प्रारंभिक शिक्षा टिहरी और उच्च शिक्षा श्रीनगर और दिल्ली में प्राप्त की। शिक्षा के प्रति आपका अनुराग पैतृक धरोहर के रूप में है, क्योंकि आपके पूज्य पिताजी स्वर्गीय श्री एन. एल. चमोली जी भी उत्तराखंड के जूनियर हाई स्कूल में प्रधानाध्यापक रहे हैं। उनकी अनुशासित जीवन शैली और कर्तव्यनिष्ठा का प्रभाव आपकी जीवन यात्रा में स्पष्ट दिखाई देता है।

आपकी सेवाएँ और आपके परिवार का शिक्षा के क्षेत्र में योगदान यह सिखाता है कि समर्पण, अनुशासन, और ईमानदारी से ही जीवन में उच्चतम मानदंडों को प्राप्त किया जा सकता है। आपकी उदारता और सेवा भावना के लिए हम पुनः आपका धन्यवाद करते हैं और माँ शारदे से प्रार्थना करते हैं कि वे सदैव आपको और आपके परिवार को आशीर्वाद प्रदान करें।

हम माँ शारदा से आपके स्वस्थ, परिपूर्ण, और सक्रिय सेवानिवृत्त जीवन और आपके परिवार के लिए सदैव खुशहाली और समृद्धि की कामना करते हैं।

श्री बी.के. चमोली जी का शिक्षा के प्रति प्यार और समर्पण भाव के लिए हृदयोद्गार!

श्री बी.के. चमोली जी, आपका योगदान अभूतपूर्व है, इस बात का हमें गर्व है,

विद्यामंदिर के पुनर्निर्माण में आपने जो अनुदान दिया वह सहयोग अपार है।

श्री चमोली जी, शिक्षा के प्रति आपकी भावना नमन योग्य और उच्चतम है,

आपके प्रेम, प्यार, समर्पण और संवेदनशीलता की मिसाल अन्यतम है।

 

डॉ. आनंद सिंह बिष्ट जी के साथ आपके संबंध भी अद्भुत हैं,

साथ मिलकर शिक्षा की अलख जगाई, आपके प्रयास अतुल हैं।

आप दोनों ने दिल्ली में सेवा करके, शिक्षा का मान बढ़ाया,

अपने अनुकरणीय कार्यों से हर शिक्षक का सम्मान बढ़ाया।

 

श्री चमोली जी, माँ शारदा के चरणों में आपका योगदान अनमोल है,

आपके इस प्रेम और समर्पण का हम सबके दिल में स्थान अनंत है।

आपका जीवन और शिक्षा का मार्गदर्शन, अब हम सभी को प्रेरित करता है,

आपकी सेवा, अनुशासन और कर्तव्यनिष्ठा का इतिहास हमें गर्वित करता है।

 

टिहरी जिले के पालम गाँव से लेकर दिल्ली तक की आपकी यह यात्रा,

दिखाती है कि कैसे एक साधारण शिक्षक बन सकता है एक प्रेरणा।

आपके पूज्य पिताजी से मिले संस्कार और उनका जीवन दर्शन,

आपके हर कदम में दिखता है उनका अनुशासन और समर्पण।

 

मैं, माँ शारदा से नित प्रार्थना करता हूँ कि आपको सदैव आशीर्वाद दें,

आपके परिवार में खुशियों की बरसात और समृद्धि का सागर भर दें।

आपकी उदारता का हम सदा आभार मानते हैं और यह भी वादा निभायेंगे,

कि आपके दिखाए मार्ग पर चलकर, शिक्षा का स्तर और ऊँचा उठाएंगे।

 

श्री चमोली जी, शिक्षा का यह दीपक जो आपने जलाया है, जलता रहे सदा,

आपके नाम का मान बढ़े और विद्यामंदिर का मान व गौरव भी हो सदा।

धन्यवाद, श्री बी.के. चमोली जी, आपके इस महान योगदान के लिए,

सदा आभारी रहेंगे, माँ शारदा के आशीर्वाद के साथ सदा आपके लिए।

 

