Shri Ram Singh Dhauni Ji (1893-1930)

On 24 February 1893 at village Talla Binaula, Jainti, Tehsil, Almora an extraordinary child was born to a simple and docile farmer Shri Himmat Singh Dhoni Ji and his wife Smt Kunti Devi. The child was very sharp and intelligent from childhood itself. He was named Ram Singh.  He was a keen learner and passionate knowledge seeker from his childhood. After completing his primary schooling from Jainti Primary School, Dhoni Ji  went  to Almora for middle school and passed middle school in the first division. He was greatly influenced by national movement from his school days and was filled with patriotism and sense of social service. He established “Student Conference Sabha” to awaken patriotism and promote the national language. In 1914, he came in contact with Swami Satyadev and became an active member of the organizations named “Shuddh Sahitya Samiti” and “Summer School” established by Swami Satyadev to propagate national sentiments.

Despite the extreme financial crisis, he managed to continue his education and graduated from Christian College, Allahabad, in 1919. After his return to Almora from Allahabad, the then Kumaon region commissioner Wyndham got impressed by his sharp intelligence and offered him the post of Naib Tehsildar, which Dhoni Ji instantly rejected.

In 1920, he went to Rajasthan and started teaching at Raja's Suratgarh School in Bikaner. After spreading national sentiments in Suratgarh, he moved to the princely state of Jaipur and worked initially as an Assistant Teacher and then as Headmaster at Ramchandra Navatia High School in Fatehpur, Jaipur. After spreading the works of social reform among the common people in Fatehpur and spreading the feeling of patriotism and nationalism, Dhoni Ji went to the Bajang princely state of Nepal in 1922. In Nepal, he taught the princes and made them lovers of Hindi. Pleased with Dhoni Ji’s work, efficiency, and teaching skills, the king of Bajang gifted him a sword.

At the end of 1922, Dhoni Ji returned to his mother land Salam and got involved in spreading education and awakening for eradicating social evils.  He knew that education is a panacea for all evils and the key to the development of a society. So he laid the foundation of middle school at Jainti, which was upgraded to Inter College by Shri Durga Dutt Shatri Ji in 1951, i.e., our Vidyamandir Sarvoday Inter College Jayanti. His ability to connect with people and to motivate them for national cause was exceptional as a result, he became a mass leader of Almora District. It is understood that he coined and popularised the slogan ‘Jai Hind’ and used it extensively in his all written and oral communications. Later, it became a slogan of Ajad Hind Fauj. He opened a dispensary and library at Bajdhar because he knew that health and education are essential ingredients for the growth and development of a society. Based on his extraordinary capabilities and efficiency, he was nominated as a member of the Almora District Board and thereafter became the Minister and Chairman of District Board.

In 1925, he was appointed editor of the weekly newspaper Shakti. During his tenure as editor, in the year 1925-1926, the trend of giving special emphasis on untouchability, national organization, upliftment of national language Hindi, domestic industry and free education was conspicuously visible in the editorial articles of Shakti.

In 1928, Dhoni Ji organized a huge public meeting at Jainti to protest against the hike in land revenue(lagan) and land arrangement made by the British government. He opposed the repressive policy of the British government tooth and nails and got the title of Salam Kesari.

In 1929, on the request of his well-wishers, he went to Bombay, Maharashtra. There, too, he organized the Kumauni’s living in Bombay and instilled the spirit of national awakening among them.

After 1926, his health started deteriorating as he came in contact with smallpox infected persons during social service. So, he moved to Bombay in 1929 for treatment, where he died at the age of 37 years. On 12th November 1930, this great soul left for its heavenly abode. It is well known fact that noble souls like Adi Shankar, Ramanuj, Vivekananda had very short life span on the earth because they manage to do such a great work in short time which normal person cannot do even after many births.

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श्री राम सिंह धौनी जी (1893 - 1930)

श्री राम सिंह धौनी जी का जन्म 24 फरवरी सन् 1893 ई० में अल्मोड़ा जिले के तल्ला सालम पट्टी में तल्ला बिनौला गांव में हुआ था। इनकी माता का नाम श्रीमती कुन्ती देवी तथा पिता का नाम श्री हिम्मत सिंह धौनी था। धौनी जी बचपन से ही अति प्रतिभाशाली एवं परिश्रमी थे। सन् 1908 ई० के जैंती (सालम) से कक्षा चार की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उन्होंने अल्मोड़ा टाउन स्कूल में कक्षा 5 में प्रवेश लिया तथा हाईस्कूल तक इसी विद्यालय में विद्याध्ययन किया। मिडिल परीक्षा में सारे सूबे में प्रथम स्थान प्राप्त करने पर उन्हें पाँच रुपये प्रतिमाह छात्रवृत्ति भी मिलने लगी।

