Events

विद्या मंदिर में माँ शारदा की स्थापना

(एक अविस्मणीय मुलाकात)

9 सितंबर 2023 को अपने विद्यामन्दिर में माँ शारदा के स्थापना दिवस में  पहुंचना मेरे लिए विशेष अनुभूति थी। कैसा संयोग था कि मैं इस आयोजन से अनभिज्ञ, जब 8 सितम्बर को अपनी 90 साल की माता जी से मुलाकात के लिए हल्द्वानी पहुंचा तो  अपने बड़े भाई साहब से विद्यालय के बारे में चर्चा करते हुए पता चला कि अगले दिन विद्यालय   के स्थापना दिवस का डॉक्टर  श्री  बी. एस.  नेगी जी द्वारा प्रायोजित एक बड़ा आयोजन है। मैंने आनन   फानन में ही अपने भाई साहब के फोन से SIC ग्रुप के लोगों का फोन नंबर मिलाना आरंभ किया और संयोगवश मेरी बात हमारे परम श्रद्धेय गुरू श्री लोकमणि गुरुरानी जी के सुपुत्र डॉ संजय गुरुरानी जी से हुई।   

उन्होंने मुझे अगले दिन अपने साथ समारोह में चलने के लिए आमंत्रित किया, जिसे मैंने सहर्ष स्वीकार किया और अगली सुबह हमने लगभग 5 बजे जैंती के लिए प्रस्थान किया। हमारे साथ परम आदरणीय  श्री गंगा प्रसाद जोशी जी के सुपुत्र श्री जोशी जी भी थे। उन दोनों से मेरी यह  पहली मुलाकात थी। जैंती पहुंचकर जहां एक ओर मुझे अपने विद्यामंदिर के जीर्ण  क्षीर्ण कलेवर को देखकर अत्यंत वेदना हुई, वहीं दूसरी ओर अपने गुरूजनों जैसे श्री गंगा प्रसाद जोशी जी, श्री देव सिंह बिष्ट जी, श्री राम सिंह नेगी  जी,   श्री प्रेम सिंह नयाल जी आदि से लगभग तीस साल  बाद मिलकर अत्यंत खुशी हुई। स्कूल के वर्तमान गुरुवृंद के साथ साथ डॉ नेगी जी, श्याम नारायण पांडे जी और अपने गांव की यंग ब्रिगेड से   मिलकर भी बहुत अच्छा लगा। पर इस दौरे में परम श्रद्धेय लोकमणि गुरूरानी जी से   मिलने की मेरी चिर अभिलाषा काफी प्रयास के बाद भी पूर्ण नहीं हो पाई।

 आदरणीय गुरूरानी जी का ओजस्वी व्यक्तित्व मेरे स्मृति पटल में कैद था।  गुरुरानी जी का जन्म सन 1940 में ग्राम सूरी में हुआ था।    उनके पिताजी श्री प्रेम बल्लभ गुरूरानी जी अध्यापक थे और माता श्रीमती नंदी   गुरूरानी जी धार्मिक प्रवृति की गृहणी थी। उच्चशिक्षा ग्रहणकर उन्होंने ने भी अपने पूज्य पिता जी के पद चिन्हों चलकर SIC जैंती में अध्यापन का कार्य आरम्भ किया। और एक लंबे कार्यकाल के बाद सन 2000 में हिन्दी और संस्कृत अध्यापन की विशेष छाप छोड़कर   सेवानिवृत्ति प्राप्त की।

 उनकी सेवानिवृत्ति के बाद लगभग 23 साल बाद SICJAA के बैंक अकाउंट खोलने के लिए की गई मेरी हल्द्वानी यात्रा   के दौरान उनसे मिलने की अभिलाषा पूर्ण हुई और मैं भटकते हुए शाम 6 बजे उनके घर पहुंचा। मेरी उनसे मिलने की   इच्छा इसलिए भी तीव्र हो रही थी क्योंकि उनका स्वास्थ्य कई दिनों से खराब चल रहा   था; जिसकी जानकरी मुझे अपने facebook में 25 अगस्त, 2022 को सालम क्रांति पर बनाए गए वीडियो प्रस्तुति के उत्तर में   मिली थी। जिसमें उन्होंने मेरे प्रयास की अत्यंत सराहना ही नहीं की, बल्कि अपने स्वास्थ्य के बारे में जानकरी देकर अपना फोन   नंबर शेयर कर मिलने की इच्छा भी जाहिर की और मैंने उसी दिन उनसे मिलने का प्रण कर   लिया था।

 तब से निरंतर मेरे मन और मस्तिष्क पटल में उनके बहुआयामी व्यक्तित्व के   विभिन्न झलकियों का आयाम हो रहा था। चाहे वह सत्तर और अस्सी के दशकों में 15 और 25 अगस्त के उपलक्ष्य   में सालम क्रांति पर SIC में प्रस्तुत होने वाली नाटिका   का मंचन और उसका संचालन कर प्रत्येक छात्र, सालम क्रांति और इसके हर सेनानी के   व्यक्तित्व, कृतित्व और अदम्य साहस से परिचित ही नही होता   था बल्कि उससे प्रेरित भी होता था। पर अब यह औपचारिकता ही बन गई है और 25 अगस्त को धामद्यो में होने वाले इस आयोजन को राजनीतिक   पार्टियों ने वोट बैंक की भेंट चढ़ा दिया।