मान्यवर, श्री बी.के.चमोली जी, हे! माँ शारदा के प्रिय भक्त,

आपका समर्पण और योगदान हम सभी के लिए है अद्भुत वक्त।

श्री चमोली जी,आपने शिक्षा के इस मंदिर को जो संजीवनी शक्ति दी है,

आपकी उदारता से हर मानव जीवनी की दिशा में नई रोशनी बही है।

 

अब आपसे विनम्र अनुरोध है कि, कृपया आप यह नेकी और बढ़ाएं,

श्री चमोली जी, आप अपने जैसे और भक्तों को भी इस मुहीम पर लाएं।

इस पुनर्निर्माण के महायज्ञ में उनके आर्थिक सहयोग की जरुरत है,

अब आपसे मिलकर हमें आशा, हिम्मत, साहस और साथ मिला है।

 

श्री चमोली जी, आपके प्रयासों से औरों में भी वही प्रेरणा जागृत होगी,

शिक्षा के इस मंदिर में सबकी आहुति से ही सच्ची समृद्धि होगी।

हम जानते हैं, आपकी भावना और आपका समर्पण अमूल्य है,

इस विद्यामंदिर के पुनर्निर्माण की नींव में, आपका विश्वास अनमोल है।

 

श्री चमोली जी, आपके आशीर्वाद से यह महायज्ञ और भी भव्य बनेगा,

माँ शारदा का आशीर्वाद सभी भक्तों को आजीवन सदा प्राप्त रहेगा।

हम आशा ही नहीं, पूर्ण विश्वास करते हैं, आप औरों को प्रेरित करेंगे,

और अपने अनवरत निस्वार्थ योगदान से इस कार्य को सफल करेंगे।

 

आर्थिक सहयोग के इस पुण्य कार्य में कृपा कर सभी को जुटाएं,

आप अपने जैसे माँ शारदा के भक्तों को भी इस दिशा में बढ़ाएं।

आपके साथ और विश्वास से, इस विद्यामंदिर का पुनर्निर्माण होगा,

और हर विद्यार्थी के जीवन में नित नया सवेरा और सम्मान होगा।

 

श्री चमोली जी, आपका आह्वान ही सबको इस पथ पर लाएगा,

आपका सहयोग और प्रेरणा ही माँ शारदा का काम करवाएगा।

हम आपके प्रेम-आशीर्वाद की छाया में शिक्षा का दीप जलाएंगे,

आपके सहयोग से विद्यामंदिर की इस यात्रा में नए इतिहास बनाएंगे।

 

श्री बी.के. चमोली जी, सादर धन्यवाद आपके इस महान योगदान के लिए, हम सदैव आपके आभारी रहेंगे और माँ शारदा के आशीर्वाद के साथ, आपके और आपके परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।

 

✍️ योगेश गहतोड़ी (सचिव, SICJAA)

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श्री जितेन्द्र जोशी:

श्री जितेंद्र जोशी जी हमारे द्वितीय प्रधानाचार्य परम आदरणीय श्री चंद्र दत्त जोशी जी के कनिष्ठ पुत्र हैं। आपका जन्म ग्राम बकस्वाड में 08.07.1975 को हुआ। आपकी प्रारंभिक शिक्षा अपने गांव के प्राइमरी स्कूल में हुई, और उसके बाद आपने 1985 में हमारे विद्यालय सर्वोदय इंटर कॉलेज जयंती में छठी कक्षा में प्रवेश लिया। सन 1991 में साइंस में इण्टरमीडिएट की परीक्षा अब्बल दर्जे में उत्तीर्ण कर ग्रैजुएशन के लिये हरकोर्ट बटलर तकनीकी विश्वविद्यालय (HBTU), जो पूर्व में हरकोर्ट बटलर प्रौद्योगिकी संस्थान (HBTI),  कानपुर, उत्तर प्रदेश  के एक ऐतिहासिक कॉलेज और तकनीकी विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया, जहाँ से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में B. Tech. की डिग्री प्राप्त की।

आपने आधुनिक औद्योगिक क्रांति की जनक सूचना प्रौद्योगिकी के असीमित आसमान में प्रवेश किया और पिछले 25 सालों में सूचना प्रौद्योगिकी की कई नामी कंपनियों में अपनी सेवाएं प्रदान की हैं। वर्तमान में आप SONY इंडिया के लिए काम कर रहे हैं और पिछले 17-18 साल से बैंगलोर में निवास कर रहे हैं। निःसंदेह आप एक कर्मयोगी हैं। आपकी तस्वीर से आपके मुख का तेज और बहुआयामी व्यक्तित्व की झलक दिखती है।