सन् 1912-13 ई० के आस-पास अल्मोड़ा में देश के कई महान पुरुषों का आगमन हुआजिनमें काका कालेलकरआनंद स्वामीपं० मदनमोहन मालवीयविनय कुमार सरकार आदि प्रमुख थे। इन महापुरुषों के दर्शन एवं उपदेशों से धौनी जी के मन में देश भक्ति एवं राष्ट्रप्रेम की भावना गहरी होती गई। सन् 1912 ई. में स्वामी सत्यदेव अल्मोड़ा आए और उन्होंने यहाँ पर ‘शुद्ध साहित्य समिति’ की स्थापना की। श्री राम सिंह धौनी जी  इस साहित्य समिति के स्थाई सदस्य बन गए। स्वामी जी के भाषणों तथा ‘शुद्ध साहित्य समिति’ के क्रियाकलापों ने उनके जीवन की दिशा बदल दी। तत्पश्चात उनका अधिकतर समय छात्रों में राष्ट्रीय भावना का प्रचार करने में बीतता था।

होम रूल लीग’ का सदस्य बनकर “धौनी जी” देश के स्वतंत्रता आन्दोलन से सीधे जुड़ गये थे। उनमें देशभक्ति एवं स्वाभिमान की भावना इतनी प्रबल थी कि उन्होंने विद्यार्थी जीवन में ही सरकारी नौकरी न करने का पक्का निश्चय कर लिया था तथा अन्त तक उसका निर्वाह भी किया। सन् 1919 ई० में उनके बी.ए. पास करने के उपरान्त तत्कालीन कुमाऊँ कमिश्नर बिढम (सन् 1914-1924 ई०) ने उन्हें नायब तहसीलदार के पद पर कार्य  करने को कहा परन्तु धौनी जी ने अपनी निर्धनता के बावजूद उसे ठुकरा दियाजिससे उनके निर्धन पिता को गहरा आघात भी लगा।

सन् 1920 ई० में श्री राम सिंह धौनी जी  राजस्थान चले गए और वहां बीकानेर के राजा के सूरतगढ़ स्कूल में 80 रुपये मासिक वेतन पर एक वर्ष तक कार्य किया। वहां से धौनी जी फतेहपुर चले गये तथा ‘रामचन्द्र नेवटिया हाईस्कूल’ में सहायक अध्यापक तथा प्रधानाध्यापक के पदों पर कार्य किया। जब सन् 1921 ई० में सारे भारतवर्ष में कांग्रेस कमेटियां  बनाई जाने लगीतो वे ही पहले व्यक्ति थे जिन्होंने फतेहपुर में कांग्रेस कमेटी की स्थापना कर वहां आजादी का बिगुल बजा दिया। फतेहपुर में ही धौनी जी ने ‘युवक सभा’ की भी स्थापना की जिसके वे स्वयं संरक्षक थे। ‘युवक सभा‘ के सदस्यों का मुख्य कार्य अछूत बस्तियों के लोगों में  शिक्षासफाई तथा नशाबंदी का प्रचार-प्रसार करना था। श्री गोपाल नेवटिया तथा श्री मदनलाल जालान ‘युवक सभा’ के संचालक थे। धौनी जी ने फतेहपुर (जयपुर) हाईस्कूल के छात्रों के शारीरिकमानसिक तथा आत्मिक विकास के लिए छात्र सभा’ की स्थापना भी कीजिसके संचालक वे स्वयं थे तथा पाँच रुपये वार्षिक आर्थिक सहायता भी देते थे। इस बीच फतेहपुर में उन्होंने कई जनसभाओं में भाषण दिए तथा देश को आजाद करने का आह्वान किया। अपने स्कूल में फुटबॉल को विदेशी  खेल समझ कर बंद करवा दिया तथा उसके स्थान पर कबड्डी एवं अन्य देशी खेलों को प्रारंभ करवाया।

भारतीय रियासतों में राजनीतिक आन्दोलनों के जन्मदाताओं में धौनी जी का नाम प्रमुख है। सन् 1921 – 1922 ई. तक उनके द्वारा फतेहपुर में किए गए राजनीतिक कार्यों का विशेष महत्त्व है। उन्होंने पहली बार फतेहपुर में राष्ट्रीय भावनाओं के प्रचार-प्रसार के लिए सभाओं का गठन किया तथा नगर के प्रतिष्ठित लोगों एवं नवयुवकों को अपने साथ लियाजिसमें डॉ. रामजीवन त्रिपाठीकुमार नारायण सिंहयुधिष्ठिर प्रसाद सिंहानियागोपाल नेवटियाश्री रामेश्वर तथा मूंगी लाल आदि के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं। फतेहपुर में ही उन्होंने एक ‘साहित्य समिति’ की स्थापना कीजिसका कार्य लोगों में शिक्षा और एकता का प्रचार करना था। इस समिति के साप्ताहिक एवं पाक्षिक अधिवेशन हुआ करते थे कभी-कभी कवि सम्मेलन भी हुआ करते थे। एक कवि सम्मेलन में धौनी जी ने अपनी कविता ‘सफाई की सफाई’ सुनाई थी। वह कविता लोगों को इतनी पसंद आई कि जनता के आग्रह पर धौनी जी को उसे नौ बार सुनाना पड़ा। रामसिंह ने ‘साहित्य समिति’ की ओर से ‘बधु’ नामक पाक्षिक पत्र निकलवाया तथा डॉ. रामजीवन त्रिपाठी उसके संपादक बनाए गए। इस पत्र में धौनी जी के देश भक्ति एवं राष्ट्र प्रेम संबंधी कई लेख एवं कविताएँ प्रकाशित हुईं।