 विभिन्न अवसरों पर होने वाले साँस्कृतिक कार्यक्रमों की जान-शान-बान हेतु,   गुरुरानी जी हमारे संस्कृति के प्रचार-प्रसार के लिए प्रतिबद्ध थे और छात्रों को   नृत्य-संगीत, नाट्य कला से जोड़ने में अद्वितीय योगदान   देते थे।

 जंहा एक ओर अध्ययन से हमारा बौद्धिक व मानसिक विकास होता है और खेलकूद हमारी   शारीरिक व मानसिक दृढता सुनिश्चित करते है। वहीं दूसरी ओर संगीत और सांस्कृतिक   आयोजन हमारे व्यक्तित्व में संवेदनशीलता, भावात्मक   परिपक्वता, आत्मीयता और ठहराव सुनिश्चित करते हैं और इन   सब के संयोग से सुनिश्चित होता सर्वांगीण विकास। इसीलिए नई शिक्षा नीति 2020 में भारत सरकार ने इन तीनों के समुचित मिश्रण पर बल दिया   है।

 गुरूरानी जी अपनी ऐक्टिव जीवन में एक मूर्धन्य वक्ता थे, भाषा में उनकी पकड़, प्रवाह, लय और उतार चढाव और रिदम श्रोताओं को मंत्र मुग्ध कर देता   था। उनके पास अपने श्रोताओ से कनेक्ट करने करने की विशेष कला थी। इसीलिए रामलीला   में उनके बोलते ही पिन ड्राप साइलेंस हो जाती थी। वे आने वाले शीन को पिछले शीन से   हमारी मातृभाषा कुमाउनी में बखूबी जोड़कर सामान्य ग्रामीण को भी पूरे मंचन का   स्वाद चखा देते थे। उनके और शंकर दत्त जी के बीच होने वाले अंगद रावण संवाद को तीन   पीढ़ियां (हमारी पिछली, हमारी और हमारे बाद की पीढ़ी) कभी नहीं भूल सकती। उस दिन पूरा रामलीला मैदान खचाखच भरा रहता था।

 भागवत, पुराण और रामायण पाठ में भी लोग उनकी इस कला   के मुरीद थे। उन्होंने सैकड़ों भागवत, पुराण और   रामायण पाठ किए। अब उनके सुपुत्र डॉ संजय गुरूरानी जी इस परिपाटी को आगे बढ़ा रहे   हैं।

 गुरूरानी जी के घर पहुंचते ही जब मैने उनके पांव छुए तो उन्होंने मुझे गले लगा   लिया और उनकी आखों से अश्रुधार फूट गयी और मेरी आंखें भी खुशी के आंसू से नम हो गई,   क्योंकि 25 अगस्त 2022 से मेरी उनसे मिलने की लालसा लगभग सवा साल बाद 25 दिसंबर 2023 को पूर्ण हुई। जब   डॉ गुरुरानी जी ने उनसे रोने के लिए मना किया तो वे बोले ये खुशी के आंसू हैं और इनका   शारीरिक पीड़ा से कोई संबंध नहीं है यह सुनकर मैं उनकी आत्मीयता से भाव-विभोर हो   गया और ये भेंट मेरे लिए अविस्मरणीय बन गई।

 हमारी वार्तालाप के दौरान उनकी शारीरिक पीड़ा की झलक भी दृष्टिगोचर हो रही थी।   पर अपने शिष्य से आत्मीय मुलाकात उनके अहम् ब्रह्ममास्मि के स्वरूप को   परिलक्षित कर रही थी। अतः मैने उनसे रामकृष्ण परमहंस के कुछ अनुभवों की चर्चा की।   परमहंस भी जीवन के अंतिम काल में कैंसर रोग से ग्रसित थे और अद्वैत का अनुसरण करने   के बावजूद भी मां काली के अनन्य भक्त थे, पर उनके परम शिष्य विवेकानंद को उनकी माँ   काली की भक्ति पसंद नही थी क्योंकि वे शुद्ध अद्वैत में कुछ मिक्स नहीं करना चाहते   थे। परम हंस ने उन्हें समझाया कि वे भी अद्वैत के अनुसरण करते हैं; अद्वैत एक   विज्ञान और भक्ति कला है। कला के बिना विज्ञान का निरस रूप आपको शारीरिक कष्टों से   लड़ने की शक्ति नहीं प्रदान करता। माँ काली की अनन्य भक्ति मुझे शारीरिक पीड़ा से   मुक्त रखती है। तत्तपश्चात विवेकानंद जी ने भी अपने अद्वैत को परिष्कृत किया।

आते समय गुरूरानी जी और डॉ संजय गुरूरानी जी ने अपनी लिखी हुई पुस्तकें मुझे भेंट   स्वरूप प्रदान की। वास्तव में मेरी यह दोहरी भेंट अविस्मरणीय भेंट थी।

मैं अपने जीवन में इस  शुभाशुभ अवसर  के लिए  डॉक्टर   श्री  बी.एस. नेगी जी का भी आभारी  हूँ,  क्योंकि  माँ  शारदे  की कृपा  से  उनके  द्वारा  यदि यह महान कार्य न  हुआ  होता तो शायद  मुझे यह  सुअवसर  प्राप्त नहीं  हो  पाता   अंत में सभी गुरु  जनों को मेरा कोटि-कोटि नमन   

✍️नारायण सिंह बिष्ट (महासचिव)