संपूर्ण SICJAA परिवार आपके निस्वार्थ और उदार भाव से दिए गए 51,000 रुपये के अतुलनीय योगदान के लिए आभारी है।

श्री प्रकाश चन्द्र शर्मा:

SICJAA सदस्य परिवार अपने वरिष्ठतम सदस्य आदरणीय श्री प्रकाश चंद्र शर्मा जी का एस. आई. सी. के गौरव बहाली के जन कल्याणकारी कार्य के लिए 51,000/- रु. (इक्यावन हजार रूपये मात्र) के अमूल्य योगदान के लिए आभार व्यक्त करता है। वे एस. आई. सी. के 1974 बैच के उत्कृष्ट पूर्व छात्र हैं। उनका जन्म सन 1958 में ग्राम पुभाऊं में एक साधारण परिवार में हुआ था और उनकी प्राथमिक शिक्षा प्राईमरी पाठशाला पुभाऊं में हुई। तत्पश्चात सन् 1967 में उन्होने कक्षा 6 में एस. आई. सी. में प्रवेश लिया। वे हमारे अध्यक्ष डॉ आनंद सिंह बिष्ट जी और प्रचार सचिव इं अमरनाथ सिंह बिष्ट जी के कक्षा 10 तक सहपाठी रहे और इन तीनों ने विषम आर्थिक परिस्थितियों के बावजूद कक्षा 10 की बोर्ड परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की।

श्री प्रकाश चंद्र शर्मा जी हमारे विद्यामन्दिर के एकमात्र छात्र थे, जिन्होंने सन् 1974 में विज्ञान स्ट्रीम के पहले बैच में प्रथम श्रेणी में इंटरमीडिएट उत्तीर्ण किया। प्रतिकूल वित्तीय परिस्थितियों के कारण, उन्हें शुरुआत में आर्ट साइड में प्रवेश लेना पड़ा क्योंकि उनके माता-पिता के पास उच्च अध्ययन के लिए उन्हें बाहर भेजने के लिए समुचित संसाधन नहीं थे। सौभाग्य से, वर्ष 1973 में सत्र के मध्य में विज्ञान स्ट्रीम खोली गई और उन्होंने कुछ अन्य छात्रों के साथ विज्ञान स्ट्रीम में स्विच कर लिया। दिलचस्प बात यह है कि वे एकमात्र छात्र थे जो सन् 1974 की बोर्ड परीक्षा में विज्ञान वर्ग से उत्तीर्ण हुए, वह भी प्रथम श्रेणी में।

12वीं की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद एक बार फिर उनकी आर्थिक परिस्थिति उनकी उच्च शिक्षा की उड़ान में बाधक बनी। लेकिन उच्च शिक्षा के लिए उनके जुनून के कारण नियति को भी झुकाना पड़ा और एक करीबी रिश्तेदार की मदद से उन्होंने डिग्री कॉलेज अल्मोड़ा में दाखिला लिया और कुमाऊं विश्वविद्यालय से बी.एस.सी. और एम.एस.सी. प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण कर एक सुनहरे भविष्य की नीव रखी। किसी ने ठीक ही कहा है कि “भाग्य भी वीर पुरुष का साथ देता है”।

मास्टर्स के बाद, उन्होंने शुरुआत में फ्री-लांसिंग की और उसके बाद अल्मोड़ा के श्री सी.पी. जोशी जी द्वारा नव स्थापित कंपनी टेलीट्रॉनिक्स लिमिटेड में नौकरी आरंभ की। जोशी जी, एक प्रसिद्ध इलेक्ट्रॉनिक वैज्ञानिक और वेतार तकनिकी विशेषज्ञ थे और बी.एस.एफ़. में सर्वोच पद से सेवानिवृत्त थे। उनके वायरलेस तकनीक में महत्वपूर्ण अन्वेषण और प्रयोग ने सन् 1971 के युद्ध में पाकिस्तान को मात देने में निर्णायक भूमिका अदा की, जिसके परिणामस्वरूप बांग्लादेश का निर्माण हुआ। सेवा निवृति के बाद उन्होंने टेलीट्रॉनिक्स लिमिटेड की स्थापना की।