राष्ट्रवादी विचारधारा का पोषक होने ने कारण ब्रिटिश सरकार ने ‘बंधु’ पत्र की सभी प्रतियां जब्त करवा करउसके प्रकाशन पर प्रतिबंध लगा दिया। धौनी जी की प्रेरणा से उनके शिष्य गोपाल  नेवटिया तथा युधिष्ठिर प्रसाद सिंहानिया ने ‘श्री स्वदेश’ नामक उच्चकोटि का पत्र निकाला, जिसके 26 अगस्त 1922 ई० के प्रथम अंक में धौनी जी की कविता ‘तेरी बारी है होली’ छापी गईहाँलांकि उस समय धौनी जी बजांग (नेपाल) चले गए थे। इस कविता में अंग्रेजों को बंदर बताकरउन्हें भारत से भागने को कहा गया है।

उपवन से भग बन्दर भोलीतेरी  बारी है होली॥

दुबक-दुबक तू घुसि आयाचुपके-चुपके  सब फल खाया ॥

ऐक्य पुष्प सब तोड़ि गिराएपिक  पक्षी अति ही झुंझलाए॥

सभी कहत अब ऐसी बोलीतेरी बारी है  होली॥

श्री राम सिंह धौनी जी  के जीवन का मुख्य लक्ष्य अध्यापन के माध्यम से जनता में देश प्रेम एवं राष्ट्रीय भावनाओं का प्रचार करना था। फतेहपुर (जयपुर) में जब यह कार्य ‘युवक सभा,’ ‘छात्र सभा’ तथा ‘साहित्य समिति’ के माध्यम से होने लगा तो उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया तथा नेपाल की रियासत बजांग गए। वहां उन्होंने राजकुमारों को शिक्षा प्रदान कर हिन्दो प्रेमी बनाया। धौनी जी के अध्यापन कार्य से प्रसन्न होकर बजांग के राजा ने उन्हें एक तलवार भेंट की। बीकानेरजयपुर तथा बजांग (नेपाल) रियासतों में देश भक्ति एवं राष्ट्रीयता की भावनाओं तथा हिन्दी भाषा का प्रचार-प्रसार करधौनी जी अल्मोड़ा चले आए। सन् 1925 ई० से सन 1926 ई. तक रामसिंह ‘शक्ति’ के संपादक रहे। अपने थोड़े से कार्यकाल में उन्होंने देश की सभी महत्वपूर्ण समस्याओं पर गंभीरतापूर्ण लेख एवं टिप्पणियां लिखीं। इन लेखों में हिंदु-मुस्लिम एकताअछूतोद्धारराष्ट्र संगठनकुटीर उद्योगराष्ट्रभाषा हिन्दीखादी आन्दोलनअध्यापक आन्दोलननिःशुल्क शिक्षाडिस्ट्रिक्ट बोर्डमहात्मा गांधी तथा कांग्रेस आदि महत्वपूर्ण विषयों पर अपने विचार व्यक्त किए। ब्रिटिश सरकार की ओर से लगान बढ़ाने के लिए होने वाले बन्दोवस्त के विरोध में उन्होंने आन्दोलन चलाया। जैंती (सालम) में जूनियर हाईस्कूल तथा बाँजधार में औषधालय उन्हीं के प्रयासों से खुले। अल्मोड़ा में सामाजिकसांस्कृतिक एवं  राजनीतिक कार्यों को सक्रिय करने के उपरान्त धौनी जी बम्बई चले गए। वहाँ उन्होंने पहाड़ के लोगों को एकजुट कर “हिमालय पर्वतीय संघ” की स्थापना की। साथ ही धौनी जी  ‘अखिल  भारतीय मारवाड़ी अग्रवाल  जाति  कोष’ के मंत्री भी रहे।

1930 ई० में बम्बई में चेचक फैला। लोगों की सेवा करते हुए वे चेचक की चपेट में आ गए तथा 12 नवम्बर 1930 को 37 बर्ष की अल्पायु में ही उनका निधन हो गया। जनवरी 1931 ई० को बागेश्वर में उत्तरायणी के मेले के शुभ अवसर पर महान स्वतन्त्रता सेनानी विक्टर मोहन जोशी ने  श्री राम सिंह धौनी जी  की मृत्यु पर अपने  शोकोद्धार  व्यक्त करते हुए कहा था-  

होहन्त बैरीबैरीकाल ने बरबाद हमको कर दिया।

हा देव! यह क्या हो गयाभारत का रत्न खो गया॥

निर्धनता में भी देश को निःस्वार्थ सेवा करने वाले इस महान सपूत की याद में सन् 1935 ई० में सालम में  श्री राम सिंह  धौनी जी के नाम पर  “राम सिंह धौनी आश्रम” की स्थापना हुई। यही आश्रम सालम की सन् 1942 ई० को जनक्रांति का भी केन्द्र बना।