सन् 1983 में, श्री प्रकाश शर्मा जी ने सी.एपी.एफ़. में असिस्टेंट कमांडेंट की प्रतियोगी परीक्षा में अब्बल स्थान प्राप्त कर बी.एस.एफ़. में असिस्टेंट कमांडेंट पद पर नियुक्ति प्राप्त की। बी.एस.एफ. में 35 साल के शानदार करियर के बाद, वे सन् 2018 में उच्च आईजी पद से सेवानिवृत्त हुए। बी.एस.एफ. में सेवा के दौरान उन्होने प्रिमियर फोर्स एन.एस.जी. में 5 साल तक प्रतिनियुक्ति के आधार पर सेवा की और एक साल तक यू.एन. मिशन मोज़ाम्बिक में सेवा प्रदान की। उन्हें कई पुरुस्कार और विशिष्ट पदकों से सम्मानित किया गया। जिनमें दो अलग-अलग राष्ट्रपति क्रमसः श्रीमती प्रतिभा पाटिल जी द्वारा दिया गया विशिष्ट सेवा पुलिस पदक और श्री राम नाथ कोविन्द जी द्वारा प्रदत्त राष्ट्रपति पुलिस पदक भी शामिल हैं। मोज़ाम्बिक में उत्कृष्ट सेवा के लिए उन्हें यू.एन. मेडल फॉर डिस्ट्विंगिस सर्विस मेडल सी.सी.आई.वी.पी.एल., मोज़ाम्बिक द्वारा प्रदान किया गया। जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद विरोधी चुनौती पूर्ण अभियान में घायल होने के कारण उन्हें पराक्रम पदक से भी नवाजा गया। 6 फिट लंबे आजानु बाहु और आकर्षक व्यक्तित्व के शर्मा जी बहुत सरल और सौम्य व्यक्ति हैं औऱ संगीत प्रेमी हैं। कॉलेज के दिनों में वह मधुर बांसुरी बजाते थे।

श्री प्रकाश शर्मा जी की SICJAA परिवार में उपस्थिति से हम सबका मार्गदर्शन होगा और मनोबल बढ़ेगा। आपके जीवन में “संघर्ष से सिद्धि की कहानी” हमारी नयी पीढ़ी के लिए लिए भी प्रेरणा श्रोत होगी।

श्री रूप सिंह बिष्ट:

आदरणीय श्री रूप सिंह बिष्ट जी का जन्म ग्राम सिलपड़ में 1950 में हुआ था। आपकी प्रारम्भिक शिक्षा अपने गाँव में ही हुई और प्राईमरी के बाद आपने सन् 1963 में SIC में छटी कक्षा में प्रवेश लिया और सन 1967 में साइंस से हाई स्कूल पास कर ओखलकांडा से साइंस में इंटरमिडियेट परीक्षा पास की। विपरित अर्थिक पस्थिति के बावजूद आपमे B Sc के लिए अल्मोड़ा डिग्री कॉलेज में प्रवेश लिया। आप हमारे प्रथम प्रधानाचार्य परम श्रद्धेय श्री देबी दत्त गुरुरानी जी के ज्येष्ठ पुत्र आदरणीय श्री सुशील गुरुरानी जी और आदरणीय श्री दिनेश कुंजवाल जी के सहपाठी थे। आप उस समय के क्षेत्र के गिनती के साइंस ग्रेजुएट में से एक थे। आपका बचपन काफी संघर्षपूर्ण रहा। आप हमारे अध्यक्ष डॉ आनंद सिंह बिष्ट जी की मौसा जी हैं और उन्हीं की तरह पितृछाया से बचपन में ही बन्चित हो गये और परिवार में सबसे बड़े पुत्र होने के कारण गृहस्थी का बोझ भी आपके कोमल कंधों में समय से पूर्व आ गया।

शादी के उपरांत आप कंम्पिटिशन की तैयारी के लिए दिल्ली आ गए और बहुत संघर्ष और कई नौकरियों के बाद आप रक्षा मंत्रालय के संस्थान DGQA (Directorate General of Quality Assurance- for defines products) में नियुक्त हुए और अपने परिश्रम और ईमानदारी के बल पर सन 2010 में एक सम्मानजनक पद से सेवानिवृत्त हुए। सेवा निवृत्ति के बाद आप नोएडा में निवास करते हैं। आप के सारे बच्चे होनहार है और विदेशों में बहुत अच्छी पोजिशन में सैटल हैं। SICJAA परिवार आपके 51,000 रू. के बहुमूल्य सहयोग के लिए आभारी है।

श्री बलवीर सिंह बिष्ट:

श्री बलबीर सिंह बिष्ट जी का जन्म हमारे ग्राम जैंती में 1964 में हुआ था। आप मेरे गाँव के अग्रज हैं। आपकी प्रारम्भिक शिक्षा  गाँव के पुरातन प्राईमरी पाठशाला, जिसमें हमारे विद्यालय के संस्थापक आदरणीय श्री राम सिंह धौनी जी सहित क्षेत्र के कई गणमान्य व्यक्तियों ने पढ़ाई की में हुई। हमारी तीन पीढ़ियों ने भी इसकी चहारदीवारी में जीवन का प्रथम पाठ पढ़ा। प्राईमरी के बाद आपने सन् 1975 में SIC में छटी कक्षा में प्रवेश लिया और सन् 1983 में ईंटर पास कर Competition के लिए लखनऊ की ओर रुख किया और बहुत संघर्ष के बाद उत्तर प्रदेश के फॉरेस्ट विभाग में नौकरी आरंभ की।

हाईस्कूल में हम सहपाठी थे। आप बचपन से ही बहुत कर्मठ और अनुशासन प्रिय हैं। सन 1987 में फॉरेस्ट रेंजर की परीक्षा के लिए मैं लखनऊ आपके पास गया था, तब से आज तक हमारी भेंट नहीं हो पाई। कठिन परिश्रम और लगन के बल पर आप कई पड़ाव पार कर आज फॉरेस्ट रेंजर के पद पर प्रतिष्ठित हैं। वर्तमन में आप हल्द्वानी में आवासित हैं। SICJAA परिवार आपके उदार और बहुमूल्य 51,000/- के सहयोग के लिए आभारी है।

श्री दिनेश कुंजवाल:

श्री दिनेश सिंह कुंजवाल जी, ग्राम कुंज के निवासी हैं और स्वर्गीय केदार सिंह कुंजवाल जी के सुपुत्र हैं। आप हमारे विद्यालय 1968 बैच के प्रथम पीढ़ी के पूर्व छात्र हैं। आपके पिताजी स्वर्गीय केदार सिंह कुंजवाल जी का इस विद्यालय के प्रति अटूट प्रेम था और उन्होंने अपने जीवनकाल का अधिकतम समय माँ शारदा की सेवा में तन-मन-धन से लगाया। आपके जीवन का एक बड़ा हिस्सा सामाजिक और शैक्षिक सुधारों की सेवा में समर्पित रहा है। श्री कुंजवाल जी ने माँ शारदा के विद्यामन्दिर के जीर्णोद्धार के लिए 51,000/- रुपये का अनुदान देकर आर्थिक रूप से सहयोग किया, जो आपकी शिक्षा के प्रति निष्ठा और विद्यालय के प्रति हार्दिक प्रेम को प्रदर्शित करता है। समाज में आपके मिलनसार व्यक्तित्व और समभाव वाले विचारों से आपको क्षेत्रीय जनता का व्यापक प्यार के साथ समाज में सम्मान भी मिलता है।

श्री दिनेश सिंह कुंजवाल जी अपने सार्वजनिक जीवन की शुरुआत से ही अपने क्षेत्र के विकास के प्रति समर्पित रहे हैं। आपने विभिन्न सामाजिक और शैक्षिक अभियानों में सक्रिय भूमिका निभाई है, विशेष रूप से अपने पुराने विद्यालय की स्थिति पर ध्यान केंद्रित किया। विद्यालय की दुर्दशा को देखते हुए उन्होंने विद्यामन्दिर के पुनर्निर्माण के लिए भविष्य में भी आर्थिक सहयोग करने का आश्वासन दिया। आपकी उदारता, नेतृत्व और सामुदायिक सेवाओं के कारण, आप मानव मात्र के लिए एक प्रेरणास्त्रोत हैं।

श्री दिनेश सिंह कुंजवाल जी ने न केवल अपने पुराने विद्यालय के पुनर्निर्माण में योगदान दिया, बल्कि आप अन्य जनहित के कार्यों में भी अपनी सामर्थ्य के अनुसार तन-मन-धन से सहयोग करते रहते हैं। आपकी समाज सेवा का दृष्टिकोण आपके समाज के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। आपके प्रयासों और योगदान के कारण विद्यालय का जीर्णोद्धार कार्य जल्द ही पूरा होने की उम्मीद है। सभी पूर्व छात्र आपके योगदान के लिए सदा आभारी रहेंगे। माँ शारदा की कृपा आप पर सपरिवार सदैव बनी रहे।

श्री चिंतामणि काण्डपाल:


सिकजा परिवार श्री चिंतामणि काण्डपाल जी का हमारे विद्यामंदिर के "गौरव बहाली अभियान" में ₹51,000/- के बहुमूल्य सहयोग के लिए सहृदय आभार व्यक्त करता है। यह दान न केवल आर्थिक सहायता है, बल्कि विद्यालय के लिए एक प्रोत्साहन और प्रेरणा का स्रोत भी है। श्री काण्डपाल जी, आप हमारे विद्यालय के 1996 बैच के पूर्वछात्र हैं और ग्राम कांडे के निवासी हैं। आपकी यह उदारता हमें आपके व्यक्तित्व की महानता और सेवा-भावना का परिचय देती है। आपकी कर्मठता और संवेदनशीलता हमें सदा प्रेरित करती है और हम आपके इस योगदान के लिए अत्यंत आभारी हैं।

आपके द्वारा दिए गए इस सम्माननीय धनराशि का योगदान हमारे विद्यालय के गौरव बहाली अभियान के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है। इस अभियान का उद्देश्य न केवल विद्यालय की आधारभूत संरचना को सुधारना है, बल्कि विद्यार्थियों को बेहतर शैक्षिक संसाधन प्रदान करना और हमारे पूर्व छात्रों द्वारा दी गई प्रेरणादायक कहानियों से उन्हें प्रेरित करना भी है। आपके सहयोग से हम इस अभियान को सफलतापूर्वक आगे बढ़ाने में सक्षम हो रहे हैं।

आपके व्यक्तित्व का एक विशेष पहलू आपकी संवेदनशीलता और कर्मठता है। हमारे सचिव, श्री योगेश गहतोड़ी जी द्वारा किए गए एक फोन कॉल पर ही आपने इस नेक कार्य के लिए उदारता से योगदान देने का निर्णय लिया। यह इस बात का प्रमाण है कि आप समाज के प्रति अत्यंत जागरूक और संवेदनशील हैं। आपकी इस भावना को देखकर हम सभी आपके प्रति कृतज्ञता महसूस कर रहे हैं।

वर्तमान में आप हल्द्वानी के छड़ेल, गैस गोदाम रोड में निवास कर रहे हैं और आपका कंस्ट्रक्शन का व्यवसाय अत्यधिक सफलतापूर्वक चल रहा है। यह आपकी कड़ी मेहनत और समर्पण का परिणाम है। इसके साथ ही, आपके पिताजी, श्री माधवानंद काण्डपाल जी, बहुत सज्जन और हंसमुख स्वभाव के व्यक्ति थे। समाज सेवा और परोपकार के कार्यों में वे सदैव अग्रणीय रहते थे। उनका सहज, निष्कपट और निष्काम व्यक्तित्व समाज के लिए एक प्रेरणा था और उनकी छाप हमारे मन मस्तिष्क में गहरी अंकित है। उन्हीं के आशीर्वाद से आप आज जीवन में सफलता की ऊंचाइयों को छू रहे हैं और दिन-दुगुनी, रात-चौगुनी उन्नति कर रहे हैं।

हमने आपसे आपके संक्षिप्त विवरण और फोटो के लिए अनुरोध किया था, परंतु आपने यह कह कर हमें अनुग्रहित किया कि यह आपका "नैतिक दायित्व" है और इसके लिए फोटो या विवरण की आवश्यकता नहीं है। आपकी इस सादगी और सेवा-भावना को नमन करते हुए हम आपके योगदान के प्रति अपनी गहरी कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। आपकी यह सोच हमें सिखाती है कि सच्ची सेवा और उदारता दिखावे से परे होती है।

एसोसिएशन के रेसोल्यूशन के अनुसार, हमें ₹50,000 और उससे अधिक धनराशि वाले दानदाताओं का विवरण और फोटो अपनी वेबसाइट पर साझा करना होता है, ताकि अन्य पूर्व छात्रों और हितधारकों को प्रेरणा मिल सके। इस कारण से हमने आपके व्हाट्सएप प्रोफाइल से आपकी फोटो का उपयोग किया है। आशा है कि इससे आपकी सादगी और उदारता का संदेश सभी तक पहुंचेगा और अन्य लोग भी इसी प्रकार समाज सेवा के लिए प्रेरित होंगे।

श्री चिंतामणि काण्डपाल जी, हम आपके इस सहयोग के लिए एक बार फिर से दिल से धन्यवाद करते हैं। आपका यह योगदान न केवल विद्यालय की प्रगति में सहायक होगा, बल्कि यह समाज के अन्य लोगों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बनेगा। हम आपके उज्ज्वल भविष्य और निरंतर प्रगति की कामना करते हैं। आपका परिवार और व्यवसाय सदैव समृद्ध और सफल रहे, यही हमारी शुभेच्छा है।

श्री कुंदन सिंह धानक:

सिकजा परिवार श्री कुन्दन सिंह धानक जी, प्रवक्ता एस.आई.सी. जयंती, के 51,000 रुपये के बहुमूल्य योगदान के लिए हृदय से आभार व्यक्त करता है। आप हमारे विद्यामन्दिर के एक आदर्श शिक्षक हैं, जिनकी विनम्रता, संवेदनशीलता और कर्मठता सदैव प्रेरणादायक रही है।

आपका जन्म 2 जून 1973 को सालम क्रांति के गढ़, ग्राम चौकुना में हुआ। आपके पिताजी, आदरणीय श्री खड़क सिंह धानक जी, और माताजी, श्रीमती देवकी देवी, धार्मिक और समाजसेवी व्यक्तित्व के धनी रहे हैं, जिनसे आपने अपने संस्कार और समाज के प्रति कर्तव्यों का पाठ सीखा। आपकी प्रारंभिक शिक्षा गाँव में ही हुई और आगे की शिक्षा के लिए आपने सर्वोदय इंटर कॉलेज जयंती में प्रवेश लिया, जहाँ से आपने 1992 में इंटरमीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण की।

आपकी उच्च शिक्षा की यात्रा अल्मोड़ा में कुमाऊँ विश्वविद्यालय के श्री सोबन सिंह जीना कैम्पस से भूगोल में एमए डिग्री के साथ सम्पन्न हुई। शिक्षा के प्रति आपका समर्पण आपको सदैव आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता रहा। 2003 में आप हमारे विद्यालय में अध्यापक के रूप में नियुक्त हुए और अपनी मेहनत के बल पर प्रवक्ता भूगोल के पद पर पदोन्नत हुए।

आप न केवल हमारे विद्यालय के सम्मानित शिक्षक हैं, बल्कि सिकजा के पुनरुद्धार अभियान के प्रति आपका विश्वास और समर्पण इस मिशन को नई ऊँचाइयों पर ले गया है। आपकी अटूट निष्ठा 8 मई 2024 की कार्यकारिणी बैठक से ही स्पष्ट थी, जब आपने अपना प्रथम आर्थिक योगदान दिया, जो अभियान के लिए एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ।

हम आपकी इस संवेदनशीलता और दूरदर्शिता को नमन करते हैं। आपका यह योगदान केवल वित्तीय नहीं, बल्कि विद्यालय और इसके छात्रों के प्रति आपके गहरे प्रेम और समर्पण का प्रमाण है। आपकी प्रेरणा से न केवल शिक्षक बल्कि छात्र भी प्रेरित होते हैं। सिकजा परिवार को विश्वास है कि आपके जैसे समर्पित व्यक्तित्वों के साथ, यह अभियान सफलता की नई ऊँचाइयों को छुएगा और विद्यालय अपने पुराने गौरव को पुनः प्राप्त करेगा।

सिकजा परिवार आपकी इस उदारता और सहयोग के लिए हृदय से आभार व्यक्त करता है और भविष्य में भी आपके निरंतर मार्गदर्शन की अपेक्षा करता है।

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